Apara Ekadashi Vrat Katha, Vidhi, Muhurat, Mahatva: हिंदू धर्म में अपरा एकादशी का बहुत महत्व है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार इस एकादशी पर व्रत रखने से भक्तों को अत्यंत पुण्य की प्राप्ति होती है और व्रतियों के सभी पाप नष्ट हो जाते हैं। ये व्रत ज्येष्ठ कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि के दिन रखा जाता है। इस बार अपरा एकादशी 18 मई को पड़ रही है। इस एकादशी को अचला एकादशी के नाम से भी जाना जाता है। इस व्रत को करने से भगवान विष्णु और मां लक्ष्मी की कृपा दृष्टि सदैव ही श्रद्धालुओं पर बनी रहती है। मान्यता है कि जिस तरह मकर संक्रांति पर गंगा स्नान और शिवरात्रि के समय काशी में स्नान करने से पुण्य की प्राप्ति होती है, इसी के समान पुण्य अपरा एकादशी पर व्रत करने से भी मिलता है। आइए जानते हैं इस दिन से जुड़ी कुछ खास बातें-
ये है इस दिन का महत्व: ऐसा माना जाता है कि जो फल तीनों पुष्कर में कार्तिक पूर्णिमा को स्नान करने से या गंगा तट पर पितरों को पिंडदान करने से प्राप्त होता है, वही अपरा एकादशी का व्रत करने से मिलता है। विद्वानों के अनुसार अपरा एकादशी के व्रत के प्रभाव से ब्रह्म हत्या, भूत योनि, दूसरे की निंदा आदि के सब पाप दूर हो जाते हैं। ऐसी मान्यता है कि इस एकादशी का व्रत करने से स्वर्ग की प्राप्ति होती है। माना जाता है कि इस दिन ‘विष्णुसहस्त्रानम्’ का पाठ करे से सृष्टि के पालनहार श्री हरि विष्णु की विशेष कृपा भक्तों को प्राप्त होती है।
अचला एकादशी की कथा: प्राचीन काल में महीध्वज नामक एक धर्मात्मा राजा था। उसका छोटा भाई वज्रध्वज बड़ा ही क्रूर, अधर्मी तथा अन्यायी था। वह अपने बड़े भाई से द्वेष रखता था। उस पापी ने एक दिन रात्रि में अपने बड़े भाई की हत्या करके उसकी देह को एक जंगली पीपल के नीचे गाड़ दिया। इस अकाल मृत्यु से राजा प्रेतात्मा के रूप में उसी पीपल पर रहने लगा और अनेक उत्पात करने लगा। एक दिन अचानक धौम्य नामक ॠषि उधर से गुजरे। उन्होंने प्रेत को देखा और तपोबल से उसके अतीत को जान लिया। अपने तपोबल से प्रेत उत्पात का कारण समझा।
ॠषि ने प्रसन्न होकर उस प्रेत को पीपल के पेड़ से उतारा तथा परलोक विद्या का उपदेश दिया। दयालु ॠषि ने राजा की प्रेत योनि से मुक्ति के लिए स्वयं ही अपरा (अचला) एकादशी का व्रत किया और उसे अगति से छुड़ाने को उसका पुण्य प्रेत को अर्पित कर दिया। इस पुण्य के प्रभाव से राजा की प्रेत योनि से मुक्ति हो गई। वह ॠषि को धन्यवाद देता हुआ दिव्य देह धारण कर पुष्पक विमान में बैठकर स्वर्ग को चला गया।
ये है शुभ मुहर्त:
एकादशी तिथि प्रारंभ: 17 मई 2020, दोपहर 12 बजकर 42 मिनट से
एकादशी तिथि समाप्त: 18 मई 2020, दोपहर 03 बजकर 8 मिनट तक
पारण का समय: 19 मई 2020, सुबह 5 बजकर 28 मिनट से सुबह 8 बजकर 12 मिनट तक
एकादशी के पावन दिन मांस- मंदिरा का सेवन नहीं करना चाहिए। इस दिन ऐसा करने से जीवन में तमाम तरह की परेशानियों का सामना करना पड़ता है। इस दिन व्रत करना चाहिए। अगर आप व्रत नहीं करते हैं तो एकादशी के दिन सात्विक भोजन का ही सेवन करें।
अपरा एकादशी के मौके पर भगवान विष्णु को दक्षिणवर्ती शंख से गाय के दूध से अभिषेक करना चाहिए। मान्यता है कि ऐसा करने से आपको भगवान विष्णु जी का आशीर्वाद प्राप्त होगा। इस एकादशी को अचला एकादशी भी कहा जाता है।
एकादशी के दिन महिलाओं का अपमान करने से व्रत का फल नहीं मिलता है। सिर्फ एकादशी के दिन ही नहीं व्यक्ति को किसी भी दिन महिलाओं का अपमान नहीं करना चाहिए। जो व्यक्ति महिलाओंं का सम्मान नहीं करते हैं उन्हें जीवन में कई तरहों की समस्याओं का सामना करना पड़ता है।
हिंदू धर्म में अपरा एकादशी का विशेष स्थान है। पद्मपुराण के मुताबिक यह व्रत करने से जीते जी ही नहीं बल्कि मृत्यु के बाद भी लाभ मिलता है। मान्यता है कि अगर कोई प्रेत योनि में चला गया हो तो उसे भी एकादशी के पुण्य देने प्रेत योनि से मुक्ति मिल जाती है। ज्येष्ठ मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी को पड़ने वाली अपरा एकादशी इस बार 18 मई सोमवार यानी कि कल है।
अपरा एकादशी का जो लोग व्रत रखते हैं उन्हें आज से ही यानि 17 मई से अनुशासन और संयम का पालन करना होगा। एकादशी का व्रत बहुत ही पवित्र माना गया है इसलिए इसमें कठिन नियमों का पालन करना बताया गया है। नियमों का पालन करने से ही इस व्रत का पूर्ण लाभ प्राप्त होता है।
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार इस एकादशी पर व्रत रखने से भक्तों को अत्यंत पुण्य की प्राप्ति होती है और व्रतियों के सभी पाप नष्ट हो जाते हैं। ये व्रत ज्येष्ठ कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि के दिन रखा जाता है। इस बार अपरा एकादशी 18 मई को पड़ रही है। इस एकादशी को अचला एकादशी के नाम से भी जाना जाता है। इस व्रत को करने से भगवान विष्णु और मां लक्ष्मी की कृपा दृष्टि सदैव ही श्रद्धालुओं पर बनी रहती है। मान्यता है कि जिस तरह मकर संक्रांति पर गंगा स्नान और शिवरात्रि के समय काशी में स्नान करने से पुण्य की प्राप्ति होती है, इसी के समान पुण्य अपरा एकादशी पर व्रत करने से भी मिलता है।
अपरा एकादशी का पुण्य अपार है। कहते हैं कि इस एकादशी का व्रत करने से व्यक्ति के सभी पाप नष्ट हो जाते हैं और वह भवसागर को तर जाता है। मान्यता है कि इस दिन 'विष्णुसहस्त्रानम्' का पाठ करे से सृष्टि के पालनहार श्री हरि विष्णु की विशेष कृपा बरसती है। जो लोग एकादशी का व्रत नहीं कर रहे हैं उन्हें भी इस दिन भगवान विष्णु का पूजन करना चाहिए
धर्मानुभावों के अनुसार शाम को घर के हर एक हिस्से में दीपक जरूर जलाना चाहिए। मान्यता है कि ऐसा करने से भगवान विष्णु के साथ माता लक्ष्मी का भी आशीर्वाद मिलता है जिसके कारण से आपके घर में कभी धन की कमी नहीं रहेगी।
एकादशी का पावन दिन भगवान विष्णु की अराधना का होता है, इस दिन सिर्फ भगवान का गुणगान करना चाहिए। एकादशी के दिन गुस्सा नहीं करना चाहिए और वाद-विवाद से दूर रहना चाहिए।
अपरा एकादशी के दिन सुबह जल्दी उठकर घर की साफ सफाई करें और सुबह उठकर स्नान ध्यान कर भगवान विष्णु के साथ मा लक्ष्मी की पूजा करें। मान्यता है कि इस एकादशी पर पीपल के पेड़ के नीचे घी का दीपक जलाने से भगवान प्रसन्न होते हैं और भक्त की सभी मनोकामना पूरी करते हैं।
साल 2020 अपरा एकादशी व्रत 18 मई को है।
अपरा एकादशी तिथि – 18 मई 2020
19 मई को, पारण (व्रत तोड़ने का) समय - 05:28 प्रातः से सुबह 08:12
एकादशी तिथि प्रारम्भ - मई 17, 2020 को दोपहर 12:42 बजे से
एकादशी तिथि समाप्त - मई 18, 2020 को दोपहर 03:08 बजे तक
पारण तिथि के दिन द्वादशी समाप्त होने का समय - सांय 05:31 बजे
अपरा एकादशी व्रत धार्मिक दृष्टि से बेहद महत्वपूर्ण व्रत है। यह व्रत 18 मई को रखा जाएगा। हिन्दू पंचांग के अनुसार, अपरा एकादशी हर साल ज्येष्ठ माह में कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि के दिन रखा जाता है। मान्यता के अनुसार, इस व्रत को करने से धन की देवी लक्ष्मी प्रसन्न होती हैं और मां के आशीर्वाद से साधक के जीवन में सुख-समृद्धि आती है।
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार एकादशी के पावन दिन चावल का सेवन नहीं करना चाहिए। ऐसा माना जाता है कि इस दिन चावल का सेवन करने से मनुष्य का जन्म रेंगने वाले जीव की योनि में होता है। इस दिन जो लोग व्रत नहीं रखते हैं, उन्हें भी चावल का सेवन नहीं करना चाहिए।
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार दान करने का बहुत अधिक महत्व बताया गया है। अपरा एकादशी के दिन अपनी क्षमता के अनुसार दान अवश्य करना चाहिए। इस दिन किए हुए दान का कई गुना फल मिलता है।
एकादशी व्रत दशमी तिथि से ही प्रारंभ हो जाता है और यह व्रत द्वादशी के दिन समाप्त हो जाता है। व्रत की पूर्व संध्या अर्थात दशमी तिथि की रात्रि में सात्विक भोजन करें। एक मान्यता के अनुसार, एकादशी का व्रत रखने वाले व्यक्ति को दशमी तिथि के दिन सूर्यास्त के बाद भोजन नहीं करना चाहिए। एकादशी के दिन प्रातः जल्दी उठें और इस दिन गंगाजल से स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण कर व्रत का संकल्प करें। इसके बाद पूजा स्थल की साफ-सफाई करें और भगवान विष्णु और मां लक्ष्मी की प्रतिमा को भी गंगाजल से स्नान कराएं।
अपरा एकादशी के दिन व्रत को देर तक नहीं सोना चाहिए। इस दिन घर पर तामसिक भोजन न बनाएं। भोजन में लहसुन, प्याज का इस्तेमाल न करें। आज के दिन घर में चावल न बनाएं, बल्कि द्वादशी के दिन चावल ग्रहण करें।
एकादशी से एक दिन पहले ही व्रत के नियमों का पालन करना शुरू कर दें। अपरा एकादशी के दिन ब्रह्म मुहूर्त में उठकर घर की साफ-सफाई करें। स्नान करने के बाद स्वच्छ वस्त्र धारण करें व्रत का संकल्प लें। अब घर के मंदिर में भगवान विष्णु और बलराम की मूर्ति अथवा फोटो के सामने दीपक जलाएं। इसके बाद विष्णु की प्रतिमा को अक्षत, फूल, मौसमी फल, नारियल और मेवे चढ़ाएं। भगवान श्रीहरि की पूजा करते वक्त तुलसी के पत्ते अवश्य रखें। इसके बाद धूप दिखाकर प्रभु नारायण की आरती उतारें। अब सूर्यदेव को जल अर्पित करें। एकादशी की कथा सुनें या सुनाएं और व्रत के दिन निर्जला व्रत करें। शाम के समय तुलसी के पास गाय के घी का एक दीपक जलाएं। इस दिन व्रतियों को रात के समय सोना नहीं चाहिए। भगवान का भजन-कीर्तन करें और अगले दिन पारण के समय किसी ब्राह्मण या गरीब को यथाशक्ति भोजन कराए और दक्षिणा देकर विदा करें। इसके बाद अन्न और जल ग्रहण कर व्रत का पारण करें
एकादशी हिंदू पंचाग के अनुसार प्रत्येक मास की ग्यारस यानि ग्यारहवीं तिथि एकादशी कहलाती है जिसका धार्मिक रूप से बहुत महत्व होता है। हिंदू धर्म में एकादशी के दिन व्रत उपवास पूजा आदि करना बहुत ही पुण्य फलदायी माना जाता है। एक हिंदू वर्ष में कुल 24 एकादशियां आती हैं। मलमास या कहें अधिकमास की एकादशियों सहित इनकी संख्या 26 हो जाती है। प्रत्येक मास की दोनों एकादशियों का अपना विशेष महत्व है। ज्येष्ठ मास के कृष्ण और शुक्ल पक्ष की एकादशियां तो बहुत ही खास मानी जाती हैं।