उत्तराखंड के बर्खास्त मुख्यमंत्री हरीश रावत अब गुरुवार (31 मार्च) को विधानसभा में बहुमत नहीं साबित कर पाएंगे। उत्तराखंड के नैनीताल हाईकोर्ट के दो जजों के खंडपीठ ने एक सदस्यीय बैंच के मंगलवार को दिए फैसले को उलट दिया है। हाईकोर्ट के एकल पीठ के न्यायाधीश यूसी ध्यानी ने निर्देश दिया था कि हरीश रावत 31 मार्च को विधानसभा में विश्वास मत हासिल करेंगे। लेकिन बुधवार को नैनीताल हाई कोर्ट के दो जजों के पीठ ने अपने ही एकलपीठ के निर्देश पर रोक लगा दी। इस मामले की सुनवाई की अगली तारीख छह अप्रैल तय की गई है।

बुधवार को नैनीताल हाई कोर्ट के न्यायधीश वीके बिष्ट और एएम जोजफ के सामने केंद्र सरकार के अटॉनी जनरल मुकुल रोहतगी ने एकल पीठ के जज यूसी ध्यानी के मंगलवार को दिए गए फैसले के खिलाफ रोक लगाने की याचिका दायर की। पांच घंटे की सुनवाई के बाद न्यायधीशों ने अपने ही एकल पीठ के फैसले पर रोक लगा दी। इस फैसले के बाद भाजपा और बागी कांगेसी विधायकों में खुशी की लहर दौड़ गई। दूसरी ओर पूर्व मुख्यमंत्री और कांग्रेस के नेता हरीश रावत के खेमे में मायूसी छा गई।

नैनीताल हाई कोर्ट की डबल बेंच के इस फैसले से उत्तराखंड के पहले बर्खास्त मुख्यमंत्री हरीश रावत को करारा झटका लगा है। भाजपा और कांग्रेस बागी विधायकों ने हाई कोर्ट के फैसले का स्वागत करते हुए कहा कि यह सत्य की जीत है। भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष अजय भट्ट ने कहा कि हरीश रावत छल-कपट के बल पर 18 मार्च को सरकार के अल्पमत में आने के बावजूद नौ दिन तक सत्ता में चिपके रहे।

उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री और बागी कांग्रेसियों के नेता विजय बहुगुणा ने अदालत के फैसले का स्वागत करते हुए कहा कि आखिरकार हरीश रावत को न्यायालय के फैसले से झटका लगना ही था। रावत झूठ और फरेब के बल पर बहुमत साबित करना चाहते थे। इधर फैसले से मायूस दिख रहे हरीश रावत ने कहा कि हम न्यायालय के फैसले का सम्मान करते है और हम आखिरी दम तक न्यायालय में न्याय की लड़ाई लडेंगे। उन्होंने कहा कि केंद्र सरकार ने उत्तराखंड के साथ जो अन्याय किया है, उसकी लड़ाई हम जनता के बीच ले जाएंगे। पूर्व संसदीय कार्यमंत्री इंदिरा ह्रदयेश ने कहा कि न्यायालय ने राष्ट्रपति शासन के लगने के मामले को संज्ञान में लिया है। अब न्यायालय को तय करना है कि संविधान की परिधि में उत्तराखंड में राष्ट्रपति शासन लगाना गलत था या सही। देहरादून में भाजपा के प्रदेश मुख्यालय में नैनीताल हाईकोर्ट के फैसले के बाद जमकर आतिशबाजी हुई।

गौरतलब है कि न्यायमूर्ति ध्यानी ने मंगलवार को सदन में शक्ति परीक्षण कराए जाने का आदेश देते हुए कहा था कि केंद्र द्वारा अनुच्छेद 356 को लागू किया जाना शक्ति का ऐसा प्रयोग है जिसका प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से दुरुपयोग नहीं किया जा सकता। उन्होंने कहा था कि लोकतांत्रिक रूप से निर्वाचित सदन को इस तरह से नष्ट नहीं किया जाना चाहिए। सदन में शक्ति परीक्षण ही बहुमत साबित करने के लिए एकमात्र रास्ता है। केंद्र का प्रतिनिधित्व कर रही टीम में शामिल अधिवक्ता नलिन कोहली ने कहा कि केंद्र अपना जवाब खंडपीठ के समक्ष चार अप्रैल को दाखिल करेगा। वहीं, दूसरा पक्ष अपना जवाब इसके अगले दिन दाखिल करेगा।

इस बीच न्यायमूर्ति ध्यानी ने कांग्रेस के बागी विधायकों की एक याचिका पर सुनवाई स्थगित कर दी। राष्ट्रपति शासन लगाए जाने के बाद स्पीकर गोविंद सिंह कुंजवाल द्वारा उन्हें अयोग्य ठहराए जाने को उन्होंने याचिका के जरिए चुनौती दी थी। न्यायाधीश ने उनकी अपील पर सुनवाई एक अप्रैल के लिए तय करते हुए कहा कि मंगलवार को उनके द्वारा जारी किए गए अंतरिम आदेश के मुताबिक उनके अयोग्य रहने के बावजूद उन्हें सदन में शक्ति परीक्षण के दौरान मतदान करने की इजाजत देकर राहत दी जा चुकी है।

अदालत ने उनसे यह भी कहा कि उन्हें सदन में शक्ति परीक्षण के दौरान वोट डालने की इजाजत दी गई है। लेकिन उनके वोट को शेष विधायकों के समान नहीं माना जाएगा। नौ बागी विधायकों में छह ने स्पीकर की कार्रवाई के खिलाफ एक अपील दायर कर इसकी वैधता पर सवाला उठाया। इसके पीछे उन्होंने यह आधार दिया है कि राष्ट्रपति शासन लगाए जाने और विधानसभा निलंबित किए जाने के बाद यह कार्रवाई की गई। 27 मार्च को राज्य में राष्ट्रपति शासन लगाए जाने के कुछ ही घंटों बाद स्पीकर ने दलबदल रोधी कानून के तहत कांग्रेस के नौ विधायकों को सदन की सदस्यता से अयोग्य ठहरा दिया था। इसके एक दिन बाद ही रावत सरकार का विधानसभा में शक्ति परीक्षण कराने का कार्यक्रम था।

इस बीच उत्तराखंड में राष्ट्रपति शासन लगाने के फैसले को सही ठहराते हुए केंद्रीय मंत्री एम वेंकैया नायडू ने बुधवार को कांग्रेस नेतृत्व को आड़े हाथ लेते हुए कहा कि वह केंद्र सरकार को जिम्मेदार ठहराने के बजाय आत्ममंथन करे कि उसके विधायक पार्टी छोड़कर क्यों जा रहे हैं। नायडू ने दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की उस टिप्पणी को भी खारिज कर दिया जिसमें उन्होंने कहा था कि मोदी सरकार दिल्ली में आम आदमी पार्टी (आप) की सरकार को गिराना चाहती है।

उन्होंने कहा, मैंने दिल्ली के मुख्यमंत्री को यह कहते सुना है कि उत्तराखंड के बाद हिमाचल और फिर दिल्ली की बारी आ सकती है। ऐसा कहकर वे अपनी नाकामियों से लोगों का ध्यान भटकाने की कोशिश कर रहे हैं और फिर केंद्र पर ठीकरा फोड़ने की कोशिश कर रहे हैं। केंद्र की इसमें कोई भूमिका नहीं है। लोकतंत्र की बात करने वाले ये लोग जो कह रहे हैं वह घड़ियाली आंसू बहाने जैसा है। केंद्र का एजंडा किसी सरकार को गिराना नहीं है और यह दुष्प्रचार है। उन्होंने उत्तराखंड में राजनीतिक संकट का ठीकरा कांग्रेस पर फोड़ा।

उन्होंने कहा कि अगर किसी पार्टी का विधायक पार्टी से निकल जाता है तो कोई केंद्र को कैसे जिम्मेदार ठहराया जा सकता है। हर बात के लिए केंद्र की आलोचना करना फैशन बन गया है। कांग्रेस विधायकों के दलबदल के लिए पार्टी नेतृत्व को जिम्मेदार ठहराते हुए नायडू ने कहा, कांग्रेस नेतृत्व को मंथन करना चाहिए कि उसके विधायक दलबदल क्यों कर रहे हैं । कांग्रेस के विधायक उनके नेतृत्व में विश्वास खो रहे हैं।

कांग्रेस ने उत्तराखंड में राष्ट्रपति शासन लगाने के मुद्दे पर विरोध जताते हुए केंद्र पर लोकतंत्र की हत्या करने का आरोप लगाया है। यह आरोप खारिज करते हुए नायडू ने कहा कि कांग्रेस और उसके समर्थकों ने 91 गैर-कांग्रेस सरकारों को बर्खास्त किया और अब वे हमें संदेश दे रहे हैं।