तकरीबन पांच महीने पहले हुए T-20 वर्ल्ड कप में भारत अपना मैच पाकिस्तान के हाथों हारा तो सारे देश में बवाल मच गया। क्रिकेट के प्रशंसकों को पाक के हाथों हार बर्दाश्त नहीं थी। सरकार भी लोगों के साथ थी। ऐसे में तीन कश्मीरी छात्रों ने पाक केस समर्थन में कुछ कहा तो उन्हें धर दबोचा गया। लेकिन उसके बाद जो हुआ वो समझ से परे था। किसी भी वकील ने उनकी पैरवी से पल्ला झाड़ लिया। ऐसे में मथुरा की कोर्ट में अपनी प्रैक्टिस करने वाले माधवन दत्त चर्तुवेदी आगे आए।
फिलहाल इलाहाबाद हाईकोर्ट जस्टिस अजय भनोट ने तीनों छात्रों को जमानत दे दी है। लेकिन कोर्ट ने उन हालातों पर चिंता जताई जिसमें आगरा की बार एसोसिएशन ने तीनों की पैरवी से ही इन्कार कर दिया। जस्टिस ने कहा कि वो जमानत की याचिका पर सीधे ही सुनवाई कर रहे हैं, क्योंकि कोई भी वकील छात्रों की पैरवी करने को आगे नहीं आ रहा है। उनका कहना था कि हालांकि ये भी एक सच है कि वकील कानून और पीड़ितों की सहायता करने की शपथ लेते हैं पर उसके बाद भी ऐसा मंजर देखने को मिला।
माधवन का कहना है कि उन्होंने जो शपथ ली वो उस पर खरा उतरने की पुरजोर कोशिश करते हैं। चाहें उन्हें कितनी भी धमकियां मिलें। उनका कहना है कि जीवन का अंत जब होना तब होना है। उसकी वो परवाह नहीं करते। इंजीनियरिंग कर रहे तीनों कश्मीरी छात्रों का केस उन्होंने इसी भावना के तहत लिया था। मथुरा कोर्ट के बाहर एक छोटे से चैंबर में प्रैक्टिस करने वाले माधवन कहते हैं कि उनके लिए सेकुलरिज्म कोई इमोशनल या रिलिजियस पहलू नहीं है। मानवता उनके लिए सबसे ऊपर है। इसके लिए वो कुछ भी करने को तैयार हैं।
उनका कहना है कि वो केस लेते समय ये नहीं देखते की सामने वाला पैसा देने की स्थिति में है भी या नहीं। वो उसकी जरूरत पर सबसे पहले गौर करते हैं। उन्हें ये जज्बा अपने पिता राधे श्याम चौबे से मिला है। वो आजादी की लड़ाई के सिपाही थे। 50-60 के दशक में सीपीआई को मथुरा में जमाने में उन्होंने काफी काम किया था। पिता से जुड़े लोगों का उन पर काफी प्रभाव पड़ा। अपने छात्र जीवन से ही वो खुद भी वाम विचारधारा से जुड़े और कई धरना प्रदर्शनों में हिस्सा लिया।
कश्मीरी छात्रों का केस जब उन्होंने लिया तो सोशल मीडिया पर उन्हें धमकियां तक दी गईं। उन्हें राष्ट्रविरोधी तक करार देने की कोशिश हुई पर इसका उन पर कोई असर नहीं पड़ा। विश्व हिंदू परिषद के संत युवराज के मामले में उन्होंने जमानत का विरोध किया तो उन पर हमला भी हुआ लेकिन इससे उन पर कोई फर्क नहीं पड़ा। माधवन कहते हैं कि क्रांतिकारियों से उन्हें प्रेरणा मिलती है ऐसी धमकियों को झेलने की। उनसे पहले भी बहुत से लोगों ने ऐसी चीजें सहकर उनसे कहीं ज्यादा समाज के लिए किया है। वो मौत से नहीं डरते। जब तक जिंदा हैं काम चलता रहेगा। वो एक अदने से वकील हैं जो लोगों की मदद करने के लिए हमेशा और हर हालात में तत्पर रहता है।