उत्तर प्रदेश में अगला पुलिस महानिदेशक (डीजीपी) कौन होगा, इसे लेकर प्रशासनिक हलकों में भी सियासी अटकलों का दौर चल रहा है। मौजूदा पुलिस महानिदेशक सुलखान सिंह का कार्यकाल 30 सितंबर को पूरा हो जाएगा। 1980 बैच के सूबे के सबसे वरिष्ठ आइपीएस सुलखान सिंह अपनी ईमानदार और बेबाक कार्यशैली के कारण आमतौर पर राजनीतिकों को ज्यादा नहीं भाए। लेकिन योगी सरकार के छह महीने के कार्यकाल के दौरान उन्होंने देश के 22 करोड़ की आबादी वाले सबसे बड़े सूबे की पुलिस की कार्यप्रणाली में सुधार कर दिखाया। उसी का नतीजा है कि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने सूबे की कानून व्यवस्था में उल्लेखनीय सुधार का दावा किया है।

मौजूदा पुलिस महानिदेशक के हिमायती सूबे में अपराधियों के खिलाफ पुलिस की आक्रामक कार्यशैली के आधार पर ही उन्हें कम से कम तीन महीने का सेवा विस्तार दिए जाने के पक्ष में हैं। अखिलेश यादव के जमाने में भी राज्य सरकार ने तबके डीजीपी अरविंद कुमार जैन को तीन महीने का सेवा विस्तार दिया था। दरअसल, आइपीएस अफसरों के कैडर का नियंत्रण केंद्र का गृह मंत्रालय करता है। सेवा विस्तार की इजाजत केंद्र से लेनी पड़ती है। चंूकि इस समय सूबे और केंद्र दोनों जगह भाजपा की सरकारें हैं, लिहाजा मुख्यमंत्री चाहेंगे तो सुलखान सिंह को सेवा विस्तार मिलने में कोई अड़चन नहीं होगी। सुलखान सिंह को अगर सेवा विस्तार नहीं मिला तो कौन पुलिस महानिदेशक बनेगा? सूबे के पुलिस वाले आजकल इसी सवाल के इर्दगिर्द उलझे हैं। वरिष्ठता के नाते तो 1982 बैच के प्रवीण ंिसंह दौड़ में सबसे आगे हैं। वे इस समय अगिनशमन सेवा के महानिदेशक हैं। उनकी गिनती निर्विवाद अफसरों में होती है। वे भी सुलखान सिंह की तरह ही राजपूत हैं। इसी बैच के सूर्य कुमार शुक्ला भी सूबे की पुलिस का अगला मुखिया बनने की जुगत लगा रहे हैं। यों दौड़ में 1983 बैच के गोपाल गुप्ता और ओपी सिंह व 1984 बैच के रजनीकांत मिश्र भी शामिल बताए जा रहे हैं। इनमें गुप्ता इस समय यूपी में ही हैं जबकि सिंह और मिश्र केंद्र में डेपुटेशन पर हैं। ओपी सिंह सीआइएसएफ के महानिदेशक हैं तो मिश्र को सोमवार को ही एसएसबी का डीजी बनाया गया है। जाहिर है कि यूपी से नाता रखने वाले और ज्यादा वरिष्ठ होने के कारण राज्य सरकार प्रवीण सिंह, गोपाल गुप्ता और सूर्य कुमार शुक्ल की अनदेखी नहीं करना चाहेगी।

यह सही है कि सपा के राज में सूबे की पुलिस नेताओं की कठपुतली बनी हुई थी और भाजपा सरकार ने उसे अपराधियों से निपटने की खुली छूट दी है। पर छह महीने में अगर पुलिस ने कुख्यात अपराधियों के साथ 80 मुठभेड़ कर 15 इनामी अपराधियों को मार गिराया तो इसके पीछे मौजूदा पुलिस महानिदेशक सुलखान सिंह की अहम भूमिका को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। जिन्होंने पुलिस के अहम पदों पर तेज तर्रार, ईमानदार छवि के और सियासी दबाव की परवाह न करने वाले अफसरों को ही तैनात कर बिगड़े पुलिस तंत्र को पटरी पर ला दिखाया है। सूबे के एडीजी (कानून व्यवस्था) के पद पर जब उन्होंने जातीय संकीर्णता से ऊपर उठ कर दबंग और सादगी पसंद आनंद कुमार को तैनात किया तो थाना स्तर तक संदेश चला गया कि पुलिस को आम आदमी की नजर में अपनी साख कायम करनी होगी।

अपराध के मामले में सूबे का पश्चिमी इलाका ज्यादा प्रभावित रहा है। लेकिन पिछल छह महीने में पुलिस ने शामली के राजू, इकराम, सरवर व नौशाद, मुजफ्फरनगर के नदीम व नितिन व सहारनपुर के शमशाद और गुरमीत जैसे खौफनाक इनामी बदमाश मार गिराए। रोचक पहलू यह है कि एक भी मुठभेड़ के फर्जी होने के आरोप सामने नहीं आए। कुल 420 में से ज्यादातर मुठभेड़ दिनदहाड़े हुई और इनमें 15 अपराधी मारे गए व 84 घायल हुए। 106 को पकड़ लिया गया। बदमाशों से भिडंÞत में 88 पुलिस वाले भी घायल हुए।