Lok Sabha Election 2024: लोकसभा चुनाव 2024 को लेकर विपक्षी गठबंधन को एक नया नाम INDIA दिया गया है। यह नाम 18 जुलाई को बेंगलुरु में हुई बैठक में तय हुआ था। जिसकी जानकारी मीडिया के माध्यम से कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने दी थी। उसके बाद यह बात चर्चा का विषय बन गई थी कि अब NDA का मुकाबला INDIA से होगा। इसी बीच यह सवाल काफी अहम हो गया है कि क्या उत्तर प्रदेश में सपा और कांग्रेस 2024 में फिर से एक साथ दिखाई देंगे? हालांकि, इस सवाल पर यूपी कांग्रेस के नेताओं का मानना है कि वो उत्तर प्रदेश में सपा से गठबंधन करने के मूड में नहीं है, क्योंकि गठबंधन से पार्टी को कोई फायदा नहीं हुआ है, लेकिन बेंगलुरु में विपक्षी दलों की बैठक के बाद यूपी कांग्रेस के नेता चुप हैं और उन्होंने सपा से गठबंधन के मसले को हाईकमान के ऊपर छोड़ दिया है।
राज्य कांग्रेस के नेताओं का मानना है कि पार्टी को उत्तर प्रदेश में फिर से मजबूत खड़ा करने के लिए अकेले कदम बढ़ाना होगा। साथ ही समाजवादी पार्टी से दूरी बनाए रखनी होगी। ऐसे में इंडियन एक्सप्रेस ने उन कांग्रेस नेताओं से बात की जो राज्य में 2009 की सफलता को दोहराना चाहते हैं। उन नेताओं को लगता है कि पार्टी को 2017 में एसपी के साथ गठबंधन से ज्यादा फायदा नहीं हुआ। उनका मानना है कि जमीनी स्तर पर राज्य के अल्पसंख्यक सपा का विकल्प तलाश रहे हैं, जिसे पार्टी को अकेले ही भुनाना चाहिए। कांग्रेस के भीतर असंतोष से अवगत, एसपी नेताओं का कहना है कि उनका राष्ट्रीय नेतृत्व जो निर्णय लेगा, उसे स्वीकार करना होगा और उसका पालन करना होगा।
यूपी कांग्रेस के कई नेता मोटे तौर पर सपा खेमे की राय से सहमत हैं। बेंगलुरु में 18 जुलाई की बैठक के बारे में बात करते हुए पार्टी के एक वरिष्ठ नेता ने कहा, ‘ विपक्षी गठबंधन के खिलाफ कोई भी राय व्यक्त करने के लिए अब बहुत देर हो चुकी है, क्योंकि पार्टी नेतृत्व पहले ही निर्णय ले चुका है। उन्होंने आगे कहा कि जो सहमत नहीं भी हैं, वह भी अब खामोशी से सहमत हो जाएंगे। हालांकि, इन सबके बीच यूपी कांग्रेस के नाखुश नेता मुखर होकर अपनी राय व्यक्त नहीं कर रहे हैं, लेकिन यह स्थिति चुनाव से पहले पार्टी को मुश्किल स्थिति में डाल सकती है।
‘सपा हमें कोई भी वोट ट्रांसफर नहीं करा सकती’
यह पूछे जाने पर कि वह इस बात की पुरजोर वकालत क्यों कर रहे हैं कि कांग्रेस को यूपी में अकेले चुनाव लड़ना चाहिए? साथ ही समाजवादी पार्टी से गठबंधन नहीं करना चाहिए? इस सवाल के जवाब में कांग्रेस के एक अनुभवी नेता कहते हैं, ‘हमने 2017 में देखा है कि समाजवादी पार्टी हमें कई वोट ट्रांसफर नहीं करा सकती है। वर्तमान में हालात और भी खराब हैं, क्योंकि जमीनी स्तर पर मुस्लिम समुदाय लोकसभा में विकल्प की तलाश कर रहा है।
कांग्रेस नेता ने कहा कि हमारे पास लोग आते हैं और हमसे चुनाव लड़ने के लिए कहते हैं, लेकिन अगर हम ऐसे गठबंधन में जाते हैं जिसमें बसपा नहीं है तो परिणाम फिर से हमारे लिए वही होगा, क्योंकि न तो सपा अल्पसंख्यक वोटों को ट्रांसफर करा पाएगी और न ही किसी क्षेत्र विशेष को छोड़कर यादव वोटों पर उसका नियंत्रण है। दूसरी ओर, सीटें खोने के बावजूद, बसपा का अभी भी अपने मतदाताओं के एक महत्वपूर्ण वर्ग पर नियंत्रण है। साथ ही पश्चिमी यूपी में बसपा का जनाधार काफी अच्छा है। जबकि बसपा चीफ मायावती किसी भी गठबंधन का हिस्सा बनने के लिए तैयार नहीं हैं। साथ ही उन्होंने लोकसभा चुनाव अकेले लड़ने की घोषणा की है।
मुस्लिम, पासी और ब्राह्मण वोट पर पार्टी की नजर
पार्टी के एक नेता ने बताया कि अगर मुस्लिम और पासी वोट कांग्रेस की तरफ आता है। साथ ही पार्टी सवर्ण जाति (विशेषकर ब्राह्मण) का वोट बरकरार रखने में कामयाब रहती है, ऐसी स्थिति में कांग्रेस को एक बार फिर से यूपी में संजीवनी मिल सकती है। नेता ने कहा, लेकिन सपा के साथ गठबंधन में ये मतदाता कांग्रेस के पास आने के बजाय बिखर जाएंगे। जिसका फायदा सीधे तौर पर बीजेपी को होगा। जिला कांग्रेस के एक नेता का मानना है कि गठबंधन तब काम करता है, जब पार्टियों की अपने मतदाताओं पर मजबूत पकड़ होती है। तब वो उन्हें दूसरों को ट्रांसफर करने में सक्षम होते हैं, लेकिन यहां तो ऐसा नहीं है।
हाल के दशकों में यूपी में कांग्रेस की स्थिति
हाल के दशकों की बात करें तो कांग्रेस ने 2009 के लोकसभा चुनावों में उत्तर प्रदेश में अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन किया था। जिसमें कांग्रेस ने 18.25% वोट शेयर के साथ 80 में से 21 सीटें जीती थीं। बीजेपी ने 17.5% वोटों के साथ 10 सीटें जीती थीं, वहीं बीएसपी ने लगभग 27% वोटों के साथ 20 सीटें जीती थीं और एसपी ने लगभग 23% वोट शेयर के साथ 23 सीटें जीती थीं।
2012 में कांग्रेस को मिलीं 28 सीटें
2012 के विधानसभा चुनावों की बात करें तो कांग्रेस 28 सीटों के साथ 11.65% वोट शेयर हासिल हुआ था, जबकि उसके गठबंधन सहयोगी आरएलडी ने 9 सीटें जीतीं। एसपी ने 224 सीटों और 29% वोटों के साथ सरकार बनाई, वहीं बीएसपी को 80 सीटें और लगभग 26% वोट शेयर हासिल हुआ था, जबकि बीजेपी को 47 सीटों पर संतोष करना पड़ा था।
2014 लोकसभा चुनाव में पार्टी दो सीटों पर सिमट गई
हालांकि, 2014 के लोकसभा चुनावों में कांग्रेस राज्य में केवल 7.53% वोट शेयर के साथ दो सीटों (अमेठी और रायबरेली) पर ही सिमट गई थी। बसपा को एक भी सीट नहीं मिली थी, सपा को पांच सीटों पर ही संतुष्टि करनी पड़ी थी। वहीं भाजपा ने लगभग 43% वोटों के साथ 71 सीटें हासिल कीं।
2017 विधानसभा चुनाव में पार्टी को 7 सीटें मिलीं
2017 के विधानसभा चुनावों में जब कांग्रेस ने एसपी के साथ गठबंधन में राज्य की 403 सीटों में से 114 सीटों पर चुनाव लड़ा था तो उसकी संख्या घटकर 7 (6.25% वोट शेयर के साथ) रह गई थी, जबकि एसपी ने 47 (लगभग 22% वोट शेयर के साथ) सीटें जीती थीं। तब बीजेपी ने राज्य में भारी बहुमत के साथ सरकार बनाई थी।
2019 के लोकसभा चुनाव में पार्टी के हाथ से अमेठी सीट भी चली गई
2019 के लोकसभा चुनावों में कांग्रेस ने गांधी परिवार के गढ़ अमेठी को भी खो दिया था। कांग्रेस को राज्य में 6.3% वोट शेयर मिला था। कांग्रेस सिर्फ रायबरेली को बरकरार रखने में सफल रही थी। जबकि भाजपा का वोट शेयर लगभग 50 प्रतिशत तक बढ़ा था। सपा लगभग 18% वोट शेयर के साथ अपनी 5 सीटें बचाने में सफल रही।
2022 के यूपी विधानसभा चुनाव में पार्टी को 2 ही सीट मिली
हालांकि, इन सबसे अलग कांग्रेस के लिए सबसे बुरी स्थिति 2022 के विधानसभा चुनावों में हुई थी। कांग्रेस ने तब राज्य की 403 सीटों में से 399 सीटों पर चुनाव लड़ा था, लेकिन पार्टी को 2.33% वोट शेयर मिला था और उसके खाते में केवल दो सीटें गई थीं।
कांग्रेस पार्टी के वरिष्ठ नेता का कहते हैं कि गठबंधन की वकालत करने वाले कह रहे हैं कि 2022 में अकेले चुनाव लड़ने पर पार्टी वैसे भी 2% वोट शेयर पर सिमट गई थी। पार्टी नेता का मानना है कि लेकिन लोकसभा और विधानसभा चुनावों की तुलना करना गलत है, क्योंकि प्रत्येक के लिए मतदाता की मन अलग है। इसके अलावा, 2022 ने सपा के लिए भी चीजें बदल दीं। हमने कुछ सीटों पर भाजपा के यादव उम्मीदवारों को सपा के मजबूत यादव उम्मीदवारों को हराते हुए भी देखा। जहां तक लोकसभा का सवाल है, हमारा मानना है कि अगर हमने मजबूत उम्मीदवार उतारे तो कांग्रेस के पास बेहतर मौका है।
पार्टी के एक नेता ने बताया कि पार्टी में एक वर्ग ऐसा भी है, जो बसपा के साथ गठबंधन के पक्ष में है, लेकिन अन्य लोगों का मानना है कि मायावती के साथ गठबंधन करना एक कठिन काम है, क्योंकि बसपा के अपनी अलग प्राथमिकताएं हैं, इसलिए समय बर्बाद करने के बजाय हमने अकेले जाने का समर्थन किया था। हालांकि, यह सिर्फ हमारी राय थी। पार्टी आलाकमान अंतिम निर्णय लेगा।
वरिष्ठ सपा नेता राजेंद्र चौधरी से जब प्रदेश कांग्रेस नेताओं की राय के बारे में पूछा गया तो उन्होंने कहा, ‘ऐसे विचारों का कोई मतलब नहीं है। यूपी कांग्रेस सिर्फ राष्ट्रीय पार्टी की एक शाखा है। उनके नेता जो कहेंगे, वे उसका पालन करेंगे।’ चौधरी ने कहा कि राष्ट्रीय सिनेरियो को देखते हुए अखिलेश यादव सहित हम सभी एक बड़े उद्देश्य के लिए एकजुट हो रहे हैं और कांग्रेस नेता वही करेंगे,जैसा उनके वरिष्ठ नेता आदेश करेंगे।