वल्लभ ओझरकर
महाराष्ट्र में एकनाथ शिंदे-भाजपा गठबंधन सरकार ने हाल ही में 1975-77 के दौरान तत्कालीन प्रधान मंत्री इंदिरा गांधी द्वारा लगाए गए आपातकाल के दौरान जेल में बंद राजनीतिक कार्यकर्ताओं के लिए पेंशन योजना की बहाली की घोषणा की, राज्य कांग्रेस ने इस कदम की आलोचना करते हुए पूछा कि शिवसेना के बागी गुट के नेता सीएम शिंदे ने यह फैसला कैसे ले लिया। पार्टी ने दावा किया कि यह शिवसेना के संस्थापक बाल ठाकरे की विचारधारा के खिलाफ है, जिन्होंने खुले तौर पर आपातकाल का समर्थन किया था।
यह योजना शुरू में देवेंद्र फडणवीस के नेतृत्व वाली भाजपा-शिवसेना सरकार द्वारा 2018 में शुरू की गई थी। इसे 2020 में शिवसेना नेता उद्धव ठाकरे के नेतृत्व वाली महा विकास अघाड़ी (एमवीए) गठबंधन सरकार ने समाप्त कर दिया था, जिसमें कांग्रेस और एनसीपी को सहयोगी के रूप में शामिल किया गया था। शिंदे के नेतृत्व वाली शिव सेना की नई सरकार में, फडणवीस डिप्टी सीएम हैं, जबकि भाजपा वरिष्ठ गठबंधन सहयोगी है।
मुंबई कांग्रेस इकाई के प्रवक्ता सचिन सावंत ने कहा, ‘यह पेंशन योजना विशुद्ध रूप से आरएसएस के लिए है। इससे भी दुर्भाग्यपूर्ण बात यह है कि सीएम शिंदे जो कहते हैं कि वह शिवसेना के संस्थापक दिवंगत बाल ठाकरे की विरासत को आगे बढ़ा रहे हैं, इस फैसले पर चुप है। यह सर्वविदित है कि ठाकरे ने आपातकाल का समर्थन किया था। जब आप कहते हैं कि आप ठाकरे की विरासत को आगे बढ़ा रहे हैं तो आप इसकी अनुमति कैसे दे सकते हैं? क्या यह विरोधाभासी नहीं है?”
कांग्रेस का दावा है कि बाल ठाकरे ने आपातकाल का समर्थन किया था
1975 में, देश में आपातकाल घोषित करने से ठीक पहले, इंदिरा गांधी, उनके बेटे संजय गांधी और ठाकरे के बीच एक बैठक हुई थी। बैठक के दौरान, जिसमें विभिन्न मुद्दों पर चर्चा हुई थी। ठाकरे ने गांधी को उनके प्रस्तावित आपातकालीन कदम के लिए अपना समर्थन दिया। शिवसेना के संस्थापक ने तब यह भी कहा था कि “अगर यह देश को और अधिक अनुशासित बनाता है, तो आपातकाल की आवश्यकता है” और वह इसके लिए अपना समर्थन देंगे।
शिवसेना तब वामपंथी और आरएसएस सहित कई राजनीतिक दलों और संगठनों की सूची में थी, जिन्हें देश में आपातकाल लागू करने के बाद गांधी के नेतृत्व वाली सरकार द्वारा प्रतिबंधित किया जा रहा था, और ठाकरे भी गिरफ्तार हो सकते थे। तब कई लोगों द्वारा यह आरोप लगाया गया था कि बैठक के दौरान ठाकरे ने इंदिरा गांधी के साथ एक समझौता किया था और शिवसेना का नाम उन पार्टियों की सूची से हटा दिया था जिन पर प्रतिबंध लगाया जाना था। कई लोगों ने यह भी दावा किया कि ठाकरे कई विपक्षी नेताओं की तरह गिरफ्तार होने से बचने के लिए और अपनी पार्टी और उसके प्रकाशन “मार्मिक” पर सरकार की कार्रवाई को रोकने के लिए इंदिरा गांधी के कठोर कदम का समर्थन किया था।
ठाकरे और शिवसेना ने बाद में यह समझाने की कोशिश की थी कि उन्होंने आपातकाल का समर्थन इसलिए किया था, क्योंकि उस समय देश में “अनुशासन सुनिश्चित करने” की आवश्यकता थी और जनता पार्टी का गठन करने वाले विपक्षी दलों के नेता देश के हितों के खिलाफ बयानबाजी कर रहे थे, तब यह “आवश्यक” था ।
शिवसेना ने तब कहा कि ठाकरे का कदम “राष्ट्रीय हित” में था। शिवसेना के एक पदाधिकारी ने कहा, ‘लेकिन इसका मतलब यह नहीं था कि वह (ठाकरे) विपक्षी दलों और प्रेस पर सख्ती का समर्थन कर रहे थे। उन्होंने मीडिया से और अपनी रैलियों में कई बार कहा था कि उन्होंने अपनी बैठक के दौरान गांधी से कहा था कि अगर आपातकाल लगाने का फैसला राष्ट्रहित में है तो वह इसका समर्थन कर रहे हैं लेकिन अगर यह सरकार को बचाने के लिए है या सत्ता में बने रहने के लिए है तो वह इसकी निंदा कर रहे हैं।”