Lok Sabha Elections: लोकसभा चुनाव 2024 को लेकर अखिलेश यादव की समाजवादी पार्टी एक नए समीकरण की ओर जाती दिखाई दे रही है। जिसके तहत सपा यादव समुदाय के उम्मीदवारों पर दांव लगाने से बच रही है। जिसका सबसे बड़ा प्रमाण सपा ने उत्तर प्रदेश में अपने कोटे की 62 सीटों में से 57 सीटों पर प्रत्याशियों के नाम की घोषणा की है। सपा के इतिहास में ऐसा पहली बार है जब यादव समुदाय से सिर्फ चार कैंडिडेट अभी तक मैदान में हैं और वो भी मुलायम सिंह यादव की फैमिली से हैं।
ऐसे में सवाल उठता है कि सूबे में जिस यादव समुदाय के वोटों के दम पर मुलायम-अखिलेश सत्ता की बुलंदी तक पहुंचे। आखिर सपा अब उन्हीं से किनारा क्यों कर रही है। जिसका जीता-जागता उदाहरण सपा द्वारा घोषित किए गए उम्मीदवारों की लिस्ट है। जिसमें तीन अखिलेश के चचेरे भाई हैं तो एक उनकी पत्नी डिंपल यादव का नाम शामिल है।
अखिलेश परिवार से सपा के चार यादव प्रत्याशी
सपा ने डिंपल यादव को मैनपुरी, अक्षय यादव को फिरोजाबाद, धर्मेंद्र यादव को आजमगढ़ और आदित्य यादव को बदायूं से मैदान में उतारा है। अक्षय यादव रामगोपाल के बेटे हैं, जबकि आदित्य यादव, शिवपाल यादव के पुत्र हैं। हालांकि, समाजवादी पार्टी को अभी पांच सीटों पर अपने उम्मीदवारों की घोषणा करनी है। ऐसे में देखने वाली बात होगी कि क्या सपा इनमें से मुलायम-अखिलेश परिवार से इतर किसी यादव को टिकट देती है या नहीं।
समाजवादी पार्टी के इतिहास में यह पहली बार कि इतनी कम संख्या पर यादव को टिकट दिए गए। उससे भी दिलचस्प बात यह है कि जो टिकट दिए गए हैं वो भी परिवार के सदस्यों को।
मुलायम सिंह यादव ने 1992 में समाजवादी पार्टी का गठन किया था। 1996 में सपा ने पहला लोकसभा चुनाव लड़ा। उसके बाद से सपा हर लोकसभा चुनाव लड़ती रही है।
समाजवादी पार्टी ने 1996 में 8 यादव प्रत्याशी उतारे थे। 1998 में 10 , 1999 में 9, 2004 में 9, 2009 में 11, 2014 में 13, 2019 में 11 और 2024 में अभी तक चार प्रत्यशी घोषित किए हैं। वो भी मुलायम-अखिलेश परिवार से हैं।
लोकसभा चुनाव 2019 की बात करें तो यह चुनाव समाजवादी पार्टी ने बसपा और आरएलडी के साथ मिलकर लड़ा था। सपा ने 37 सीटों पर प्रत्याशी उतारे थे। जिनमें से 11 सीट पर यादव कैंडिडेट उतारे थे।
2014 में समाजवादी पार्टी ने सबसे ज्यादा यादव प्रत्याशी दिए तो 2024 में सबसे कम। हालांकि, अभी 5 सीट पर टिकट घोषित करना बाकी है. माना जा रहा है कि सपा बहुत ज्यादा एक से दो टिकट और यादव समुदाय को दे सकती है।
उत्तर प्रदेश में यादव वोटर कितने फीसदी?
यूपी में 8 फीसदी के करीब यादव मतदाता है। जो ओबीसी समुदाय में आबादी की 20 फीसदी है। इस लिहाज से ओबीसी समाज में सबसे बड़ी आबादी यादव समाज की है।
यूपी में यादव बहुल गढ़
अगर हम उत्तर प्रदेश में जिलेवार यादव बाहुल सीटों की बात करें तो उनमें प्रमुख रूप से एटा, इटावा, फर्रुखाबाद, मैनपुरी, फिरोजाबाद, कन्नौज, बदायूं, आजमगढ़, फैजाबाद, बलिया, संतकबीर नगर, जौनपुर, रायबरेली और कुशीनगर हैं।
44 जिलों में 9 फीसदी यादव मतदाता
राज्य के 44 जिलों में 9 फीसदी मतदाता यादव हैं। जबकि 10 जिलों में यह संख्या 15 फीसदी से ज्यादा है। जबकि पूर्वांचल, अवध और बृज के इलाके में यादव मतदाता सपा की सियासत तय करते हैं।
राज्य में यादव समाज में मंडल कमीशन के बाद ऐसी गोलबंदी हुई कि यह समाजवादी पार्टी का कोर वोटर बन गया। इन्हीं मतदाताओं के दम पर मुलायम सिंह यादव तीन बार और अखिलेश यादव एक बार मुख्यमंत्री बने। हालांकि, सपा के राजनीतिक आगाज से पहले ही रामनरेश यादव जनता पार्टी से उत्तर प्रदेश के सीएम रहे थे। उन्होंने बाद में कांग्रेस का दामन थाम लिया, लेकिन यादव समुदाय के नेता के तौर पर मुलायम सिंह यादव जैसी पकड़ नहीं बना सके।
समाजवादी पार्टी के सत्ता में रहने के दौरान यादव समाज राजनीतिक ही नहीं बल्कि आर्थिक,सामाजिक और शैक्षणिक रूप से काफी मजबूत हुआ। यह वो वक्त था जब सूबे में यादव समाज की तूती बोलती थी। यही वजह है कि सपा के सत्ता में रहने के दौरान यादव परस्त होने का आरोप लगता रहा है। इसके चलते गैर-यादव ओबीसी जातियां सपा से छिटककर बीजेपी और दूसरे दलों के साथ चली गईं।
मध्य प्रदेश में बीजेपी ने मोहन यादव को बनाया मुख्यमंत्री
वहीं भाजपा आरोप लगाती रही है कि अखिलेश यादव अपने परिवार के अलावा दूसरे यादव का भला नहीं कर सकते। वो अपने परिवार को छोड़कर किसी भी यादव का भला नहीं करना चाहते हैं। इस बात को यादव समाज भी जानता है कि बीजेपी ने मध्य प्रदेश में यादव समुदाय के नेता को मुख्यमंत्री बनाया।
सैफई परिवार को सियासत में लाने का काम मुलायम सिंह यादव ने किया। मुलायम सिंह ने विधायकी से लोकसभा की सियासत में किस्मत आजमाई। 1996 में मुलायम सिंह ने मैनपुरी और संभल सीट से चुनाव लड़े और जीतने में सफल रहे। इसके बाद से मुलायम परिवार के सदस्यों का संसद पहुंचने का सिलसिला शुरू हुआ।
1998 में मुलायम सिंह संभल से दोबारा जीते। इसके बाद 1999 में मुलायम सिंह मैनपुरी और कन्नौज सीट से चुनाव लड़े और दोनों सीट से जीतने में सफल रहे। इसके बाद मुलायम सिंह ने कन्नौज सीट छोड़ी दी थी, जहां से अखिलेश यादव सांसद बने।
साल 2004 में पहली बार मुख्यमंत्री बने मुलायम सिंह यादव
2004 में मुलायम परिवार से तीन लोग चुनाव लड़े। मुलायम सिंह मैनपुरी, अखिलेश यादव ने कन्नौज और रामगोपाल यादव ने संभल सीट से किस्मत आजमाई। परिवार से तीनों सदस्य संसद पहुंचे। 2004 में मुलायम सिंह यादव ने यूपी के मुख्यमंत्री बनने पर मैनपुरी सीट छोड़ दी, जिसके बाद धर्मेंद्र यादव सांसद बने।
साल 2009 में मुलायम परिवार से चार सदस्य चुनाव लड़े। मुलायम सिंह ने मैनपुरी और धर्मेंद्र यादव ने बदायूं सीट से चुनाव लड़ा। अखिलेश यादव ने फिरोजाबाद और कन्नौज सीट से किस्मत आजमाई। दोनों ही सीटें जीतने में सफल रहे, जिसके बाद अखिलेश यादव ने फिरोजाबाद सीट को छोड़ दी तो वहां से उनकी पत्नी डिंपल यादव ने चुनाव लड़ा, लेकिन जीत नहीं सकीं। 2014 में मुलायम परिवार के पांच सदस्यों ने चुनाव लड़ा और पांचों ने जीत दर्ज की।
मुलायम सिंह यादव मैनपुरी और आजमगढ़ सीट से चुनाव लड़े थे। डिंपल यादव कन्नौज, धर्मेंद्र यादव बदायूं, अक्षय यादव फिरोजाबाद सीट से चुनाव लड़े। मुलायम सिंह ने मैनपुरी सीट छोड़ दी, जिसके बाद तेज प्रताप यादव चुनाव जीतने में सफल रहे। 2014 में मुलायम परिवार से छह सदस्य संसद में एक साथ रहे. पांच लोकसभा सदस्य और रामगोपाल यादव राज्यसभा सदस्य थे।
2019 में मुलायम परिवार के चार सदस्य चुनाव हारे
लोकसभा चुनाव 2019 में मुलायम परिवार से छह सदस्य लोकसभा चुनाव लड़े थे, जिनमें से आजमगढ़ से अखिलेश यादव और मैनपुरी से मुलायम सिंह यादव ही जीत संसद पहुंचे। मोदी की आंधी में सपा के गढ़ माने जाने वाले किले ध्वस्त हो गए। जिसमें कन्नौज से डिंपल यादव, बदायूं से धर्मेंद्र यादव और फिरोजाबाद से अक्षय यादव और शिवपाल यादव को हार का सामना करना पड़ा।