यूपी असेंबली चुनाव में मिली करारी हार के बाद कांग्रेस सूबे में नेतृत्व विहीन है। अजय कुमार लल्लू से सोनिया गांधी ने इस्तीफा ले लिया था। लेकिन उसके बाद किसी और की नियुक्ति न होने से वर्कर हताश हैं। आलम ये है कि एक तरफ सपा और बीजेपी लोकसभा उपचुनाव में पूरी तैयारी के साथ मैदान में उतर रही हैं वहीं कांग्रेस ने इन दोनों चुनावों से दूरी बना ली है। यानि वो मैदान में नहीं उतरने जा रही। हार बसपा की भी हुई पर उसके बाद भी पार्टी आजमगढ़ में गुड्डू जमाली को आगे करके अपनी ताल ठोक रही है। उधर कांग्रेस एक अदद प्रदेश अध्यक्ष के लिए माथपच्ची करती दिख रही है पर अभी तक कोई भी नाम फाइनल नहीं हो पा रहा है।
23 जून को आजमगढ़ और रामपुर में लोकसभा उपचुनाव होने वाले हैं। दोनों ही सीटें समाजवादी पार्टी का गढ़ हैं। आजमगढ़ से अखिलेश यादव जबकि रामपुर सीट से आजम खान सांसद थे। दोनों ही नेताओं ने विधानसभा चुनाव में जीत हासिल करने के अपनी-अपनी संसदीय सीटों से इस्तीफा दे दिया है। चुनाव आयोग ने उत्तर प्रदेश की रामपुर और आजमगढ़ लोकसभा सीटों पर उपचुनाव के लिए अधिसूचना 30 मई को जारी की थी। आज नामांकन दाखिल करने की आज आखिरी तारीख है।
आज कांग्रेस ने साफ-साफ कह दिया कि वो आजमगढ़ और रामपुर उपचुनाव नहीं लड़ेगी। अपने उम्मीदवारों को नहीं उतारेगी। इस बात की लोगों का उम्मीद नहीं थी। इस पर सफाई देते हुए कांग्रेस ने कहा कि हाल के विधानसभा परिणामों को देखते हुए 2024 के लोकसभा चुनाव को मजबूती से लड़ने के लिए पार्टी का कायाकल्प सबसे अहम है, इसलिए हम पहले पार्टी मजबूत करेंगे फिर चुनाव लड़ेंगे।
उधर, करारी हार के बाद हटाये गए प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष अजय कुमार लल्लू के उत्तराधिकारी के चयन और स्थितियों का आकलन करने के लिए कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने पार्टी के नेता व पूर्व केंद्रीय मंत्री जितेंद्र सिंह को जिम्मेदारी सौंपी है। जितेंद्र सिंह उत्तर प्रदेश विधान सभा चुनाव के लिए कांग्रेस की ओर से गठित की गई स्क्रीनिंग कमेटी के अध्यक्ष भी थे। एक रिपोर्ट के मुताबिक जो नाम सूबा अध्यक्ष की रेस में हैं उनमें पीएल पूनिया, बसपा से कांग्रेस में आए पूर्व सांसद बृजलाल, विरेंद्र चौधरी. पूर्व सांसद राजेश मिश्रा, प्रमोद तिवारी शामिल हैं।
इन सबके बीच पार्टी के वर्कर्स का मनोबल रसातल में जा रहा है। प्रियंका गांधी जब पहली बार लखनऊ स्थित पार्टी मुख्यालय आईं तो वहां की सिक्योरिटी बाउंसर्स के हवाले थे। इसे देखकर लोकल नेताओं में गुस्सा देखने को मिला। एक का कहना था कि प्रियंका को संगठन पर ही विश्वास नहीं है। सुरक्षा का काम सेवा दल के लोग करते रहे हैं। आलाकमान का ये रवैया तो पार्टी वर्कर्स की हिम्मत को तोड़ने का काम करेगा।