चार जुलाई को रिक्त हो रही उत्तराखंड की एकमात्र राज्यसभा सीट पर 11 जून को चुनाव कराए जाने का कार्यक्रम घोषित होते ही सत्ताधारी कांग्रेस में घमासान शुरू हो गया है जिसमें खुद प्रदेश पार्टी अध्यक्ष किशोर उपाध्याय सहित कई दावेदार कतार में शामिल हैं। पार्टी सूत्रों ने बताया कि दावेदारों की इस सूची में उन विधायकों के नाम भी शामिल हैं जिन्होंने 10 मई को हुए शक्ति परीक्षण में मुख्यमंत्री हरीश रावत का साथ दिया। रोचक बात यह है कि कभी कांग्रेस के दिग्गज नेताओं में शुमार रहे पूर्व मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा और पूर्व केंद्रीय मंत्री सतपाल महाराज के समर्थक रहे विधायक भी राज्यसभा की इस दौड़ में शामिल हैं। इनमें मुख्यत: राजेंद्र भंडारी, अनुसूया प्रसाद मैखुरी और नवप्रभात हैं। राज्यसभा की यह सीट भाजपा सांसद तरुण विजय का चार जुलाई को छह साल का कार्यकाल समाप्त होने पर रिक्त हो रही है। उधर, रावत के समर्थकों का मानना है कि पिछले दो महीनों से प्रदेश में चले राजनीतिक संकट से सफलतापूर्वक जूझकर पार्टी को संजीवनी दिलाने वाले मुख्यमंत्री को राज्यसभा की यह सीट इनाम के तौर पर मिलनी चाहिए और उनकी पत्नी रेणुका रावत को संसद के ऊपरी सदन भेजा जाना चाहिए।

ज्ञात हो कि रेणुका वर्ष 2014 में हुए लोकसभा चुनावों में हरिद्वार से कांग्रेस की प्रत्याशी थीं लेकिन वह पूर्व मुख्यमंत्री और वरिष्ठ भाजपा नेता रमेश पोखरियाल निशंक से हार गई थीं। इससे पहले, रेणुका ने वर्ष 2004 में भी अल्मोड़ा-पिथौरागढ़ सीट से लोकसभा चुनाव लड़ा था। हालांकि, उस बार भी उन्हें भाजपा के बचीसिंह रावत के हाथों मात खानी पडी थी। ज्यादातर दिल्ली में रहने वाली रेणुका को अब रावत सीधे संसद के ऊपरी सदन में भेजना चाहते हैं। दूसरी तरफ, सूत्रों का मानना है राज्यसभा सीट के लिए इस दौड़ में प्रदेश पार्टी अध्यक्ष उपाध्याय का नाम सबसे आगे चल रहा है। उपाध्याय के समर्थक इस बात पर जोर दे रहे हैं कि जिस तरह नारायण दत्त तिवारी के कार्यकाल में हरीश रावत को प्रदेश अध्यक्ष पद पर रहते हुए राज्यसभा भेजा गया था, उसी प्रकार उपाध्याय को भी राज्यसभा भेजा जाना चाहिए।

मौजूदा समय में राज्य विधानसभा में संख्या बल के हिसाब से सत्ताधारी कांग्रेस के उम्मीदवार की जीत तय है। इस बारे में संपर्क किए जाने पर विधानसभा अध्यक्ष गोविंद सिंह कुंजवाल ने बताया कि अयोग्य घोषित हो चुके कांग्रेस के नौ विधायक राज्यसभा सीट के लिए होने वाले चुनाव में भी हिस्सा नहीं ले पाएंगे। फिलहाल 62 सदस्यीय विधानसभा में अध्यक्ष कुंजवाल को छोड़कर कांग्रेस के 27 सदस्य हैं जबकि छह सदस्यीय प्रगतिशील लोकतांत्रिक मोर्चा (पीडीएफ) के समर्थन को मिलाकर कांग्रेस के पक्ष में विधायकों की संख्या 33 हो जाएगी। दूसरी ओर, विपक्षी भाजपा के पास उनके केवल 28 विधायकों का ही समर्थन होगा।