लाखों-करोड़ों कर्मचारी अपने सुरक्षित भविष्य के लिए प्रोविडेंट फंड (पीएफ) में पैसे कटवाते हैं, ताकि भविष्य सुरक्षित हो और यह पैसा बुढ़ापे की लाठी बन कर उनका सहारा बन सके। विडंबना यह है कि पीएफ पर ब्याज दर 8.5 फीसद से घटा कर 8.1 फीसद करने का एलान किया गया है। बैंकों में ग्राहकों द्वारा फिक्स डिपाजिट (एफडी) किया जाता था, जिस पर ब्याज आठ फीसद से लेकर 8.5 फीसद तक दिया जाता था। लेकिन अब चार फीसद से लेकर 4.5 फीसद तक ब्याज दर है।

आखिरकार सरकार कर्मचारियों व आम जनता के द्वारा की जाने वाली बचत को हतोत्साहित क्यों कर रही है? सरकार को ‘आज की बचत कल की सुरक्षा’ का मूल मंत्र ध्यान में रखते हुए बचत को प्रोत्साहित करने के लिए ब्याज दरों में वृद्धि करना चाहिए। लेकिन दरों को न्यूनतम करके जनता का खून चूसा जा रहा है। सरकार के नुमाइंदे टीवी पर बैठ कर त्याग की घुट्टी पिला रहे हैं और सच्चे देशभक्त बनने की दुहाई देते हैं। क्या त्याग करने का सारी जिम्मेदारी आम जनता ने उठा रखा है!
हेमा हरि उपाध्याय ‘अक्षत’, उज्जैन

निगम का स्वरूप

दिल्ली के तीनों निगमों के चुनाव चर्चा के केंद्र में हैं। तीनों निगमों का आर्थिक सुदृढ़ीकरण कैसे किया जाए, यह एक चुनौती है। पूर्वी दिल्ली और उत्तरी दिल्ली में आर्थिक संकट हमेशा बना रहता है। सफाई कर्मचारियों के धरना प्रदर्शन से दिल्ली का माहौल खराब होता है। इस मसले पर उच्च न्यायालय में अनेक केस लंबित हैं। सरकारी तंत्र इन उलझनों में ही फंसा रहता है।

स्वास्थ्य सेवाओं, सफाई व्यवस्था और पार्कों के रखरखाव पर प्रतिकूल असर पड़ता है। तीनों निगमों में कर व्यवस्था, गृह कर को मजबूत करना होगा। निगमों के क्षेत्रों में व्यावसायिक योजनाएं लागू करनी होंगी। सड़क किनाने दुकानों का निर्माण कर, लंबी अवधि की योजनाओं का निर्माण कर आर्थिक संकट से मुक्ति के रास्ते खोलने होंगे। लेकिन समस्या और समाधान के बीच झूलती दिल्ली में नगर निगम चुनाव कब होंगे, यह दिल्लीवासियों के सामने बड़ा प्रश्न खड़ा हो गया है।
वीरेंद्र कुमार जाटव, दिल्ली