What is RTH: राजस्थान सरकार द्वारा 21 मार्च को राइट टू हेल्थ बिल पारित किए जाने के बाद से राजस्थान में इंडियन मेडिकल एसोसिएशन बड़े पैमाने पर विरोध कर रहा है। 27 मार्च को सरकारी और निजी अस्पतालों से जुड़े हजारों डॉक्टरों, पैरामेडिक्स और स्वास्थ्य पेशेवरों ने अलग-अलग शहरों में इस बिल के खिलाफ प्रदर्शन किया था। इनका कहना है कि यह कानून काफी सख्त है और इसे जल्द वापस लिया जाना चाहिए। जबकि सरकार का कहना है कि सड़कों पर दिखाई दे रहा विरोध राजनीति से प्रेरित है।
इंडियन मेडिकल एसोसिएशन के राजस्थान अध्यक्ष सुनील चुघ विरोध का नेतृत्व करने वाले प्रमुख व्यक्तियों में से एक हैं। उनका दावा है कि उन्हें राजस्थान के सभी 55,000 सार्वजनिक और निजी डॉक्टरों का समर्थन प्राप्त है। डॉक्टर विरोध क्यों कर रहे हैं, इस पर उन्होंने द इंडियन एक्सप्रेस से बात की।
क्या है इंडियन मेडिकल एसोसिएशन की मांग
इस सवाल के जवाब में सुनील चुघ कहते हैं कि मार्च 2022 से हम सरकार से बात कर रहे हैं। कई बार राहत देने का वादा किया गया है। जिनमें से कुछ हमें मिला है। लेकिन ज्यादातर बार सरकार अपनी बात से पीछे हट गई है। इसलिए हमें अब सरकार पर विश्वास नहीं है। हम कह रहे हैं कि यह विधेयक (RTH) सख्त है इसलिए इसे वापस लिया जाए।
सरकार का क्या कहना है?
सरकार का कहना है कि एक बार विधेयक के विधानसभा में पारित हो जाने के बाद वह इसको वापस नहीं ले सकती है। इसके जवाब में सुनील चुघ कहते हैं कि जब हम सरकार को अपनी समस्याएं बता रहे थे, मुख्य सचिव को 17 मार्च को सौंपे गए एक औपचारिक पत्र सहित सभी लंबित मुद्दों को गिना रहे थे, तो बिल पास होने से पहले इन पर ध्यान क्यों नहीं दिया गया? अगर हम बिल पास होने से पहले आपको यह नहीं बताते हैं कि इसमें क्या गलत है, तो यह हमारी गलती है। लेकिन जब हमने आपको अपनी आपत्तियों के बारे में बताया तो आपने कोई कार्रवाई क्यों नहीं की?
किन प्रमुख मुद्दों का विरोध कर रहे हैं?
सुनील चुघ ने कहा, “हमारे कहने के बाद ही बिल में ‘इमरजेंसी’ को परिभाषित किया गया है, जो ठीक है। लेकिन उन्होंने अभी भी अंतिम कानून से प्रसूति संबंधी आपात स्थिति को नहीं हटाया है । आपको यह समझना होगा कि सभी प्रसव आपात स्थिति हैं। इसके बाद हमने उन्हें स्पष्ट रूप से कहा कि छोटे अस्पतालों में आपातकालीन मामलों के इलाज की सुविधा नहीं है क्योंकि उनके पास आईसीयू या कई डॉक्टर नहीं हैं। उन्होंने कहा कि हम यह कहकर (नामित अस्पतालों की परिभाषा में) इसका ध्यान रखेंगे कि 50 बिस्तरों से कम वालों को अनिवार्य रूप से आपातकालीन देखभाल की पेशकश नहीं करनी होगी। लेकिन अंतिम विधेयक में निर्दिष्ट अस्पतालों की इस परिभाषा को शामिल नहीं किया गया है”
सरकार जो धारणा दे रही है वह यह है कि आप किसी भी निजी अस्पताल में जाएं और आपके लिए सब कुछ मुफ्त हो जाएगा। इससे परेशानी होगी। लोग अस्पताल आएंगे और कहेंगे कि हमारा मुफ्त में इलाज करो।
अगर हम उन्हें बताएंगे कि कोई विशेष इलाज या प्रक्रिया शामिल नहीं है, तो वे इस बात पर जोर देंगे कि आरटीएच है, तो हम उन्हें मना करने की हिम्मत कैसे कर सकते हैं। वे कानूनी कार्रवाई की धमकी भी दे सकते हैं, लेकिन इससे पहले मौके पर ही तोड़फोड़ हो सकती है। उन्होने कहा कि हम इन मुद्दों को लेकर कई बार सरकार से बात कर चुके हैं लेकिन सरकार सुनने को तैयार नहीं है। सुनील चुघ ने कहा कि डॉक्टर बहुत गुस्से में हैं और आने वाले दिनों में आंदोलन और ज्यादा तेज होगा।