पंचायत चुनाव के नतीजों ने मई में उत्तर प्रदेश में भाजपा को हताश कर दिया था। लेकिन अब इसी पंचायत चुनाव के फाइनल में अपने प्रबंधन कौशल से भाजपा ने इस चुनाव के परिणाम को अंतत: अपने अनुकूल कर दिखाया। तभी तो पार्टी अध्यक्ष जेपी नडडा और गृहमंत्री अमित शाह से लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तक सभी सूबे के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की पीठ ठोक रहे हैं। इन नतीजों को अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव का सेमी फाइनल बता रहे हैं। बताएं भी क्यों न। आखिर 75 में से 67 जिलों में पार्टी अपने जिला पंचायत अध्यक्ष चुने जाने का दावा कर रही है। इसी तरह तीन स्तरीय पंचायत प्रणाली का मझौला स्तर माना जाने वाला ब्लाक प्रमुख चुनाव भी उसने अपने मनमाफिक मोड़ लिया। कुल 825 में से 648 ब्लाक में अपने प्रमुख चुने जाने से पार्टी बम-बम है। इनमें से 334 तो निर्विरोध ही चुन लिए गए थे। जिला पंचायत अध्यक्ष के 21 पद भी पार्टी के खाते में मतदान के बिना ही आ गए थे।

ग्राम प्रधान का चुनाव तो पंचायत प्रणाली में मतदाता स्वयं करते हैं। पर ब्लाक प्रमुख और जिला पंचायत अध्यक्षों का चुनाव जनता द्वारा सीधे नहीं किया जाता। वह तो उन नुमाइंदों को चुनती है जो बाद में ब्लाक प्रमुख और जिला पंचायत अध्यक्ष का चुनाव करते हैं। अपै्रल में जब सूबे की योगी सरकार ने पंचायत चुनाव के लिए मतदान कराया था तो चैतरफा आलोचना हुई थी। भाजपा का मकसद इस चुनाव के जरिए अपने जनाधार की ताजा जमीनी हकीकत से वाकिफ होना था। इसीलिए उसने बहाना तो इलाहबाद हाईकोर्ट के आदेश को बनाया पर मंशा उसकी खुद मतदान कराने की थी। तभी तो कोरोना की दूसरी लहर चरम पर होने के बावजूद मतदान स्थगित नहीं किया।

इस चक्कर में कोरोना संक्रमण गांव-गांव फैल गया। चुनावी डयूटी करने वाले हजारों शिक्षक और दूसरे कर्मचारी संक्रमित हुए। सैंकड़ों की तो मौत भी हो गई। कुल मौतों का वास्तविक आंकड़ा तो अधिकृत तौर पर आज तक सामने नहीं आया। पर इस लहर ने ही योगी आदित्यनाथ सरकार के प्रति न केवल जनता के आक्रोश को हवा दी थी बल्कि उनका पार्टी आलाकमान भी तब तो उन्हें मुख्यमंत्री पद से हटाने पर आमादा दिख रहा था। इसकी असली वजह कोरोना संक्रमण के आगे सरकार की नाकामी कम जिला पंचायत के नतीजे ज्यादा थे। किसी भी जिले में पार्टी को जिला पंचायत सदस्यों के परिणाम में बहुमत नहीं मिल पाया था। और तो और योगी आदित्यनाथ के गोरखपुर और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लोकसभा क्षेत्र वाराणसी तक में भाजपा पिछड़ गई थी।

जो जिला पंचायत और ब्लाक समिति सदस्य भाजपा उम्मीदवारों को हराकर जीते थे, वे रातों रात भाजपा खेमे में नजर आए। सपा, बसपा, कांगे्रस और रालोद जैसी पार्टियां हल्ला करती रह गईं कि चुनाव में धन बल, बाहुबल और सत्ता का जमकर दुरुपयोग किया गया। मायावती की पार्टी बसपा ने चूंकि प्रत्यक्ष रूप से पंचायत चुनाव में शिरकत नहीं की थी। सो सारा शोर शराबा सपा और कांगे्रस ने ही किया। अपने निर्वाचित पंचायत प्रतिनिधियों के अपहरण को अखिलेश यादव ने लोकतंत्र का चीरहरण तो बताया पर वे भूल गए कि अपने जमाने में सत्ता का जैसा दुरुपयोग उन्होंने और मायावती ने किया था, भाजपा ने भी उसी को दोहराया। उसने नया या अनूठा कुछ नहीं किया। राजनीतिक के हमाम में सभी नंगे हैं और चोर-चोर मौसेरे भाई के मुहावरों को पंचायत चुनाव ने चरितार्थ किया। गनीमत है कि अब भाजपा जिला पंचायत अध्यक्ष और ब्लाक प्रमुख के चुनाव को सीधे जनता के माध्यम से कराने की बात कर रही है। उसे अहसास तो हुआ कि अपनी सरकार का लोकप्रियता ग्राफ ऊंचा दिखाने में तो वह खुद को भले सफल समझ ले और दावा करे कि उसकी लोकप्रियता में कोई कमी नहीं आई है।

पर सूबे के ग्रामीण मतदाताओं ने तो सब कुछ साफ-साफ देख लिया कि जो उनकी मंशा थी, वह पूरी नहीं हुई। पंचायत अध्यक्षों का चुनाव मेयर की तरह सीधे जनता से कराने के लिए केंद्र सरकार को संविधान संशोधन करना पडेगा। सोमवार को सूबे के उप मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य ने प्रयागराज में खुद संकेत दिया कि अगले चुनाव को पारदर्शी और अहिंसा मुक्त बनाने के लिए वे केंद्र सरकार से प्रक्रिया में बदलाव की सिफारिश करेंगे।