हमारी प्रवृत्ति कभी बदलती नहीं है, लेकिन समय के अनुसार हमारे व्यवहार में परिवर्तन होता रहता है। व्यवहार में परिवर्तन अनेक कारणों से होता है। जब भी हमारे व्यवहार में बदलाव होता है तो दूसरे लोग आसानी से इसको महसूस कर लेते हैं। हालांकि हम जानबूझकर यह स्वीकार नहीं करते हैं कि हमारे व्यवहार में बदलाव हो रहा है। कई बार हमें स्वयं भी यह पता नहीं चलता है कि हमारे व्यवहार में परिवर्तन हो रहा है। काफी हद तक विभिन्न तरह की परिस्थितियां व्यवहार में बदलाव के लिए जिम्मेदार होती हैं।

हमारे मन-मस्तिष्क पर परिस्थितियों का प्रभाव इस प्रकार पड़ता है कि स्वत: ही हमारा बर्ताव बदल जाता है। जब भी हमारा व्यवहार बदलता है तो इसका असर किसी न किसी रूप से हमारी जिंदगी पर पड़ता है। यही कारण है कि जो लोग हमारे बदलते हुए व्यवहार को महसूस करते हैं, वे हमारी आलोचना करने लगते हैं। परिस्थितियां बदलने के बाद हम सहज नहीं रह पाते हैं।

परिस्थितियां बदलने के बाद बहुत कम लोग सहज और गंभीर रह पाते हैं। जो लोग अपने व्यवहार में सहजता और गंभीरता कायम रख पाते हैं वे ही अच्छे इंसान की श्रेणी में आते हैं। ऐसे लोगों को समाज में भी एक अलग सम्मान मिलता है। सवाल यह है कि परिस्थितियां बदल जाने पर हमारा व्यवहार क्यों बदल जाता है ? हम क्यों ऐसा बर्ताव करने लगते हैं जो दूसरे लोगों को असहज करता है ?

हम क्यों-क्यों बार-बार अपने व्यवहार को कठघरे में खड़ा करते हैं ? अक्सर लोग यह शिकायत करते हुए दिखाई देते हैं कि बड़ा इनसान बनने के बाद अमुक का व्यवहार बदल गया। इनसान को श्रेणियों में बांटने की मानसिकता अंतत: हमारे लिए कई तरह की समस्याएं पैदा करती है। जब हम इनसान को छोटे और बड़े में बांट देते हैं तो इंसानियत पर भी सवाल खड़ा करते हैं।

इस प्रगतिशील दौर में भी इनसान को धन-दौलत से तौलने की गलती हम बार-बार कर रहे हैं। हम धन-दौलत के आधार पर ही इनसान को छोटा और बड़ा मानते हैं। पहले से ज्यादा पढ़े-लिखे समाज में यह मानसिकता कम होनी चाहिए थी लेकिन ज्यों-ज्यों समाज ज्यादा शिक्षित और प्रगतिशील होता गया, त्यों-त्यों यह मानसिकता बढ़ती चली गई।

हम दिखावे के लिए जरूरी बड़ी-बड़ी बातें करते रहे लेकिन हमारे समाज में धन का प्रभाव लगातार बढ़ता रहा और इस संदर्भ में हमारी प्रगतिशीलता खोखली साबित हुई। निश्चित रूप से व्यक्तिगत जरूरतों और भौतिक विकास के लिए धन-दौलत का अपना महत्त्व है लेकिन यदि धन-दौलत ही हमारे समाज की सबसे बड़ी ताकत बन जाए तो इस ताकत के नशे से हम कभी न कभी प्रभावित होंगे ही।

जब हमारे ऊपर धन-दौलत का नशा तारी होता है तो हम अनेक तरह के नाटक भी करने लगते हैं। जिन मित्रों ने हमारा पहले वाला व्यक्तित्व देखा होता है, वे इस तरह के नाटकों को जल्दी ही पहचान लेते हैं। ऐसे बहुत कम इनसान होते हैं जो धन-दौलत आ जाने के बाद भी जमीन से जुड़कर चलते हैं और अपना व्यवहार नहीं बदलते।

कुछ चालाक इनसान ऐसे भी होते हैं जो ऊपर से सहजता दिखाने की कोशिश करते हैं लेकिन उनके व्यवहार में किसी न किसी बिंदु पर समृद्धि की अकड़ दिखाई दे ही जाती है। ऐसे समय में अनेक बौद्धिक यह पुराना रटा-रटाया वाक्य सुनाने लगते हैं कि जब पेड़ पर फल आ जाता है तो वह नीचे झुक जाता है। यानी जब कोई इनसान किसी भी रूप में और समृद्ध होता है तो उसे विनम्र हो जाना चाहिए।

आदर्श रूप में तो यह वाक्य सटीक है लेकिन व्यावहारिक जिंदगी में ऐसा बहुत कम होता है। जब हम किसी भी रूप में और समृद्ध होते हैं तो हमारा अहंकार बढ़ जाता है। यह अहंकार हमें हमारे वास्तविक स्वरूप से दूर ले जाता है। हमें अनेक तरह के भ्रमों में फंसा देता है। दुर्भाग्यपूर्ण यह है कि हम इस तरह के भ्रमों से बाहर निकलने की कोशिश भी नहीं करते हैं।