केंद्र सरकार के लड़कियों के विवाह की उम्र की सीमा 18 से 21 वर्ष करने के प्रस्ताव को पारित करने का असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्व सरमा स्वागत किया है। उन्होंने इस प्रस्ताव पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के प्रति खुशी जताते हुए कहा कि जीवन में बड़ा लक्ष्य हासिल करने में मदद करने के लिए महिला सशक्तिकरण में मदद के प्रति यह एक ऐतिहासिक फैसला है।

उन्होंने कहा कि नए प्रस्ताव से महिलाओं को और मजबूती मिलेगी तथा विवाह के बारे में खुद निर्णय लेने के अपने अधिकार को वे और परिपक्व सोच के साथ रख सकेगी। 21 वर्ष की उम्र से पहले लड़कियों का विवाह नहीं करने देने से उन्हें अपनी पढ़ाई-लिखाई और कैरियर बनाने का और अवसर मिल सकेगा। अभी तक पिछड़े और ग्रामीण क्षेत्रों में लड़कियों के 18 वर्ष का होते ही विवाह कर दिया जाता था। इससे उन्हें आगे बढ़ने का कम अवसर मिल पाता था।

सरकार के नए प्रस्ताव पर कैबिनेट की मंजूरी के बाद अब सरकार बाल विवाह निषेध अधिनियम, 2006 में एक संशोधन संसद में पेश करेगी। इसके चलते विशेष विवाह अधिनियम और हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 जैसे व्यक्तिगत कानूनों में संशोधन लाया जाएगा।

अभी लड़कियों की शादी की उम्र कानूनी रूप से 18 साल है। अब इस बदलाव के बाद 21 साल से कम उम्र की लड़कियों का विवाह करना गैर-कानूनी होगा। बुधवार को कैबिनेट की मिली मंजूरी जया जेटली की अध्यक्षता वाली केंद्र की टास्क फोर्स द्वारा दिसंबर 2020 में नीति आयोग को सौंपी गई सिफारिशों पर आधारित है।

इस प्रस्ताव के बारे में ‘द इंडियन एक्सप्रेस’ से बात करते हुए जया जेटली ने कहा, “मैं स्पष्ट करना चाहती हूं कि सिफारिश के पीछे हमारा तर्क कभी भी जनसंख्या नियंत्रण करने का नहीं रहा। राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण द्वारा जारी हाल के आंकड़ों से पता चलता है कि कुल प्रजनन दर घट रही है और जनसंख्या नियंत्रण में है। शादी की उम्र को लेकर उन्होंने कहा कि इसके पीछे का हमारा मकसद महिलाओं का सशक्तिकरण करना है।

राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण के आंकड़ों के अनुसार, भारत ने पहली बार 2.0 की कुल प्रजनन दर हासिल की। यह दर्शाता है कि आने वाले सालों में जनसंख्या विस्फोट की संभावना नहीं है। आंकड़ों से यह भी पता चला है कि बाल विवाह 2015-16 में 27 प्रतिशत से मामूली कम होकर 2019-21 में 23 प्रतिशत हो गया है।