Bihar Politics: लालू प्रसाद यादव ने शंकराचार्य की दलितों के बारे में कथित अपमानजनक टिप्पणी के विरोध में शिवानंद तिवारी के नेतृत्व में अपनी पहली राजनीतिक रैली में भाग लिया। इतना ही नहीं उन्होंने समुदाय के हितों को उठाकर अपने पॉलिटिकल करियर की शुरुआत की। साढ़े पांच दशक बाद आरजेडी के मुखिया और बिहार के पूर्व सीएम अब भीमराव अंबेडकर की तस्वीर के कथित अपमान के कारण सुर्खियों में आ गए हैं।
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, लालू यादव कांग्रेस की अपर कास्ट की पॉलिटिक्स के खिलाफ एक ओबीसी की आवाज से लेकर 1990 में एक समाजवादी नेता का सफर तय कर चुके हैं। साल 1990 से लेकर 1995 के बीच लालू प्रसाद यादव ने सीएम की कुर्सी संभाली थी। इस दौरान उन्होंने गरीब गुरबा की वकालत की थी। उन्होंने दलितों के मुद्दे को उठाकर अपनी राजनीति शुरू की। तब से वह राजनीति में आगे बढ़े हैं और अपने समर्थन आधार को तैयार किया है। सालों बाद भी वह राज्य की पॉलिटिक्स में बड़ी ताकत बने हुए हैं।
1995 के बाद आया बड़ा बदलाव
1995 के विधानसभा चुनावों के बाद लालू की राजनीति में एक बड़ा बदलाव आया। इस वक्त उन्होंने मुस्लिम-यादव समर्थन आधार तैयार करना शुरू कर दिया। चारा घोटाले में कथित संलिप्तता के कारण उनके सीएम पद से हटने और 1997 में उनकी पत्नी राबड़ी देवी के मुख्यमंत्री बनने के बाद आरजेडी ने कुछ अपर कास्ट के नेताओं जैसे कि पूर्व सांसद रघुवंश प्रसाद सिंह, जगदानंद सिंह और प्रभुनाथ सिंह की मौजूदगी के साथ मुस्लिम-यादव छवि को और मजबूत करना शुरू कर दिया। 2000 के विधानसभा चुनाव के करीब आते-आते लालू की राजनीति ने मंडलीकरण से धर्मनिरपेक्षीकरण और फिर यादवीकरण तक अपना बदलाव पूरा कर लिया था।
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लालू यादव ने दलितों का समर्थन हासिल करने की कोशिश की
आरजेडी चीफ ने राज्य की आबादी में 19.65% हिस्सेदारी रखने वाले दलितों का समर्थन हासिल करने की कोशिश की। इसके लिए उन्होंने मुजफ्फरपुर के दलित नेता रमई राम को पार्टी का प्रदेश अध्यक्ष बनाया। रमई राम 2000 में आरजेडी में शामिल हुए थे। पालिटिकल एक्सपर्ट संजय कुमार ने इंडियन एक्सप्रेस से कहा, ‘यह (राम की नियुक्ति) महज दिखावा थी क्योंकि मुस्लिम और यादव 2000 के विधानसभा चुनावों के बाद भी आरजेडी के मुख्य वोटर बने रहे। उस चुनाव में पार्टी ने इन दोनों समुदायों से कई उम्मीदवार उतारे थे। लालू के लिए दलित मतदाताओं को एकजुट करना मुश्किल था क्योंकि उस समय तक रामविलास पासवान पासवान समुदाय के मुख्य हितधारक के रूप में उभर चुके थे, जबकि रविदास समुदाय कांग्रेस के साथ मजबूती से खड़ा था और आज भी बना हुआ है।’
आरजेडी के कितने विधायक एससी कैटेगरी से हैं?
लालू के बेटे और पूर्व डिप्टी सीएम तेजस्वी प्रसाद यादव ने 2020 के विधानसभा चुनावों से पहले पदभार संभालने के बाद से दलित वोटों को एकजुट करने के लिए इस चाल को फिर से दोहराया, लेकिन समुदाय के प्रमुख आरजेडी नेता या तो पार्टी छोड़ चुके हैं या चुप हैं। उदाहरण के लिए, पूर्व स्पीकर उदय नारायण चौधरी सुर्खियों से बाहर हैं जबकि पूर्व मंत्री श्याम रजक ने पिछले अगस्त में आरजेडी छोड़ दी थी। आरजेडी के 76 विधायकों में से केवल छह एससी कैटेगरी से हैं।
लालू यादव पर एनडीए के नेताओं ने साधा निशाना
कथित अपमान का वीडियो वायरल होने के बाद एनडीए लालू यादव पर निशाना साधने में कोई भी कसर नहीं छोड़ रही है। 13 जून को बिहार राज्य अनुसूचित जाति आयोग ने लालू को नोटिस जारी किया। एक दिन बाद उपमुख्यमंत्री सम्राट चौधरी ने लालू की आलोचना की। 16 जून को केंद्रीय मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने भी लालू की आलोचना की। 19 जून को राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग ने पूर्व मुख्यमंत्री को नोटिस जारी किया। बिहार चुनाव से पहले नीतीश कुमार की सरकार ने बड़ा दांव चला है। पढ़ें पूरी रिपोर्ट…