Uttarakhand HC on Quarantine Centres: देशभर में प्रवासी मजदूरों के लौटने के बाद कोरोना मरीजों की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है। इसके चलते राज्यों ने शुरुआत में जो तैयारियां की थीं, वो अब कम पड़ती नजर आ रही हैं। उत्तराखंड सरकार की इसी कमी के पर राज्य की हाईकोर्ट ने कड़ी टिप्पणी की है। उत्तराखंड हाईकोर्ट ने कहा है कि राज्य में गांव स्तर के क्वारैंटाइन सेंटर्स की हालत दयनीय है और सरकार ठीक से इन जगहों पर खाना तक नहीं दे पा रही है।
दरअसल, कोर्ट ने 28 मई को एक जनहित याचिका (पीआईएल) की सुनवाई के दौरान नैनीनात, उधम सिंह नगर, हरिद्वार और देहरादून के डिस्ट्रिक्ट लीगल सर्विस अथॉरिटी के सचिवों को क्वारैंटाइन सेंटर जाकर उनका हाल जानने के लिए कहा था। कोर्ट का आदेश था कि अधिकारी तीन दिन में रिपोर्ट फाइल कर दें। 2 जून को इसी मामले की सुनवाई के दौरान जस्टिस सुधांशु धुलिया और जस्टिस रविंद्र मैथानी की बेंच ने अपने आदेश में कहा, “इन रिपोर्ट्स को स्टडी करने के बाद हमें समझ आ रहा है कि गांव स्तर पर जो क्वारैंटाइन सेंटर बनाए गए हैं, वे बाकियों से काफी बुरी हालत में हैं। गांव में ज्यादातर क्वारैंटाइन सेंटर सरकारी स्कूलों में बनाए गए हैं और रिपोर्ट के मुताबिक, उनकी हालत दयनीय है।”
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बेंच ने आगे कहा, “पहली और सबसे जरूरी बात यह है कि इन केंद्रों में रखे गए लोगों के लिए खाने तक की कोई सुविधा नहीं दी गई है। यहां रहने वाले लोगों को गांववाले या उनके खुद के परिवारवाले ही खाना पहुंचाते हैं। कई क्वारैंटाइन सेंटर, जहां 20 से 30 लोग से ज्यादा रह रहे हैं, वहां भी सिर्फ 1 या दो टॉयलेट हैं। चौंकाने वाली बात यह है कि इन टॉयलेट की हालत भी बेहद खराब है।”
कोर्ट ने आदेश में कहा कि ग्राम सभाओं के पास फंड्स की कमी है और वे इन केंद्रों में प्रबंध करने की स्थिति में नहीं दिख रहे। कोर्ट ने राज्य सरकार के ही 4 मई के आदेश का जिक्र करते हुए कहा कि जिलाधिकारियों को ग्राम सभा और ग्राम प्रधानों के साथ सहयोग करने और फंड्स मुहैया कराने के लिए कहा गया है। लेकिन अभी तक यह हो नहीं रहा है। कोर्ट के इस आदेश के बाद मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने सभी जिलाधिकारियों को गांव में बने क्वारैंटाइन सेंटर्स पर विशेष रूप से ध्यान देने के लिए कहा। उन्होंने यह भी ऐलान किया कि अगर उत्तराखंड में किसी कोरोना मरीज की मौत होती है, तो उसके परिजनों को 1 लाख रुपए मिलेंगे।
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गौरतलब है कि इससे पहले गुजरात में हाईकोर्ट ने सरकार को अहमदाबाद के सरकारी अस्पताल के बद्तर हालात पर लताड़ लगाई थी। कोर्ट ने कहा था कि सिविल अस्पताल के हालात कालकोठरी से भी बद्तर हैं। अदालत ने यहां तक पूछा था कि स्वास्थ्य मंत्री नितिन पटेल और मुख्य सचिव अनिल मुकीम को मरीजों और कर्मचारियों को होने वाली समस्याओं का क्या कोई आइडिया भी है या नहीं?