मोहाली के फेज 11 में मौजूद पुनर्वास कॉलोनी के लोगों ने शुक्रवार को नगर निगम और जीएमएडीए के संयुक्त अतिक्रमण विरोधी अभियान के खिलाफ पिछले तीन दिनों से चल रहे अपने विरोध प्रदर्शन के तहत अपने टेंट लगा लिए। मोहाली के चौथे फेज से 27 नवंबर को शुरू हुआ अभियान लोगों के कड़े विरोध के कारण रोकना पड़ा। इसके बाद अधिकारियों ने 1 दिसंबर 2025 से पहले आखिरी सार्वजनिक सूचना जारी कर अतिक्रमणकारियों को तीन दिन के अंदर अवैध निर्माण हटाने का आदेश दिया।

इसका पालन ना करने पर नगर निगम और जीएमएडीए ने पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट के निर्देशों के तहत अतिक्रमण हटाने की कार्रवाई शुरू करने की घोषणा की। जैसे ही अतिक्रमण विरोधी अभियान 11वें फेज में पहुंचा, 1984 के सिख नरसंहार की यादें उन परिवारों के मन में ताजा हो गईं जो कभी उस भयावह सपने से बच निकले थे।

हमने यहां पर एक नया जीवन शुरू किया- इंदरजीत कौर

कॉलोनी की रहने वाली इंदरजीत कौर ने इंडियन एक्सप्रेस से कहा, “हमने अपने पिता और दो भाइयों को भीड़ द्वारा आग में फेंककर जिंदा जलाते हुए देखा। जब हम बच गए, तो हम यहां आ गए। उस समय सरकार ने हमें रहने के लिए ये छोटे कमरे दिए। हमने अपने घर, अपना काम, सब कुछ छोड़ दिया। हमने यहां एक नया जीवन शुरू किया, छोटी दुकानें खोलीं, अपने बच्चों का पालन-पोषण किया और अब, सरकार हाई कोर्ट के आदेशों का हवाला देते हुए हमारे कमरों के बगल में बनी दुकानों को गिराने आ रही है। हम तब विस्थापित हुए थे और आज भी हमारे परिवार पूरी तरह से उबर नहीं पाए हैं। उस सरकार और इस सरकार में क्या फर्क है, अगर नतीजा अभी भी हमारा विस्थापन ही है।”

कई परिवारों ने कहा कि उन्होंने ये छोटी दुकानें इच्छा से नहीं, बल्कि मजबूरी में बनाईं। लोगों ने कहा, “हमें कभी नौकरी नहीं मिली। घर चलाने के लिए हमने थोड़ी जगह बढ़ाकर दुकानें खोल लीं। यही हमारी आजीविका है। हमारा एकमात्र सहारा।”

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अब हम कहां पर जाएं- पिंकी सोनी

यहां पर रहने वालीं पिंकी सोनी ने बताया कि कैसे वह अपने छोटे बच्चों को लेकर दिल्ली से भागी थीं। उन्होंने कहा, “मुस्लिम परिवारों ने हमारी मदद की। उन्होंने हमें खाना खिलाया, आश्रय दिया और एक राहत शिविर में पहुंचाया। वहां से हम यहां आए। सरकार ने हमें माचिस की डिब्बी जैसे छोटे कमरे दिए और हमने उन्हें अपना घर बना लिया। हमारे बच्चे यहीं पले-बढ़े। लेकिन अब, दोबारा तोड़फोड़ की खबर सुनकर, हम रात को सो नहीं पा रहे हैं। अब हम कहां जाएं।”

हम इतना ज्यादा किराया नहीं दे सकते

छोटे से समुदाय ने सामूहिक रूप से कहा, “अगर सरकार हमें उचित व्यावसायिक स्थान देती है, तो हम अपने घरों से दुकानें क्यों चलाएंगे? हम सार्वजनिक सड़कों पर अवैध कब्जा करने वाले नहीं हैं। हम इतना ज्यादा किराया नहीं दे सकते। हमारे पास और क्या विकल्प है। जीएमएडीए और नगर निगम की इस कार्रवाई ने दशकों पुराने घावों को फिर से हरा कर दिया है। दंगों में सब कुछ खो देने के बाद अपना जीवन फिर से संवारने वाले ये परिवार एक बार फिर विस्थापन के मंडराते खतरे का सामना कर रहे हैं। यह पूरा अभियान 2019-2022 के हाई कोर्ट के आदेश के अनुपालन में चलाया जा रहा है।

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