Banke Bihari Temple Corridor: मथुरा के वृंदावन बांके बिहारी मंदिर कॉरिडोर निर्माण मामले में इलाहाबाद हाई कोर्ट में शुक्रवार को सुनवाई हुई। सुनवाई के दौरान आगरा के व्यापारी प्रखर गर्ग ने अर्जी देकर कहा कि वो प्रोजक्ट के लिए 510 करोड़ रुपये देने के लिए तैयार हैं। 100 करोड़ रुपये एक महीने में जमा कर देंगे। कोर्ट ने इस मामले में सरकार से पूछा कि आप मंदिर का पैसा चाहते ही क्यों हैं? क्या सरकार के पास पैसे की कमी है? अगर, सरकार के पास पैसे की कमी नहीं है तो सारे विवाद का हल हो गया, तब तो कोई विवाद ही नहीं बचा।
राज्य सरकार की ओर से महाधिवक्ता अजय कुमार मिश्र और अपर महाधिवक्ता मनीष गोयल ने कहा, ‘लोक शांति और व्यवस्था के लिए सरकार ने प्रस्तावित योजना तैयार की है। जिसमें नागरिक सुविधाएं मुहैया कराई जाएंगी। मंदिर की व्यवस्था के लिए मंदिर का पैसा लगाने में किसी को आपत्ति नहीं होनी चाहिए।’ अनंत शर्मा और अन्य की ओर से दाखिल जनहित याचिका की चीफ जस्टिस प्रीतिंकर दिवाकर और जस्टिस आशुतोष श्रीवास्तव की खंडपीठ सुनवाई कर रही है।
सेवायतों की ओर से कहा गया कि सरकार को मंदिर की सुविधा बढ़ाना चाहती है, उन्हें कोई आपत्ति नहीं है, लेकिन, निजी मंदिर का ट्रस्ट है। चढ़ावे पर सरकार को दावा नहीं करना चाहिए।
अधिवक्ता संजय गोस्वामी ने याचिका की पोषणीयता पर सवाल उठाया और कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि केवल तथ्यात्मक मुद्दे को लेकर कोई भी याचिका पोषणीय नहीं है। कानूनी अधिकार को लेकर ही याचिका पोषणीय है। याचिका खारिज की जाए। याची अधिवक्ता श्रेया गुप्ता ने कहा कि संविधान के अनुच्छेद 25 व 26में धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार है, किंतु यह निर्बाध नहीं है। युक्तियुक्त हस्तक्षेप किया जा सकता है। वर्तमान समय में मंदिर प्रबंधन के लिए कोई समिति नहीं है। सिविल जज की निगरानी में व्यवस्था की जा रही है। प्रबंधन विवाद मथुरा की सिविल कोर्ट में विचाराधीन है। सरकार दर्शनार्थियों की सुरक्षा के कदम उठा सकती है।
कोर्ट ने यह भी जानने चाहा कि अगर योजना लागू की जाती है तो मंदिर का प्रबंधन किसके हाथ होगा? सेवायतों के, ट्रस्ट के या सरकार के हाथ। हालांकि, सरकार की ओर से इस सवाल का जवाब नहीं दिया गया। अधिवक्ता राघवेंद्र मिश्र ने कहा कि सरकार प्रस्तावित योजना लागू करे। सारा खर्च प्रखर गर्ग की तरफ से दिया जाएगा। सरकार मंदिर का चढ़ावा न ले, सारा खर्च हम देंगे। कोर्ट ने कहा मंदिर का पैसा सरकार न ले तो सारा विवाद ही खत्म। मामले की अगली सुनवाई 11 अक्टूबर को होगी।
बता दें, मंदिर का संचालन एक प्राइवेट ट्रस्ट द्वारा किया जा रहा था, लेकिन, मैनेजमेंट विवाद को लेकर वर्तमान में सिविल कोर्ट में केस चल रहा है। इस संबंध में डिक्री भी है और सिविल जज की ओर से निगरानी की जा रही है।
सेवायत का कहना है कि सरकार कॉरिडोर बनाए, सुरक्षा व्यवस्था करें। मंदिर नहीं अपने पैसे से निर्माण करे, उन्हें कोई आपत्ति नहीं है। मंदिर निजी ट्रस्ट है। जिसमें, चढ़ावा पर कुछ हिस्सा ट्रस्ट को और कुछ सेवायतों को जा रहा है। इससे कुछ परिवार पल रहे हैं। सरकार की नजर मंदिर के पैसे पर है। वह कुछ पैसा खर्च नहीं करना चाहती है। मंदिर के पैसे से ही सारा काम करना चाह रही है, जिससे सैकड़ों परिवारों की जीविका खत्म हो जाएगी। मंदिर पर गोस्वामियों को पूजा का अधिकार है जो सैकड़ों सालों से चला आ रहा है।
