Yogi Government: उत्तर प्रदेश सरकार ने भाजपा नेताओं और उसके सहयोगी दलों के नेताओं द्वारा राज्य के अधिकारियों, विशेषकर पुलिस के अत्याचार की बढ़ती शिकायतों पर ध्यान देना शुरू कर दिया है। जहां शिकायतें सही पाई गईं हैं। वहां त्वरित कार्रवाई की गई है।
यह भाजपा के भीतर चल रही इस सुगबुगाहट के बाद है कि योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व वाली सरकार में अधिकारी ही फैसले लेते हैं और निर्वाचित प्रतिनिधियों को दरकिनार किया जा रहा है। जिसके पार्टी को 2027 विधानसभा चुनाव में इसकी भारी कीमत चुकानी पड़ सकती है।
पिछले सप्ताह, राज्य सरकार ने एक विशेष जांच दल (एसआईटी) से जांच कराने का आदेश दिया और पूर्वी उत्तर प्रदेश के गाजीपुर जिले में एक एसएचओ सहित छह पुलिस कर्मियों को निलंबित कर दिया। यह घटना 9 सितंबर को एक पुलिस स्टेशन के बाहर हुए विवाद के बाद 32 वर्षीय भाजपा कार्यकर्ता की मौत के बाद हुई थी। जिले के भाजपा नेताओं द्वारा लखनऊ में मुख्यमंत्री से मुलाकात के बाद सरकार ने हस्तक्षेप किया ।
गाजीपुर की घटना से कुछ दिन पहले, अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) ने एक हफ्ते से ज़्यादा समय तक राज्यव्यापी विरोध प्रदर्शन किया था। उनका आरोप था कि बाराबंकी में पुलिस ने उनके कार्यकर्ताओं और छात्रों पर लाठीचार्ज किया था, जबकि वे श्री राम स्वरूप स्मारक विश्वविद्यालय के कामकाज में कथित अनियमितताओं के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे थे। आरएसएस की छात्र शाखा ने लाठीचार्ज के वीडियो और तस्वीरें जारी कीं थी। साथ ही गंभीर रूप से घायल अपने कार्यकर्ताओं और छात्रों को अस्पताल में भर्ती कराया।
एबीवीपी के विरोध प्रदर्शन के बाद संबंधित क्षेत्र के सर्कल ऑफिसर को तुरंत हटा दिया गया, बाद में चार और पुलिसकर्मियों को निलंबित कर दिया गया और जांच के आदेश दिए गए। जब एबीवीपी ने फिर भी अपना विरोध प्रदर्शन वापस नहीं लिया तो आदित्यनाथ ने उनके नेताओं को एक बैठक के लिए बुलाया और उन्हें सभी दोषियों के खिलाफ कार्रवाई का आश्वासन दिया।
एबीवीपी के एक नेता ने कहा कि वे आदित्यनाथ की प्रतिक्रिया की सराहना करते हैं। उन्होंने कहा कि हमें सबसे ज़्यादा हैरानी इस बात की हुई कि मुख्यमंत्री ने हमें बैठक के लिए बुलाया, और न सिर्फ़ धैर्यपूर्वक हमारी बात सुनी, बल्कि हमारी उम्मीद से भी बढ़कर काम किया। विश्वविद्यालय की जांच के अलावा, उन्होंने व्यवस्था की खामियों को दूर करने के लिए राज्यव्यापी अभियान चलाने का आदेश दिया। साथ ही विश्वविद्यालय द्वारा किए गए अतिक्रमण पर भी कार्रवाई की गई।
वहीं, जुलाई में बाल विकास एवं महिला कल्याण राज्य मंत्री प्रतिभा शुक्ला कानपुर देहात के अकबरपुर इलाके में एक थाने के बाहर धरने पर बैठ गईं और थाना प्रभारी (एसएचओ) को हटाने की मांग की। उन्होंने आरोप लगाया कि एसएचओ पार्टी कार्यकर्ताओं के साथ दुर्व्यवहार कर रहे हैं और उनके खिलाफ झूठे मामले दर्ज कर रहे हैं, और खास तौर पर “ब्राह्मण” कार्यकर्ताओं को निशाना बनाया जा रहा है।
प्रतिभा शुक्ला ने कहा, “मान सम्मान के आगे कोई समझौता नहीं होता।” जब तक एसएचओ को नहीं हटाया जाता, हम अपना धरना समाप्त नहीं करेंगे। वह कार्यकर्ताओं के साथ दुर्व्यवहार करता है, झूठे मुकदमे दर्ज करता है, अपना आपा खो देता है। क्या यह सपा (समाजवादी पार्टी) की सरकार है?… (नहीं) यह भाजपा की सरकार है और योगी जी की सरकार है।” सूत्रों ने बताया कि इसके बाद पुलिस चौकी प्रभारी को तत्काल हटा दिया गया, वहीं इंस्पेक्टर का भी तबादला कर दिया गया है।
एक और हालिया मामले में बागवानी विभाग के मंत्री दिनेश प्रताप सिंह ने पुलिस पर दुर्व्यवहार का आरोप लगाया। जब भाजपा कार्यकर्ता कांग्रेस नेता राहुल गांधी के हालिया अमेठी दौरे के दौरान उनके खिलाफ प्रदर्शन कर रहे थे। सिंह ने राज्य भाजपा प्रमुख भूपेंद्र चौधरी को एक पत्र लिखकर कहा कि जब वह और अन्य लोग सड़क किनारे विरोध प्रदर्शन कर रहे थे और यातायात में कोई व्यवधान नहीं डाल रहे थे। तब भी पुलिस ने उन्हें हटा दिया और पार्टी के झंडे छीन लिए।
भाजपा के सहयोगी दलों में सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी (एसबीएसपी) ने मार्च में बलिया के बांसडीह पुलिस स्टेशन के बाहर विरोध प्रदर्शन किया और भाजपा सरकार को अल्टीमेटम दिया, क्योंकि स्थानीय स्तर पर उनके खिलाफ की गई शिकायत के बाद पुलिसकर्मियों ने कथित तौर पर एसबीएसपी कार्यकर्ताओं की पिटाई की थी। सूत्रों ने बताया कि घटना की वरिष्ठ अधिकारियों द्वारा जांच के बाद दो पुलिसकर्मियों को निलंबित कर दिया गया।
एसबीएसपी के मुख्य प्रवक्ता अरुण राजभर,जो पार्टी प्रमुख ओम प्रकाश राजभर के बेटे है। उन्होंने द इंडियन एक्सप्रेस को बताया, “पहले एक्शन नहीं होता था, लेकिन इधर बीच में जितनी भी घटनाएं हुई हैं। संज्ञान में आने पे, चाहे कोई कर रहा हो, एक के बाद एक कार्रवाई हो रही है।
अरुण पिछले एक साल में एसबीएसपी कार्यकर्ताओं के साथ पुलिस द्वारा “दुर्व्यवहार” की एक दर्जन घटनाओं का दावा करते हैं और कहते हैं कि वरिष्ठ अधिकारियों द्वारा पूछताछ के बाद सभी में कार्रवाई की गई है। वो कहते हैं, “जौनपुर, फिरोजाबाद, वाराणसी आदि में ऐसी घटनाएँ हुईं, और हमने वरिष्ठ अधिकारियों या मुख्यमंत्री से मुलाकात की… यह संदेश गया है कि अधिकारियों को कम से कम नियमानुसार हमारी बात तो सुननी चाहिए, और दुर्व्यवहार नहीं करना चाहिए।”
जनवरी में, अपना दल (एस) के नेता आशीष पटेल, जो राज्य मंत्री और केंद्रीय मंत्री अनुप्रिया पटेल के पति हैं। उन्होंने एक पार्टी कार्यक्रम में सार्वजनिक रूप से दावा किया कि उन्हें यूपी पुलिस स्पेशल टास्क फोर्स (एसटीएफ) द्वारा “धमकी” दी जा रही है। इस कार्यक्रम में बोलते हुए पटेल ने कहा कि उनके पैर में गोली मारने के बजाय (जैसा कि कई एसटीएफ मुठभेड़ों में होता है), पुलिस को “मेरे सीने में गोली मार देनी चाहिए”, और कहा कि उन्हें और उनकी पार्टी के लोगों को कोई डर नहीं है।
भाजपा नेता इस बात को स्वीकार करते हैं कि सरकार विधायकों और सांसदों सहित पार्टी कार्यकर्ताओं और सहयोगी दलों की शिकायतों के प्रति “बदलाव” दिखा रही है। सूत्रों का कहना है कि अधिकारियों को जनप्रतिनिधियों की समस्याओं को उचित सुनवाई के निर्देश भी दिए गए हैं।
भाजपा के एक वरिष्ठ नेता ने स्वीकार किया कि सरकार “जन प्रतिनिधियों और पार्टी कार्यकर्ताओं के मुद्दों, विशेष रूप से पुलिस और अन्य अधिकारियों के आचरण के मुद्दों को हल करने के लिए अपना सर्वश्रेष्ठ प्रयास कर रही है”, लेकिन उन्होंने आगे कहा, “अभी भी एक लंबा रास्ता तय करना है”।
इन सभी घटनाओं को देखने के बाद एबीवीपी नेता इस बात से सहमत हैं और कहते हैं, “यह धारणा दूर करने के लिए और अधिक प्रयास की आवश्यकता है कि नौकरशाही ही सब कुछ चला रही है।”
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एनडीए नेताओं द्वारा व्यक्त की गई इस आशंका के बारे में पूछे जाने पर कि इससे चुनावों में उन्हें नुकसान हो सकता है, क्योंकि अपने मतदाताओं की मदद करने के उनके कुछ प्रयासों को अधिकारियों ने बाधित किया था। भाजपा प्रवक्ता राकेश त्रिपाठी ने द इंडियन एक्सप्रेस को बताया, “नौकरशाही से जुड़े कुछ मुद्दे थे क्योंकि अतीत में बसपा और सपा दोनों सरकारों ने निचले स्तर पर जातिवाद को बढ़ावा दिया था। लेकिन अब जवाबदेही तय की जा रही है।”
पुलिस की कथित मनमानी की घटनाओं पर त्रिपाठी ने कहा, “पिछली सरकारों के विपरीत, पुलिस को पारदर्शिता के साथ काम करने की आज़ादी दी गई है। कभी-कभी इस शक्ति का दुरुपयोग भी होता है। लेकिन जब भी ऐसी घटनाएं हमारे संज्ञान में आती हैं, तुरंत संज्ञान लिया जाता है, दोषियों को निलंबित या हटाया जाता है… हमारे लिए जनता और उनके मुद्दे प्राथमिकता हैं।”
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