उत्तर प्रदेश के प्रयागराज में कुंभ की तारीख जैसे-जैसे नजदीक आ रही है वैसे-वैसे यहां कई अनोखे रौनक देखे जा रहे हैं। कुंभ में दर्जन भर से ज्यादा अखाड़ो और हजारों-लाखों साधु संतो का आगमन हो रहा है। इस क्रम में अलग संवाद शैली और अनूठे अभिनय के लिए जंगम बाबाओं की खूब चर्चा हो रही है। मूलत: शैव संप्रदाय से जुड़े जंगम साधुओं का दल कुंभ नगरी में आकर्षण का केंद्र बना हुआ है। जंगम साधु खास तरह के बाबा होते है जो खानदानी शिव भक्त बताये जाते है। यह केवल साधु संतो से ही दान या भिक्षा लेते है।

जंगम साधुओं की वेशभूषा- बता दें कि शैव संप्रदाय से जुड़े इन जंगम साधुओं की वेशभूषा काफी हद तक सिख समुदाय के पहनावे से मिलती है। ये लोग अपने सिर पर पगड़ी के साथ तांबे-पीतल से बने गुलदान में मोर के पंख धारण करते हैं। कपड़ों पर सर्प निशान के साथ कॉलर वाले कुर्ते पहने पहनते है। ये साधु हाथों में खझड़ी, मजीरा, घंटियां अदि लिए घूमते हैं।

संगम नगरी में आए जंगम बाबा की माने तो इनका जन्म शिव जी के जांघ से हुआ है। उन्होंने बताया कि सिर पर लगे मोर पंख लगा हमारी पहचान होती है। ये साधु शिव की कथा और शिव के ही नाम से दान दक्षिणा लेते है। सभी जंगम बाबा पंजाब, हरियाणा से आये हुए है। अखाड़ो के साधु के अनुसार इनको दान देना अनिवार्य होता है। इन साधुओं की दक्षिणा लेने की तकनीक भी अलग है। ये लोग भेंट को हाथ से नहीं लेते, बल्कि अपनी घंटी को उलट करके उसी में दक्षिणा लेते हैं। एक अखाड़े से दूसरे अखाड़े में घूमते, कथा सुनाते जंगम साधुओं का यह क्रम पूरे कुंभ के दौरान जारी रहेगा।

हरियाणा से आए ये जंगम साधु मूल रूप से दशनाम अखाड़ों के भाट हैं। ये लोग अपनी अनूठी संवाद शैली में अखाड़ों की गौरव गाथा सुनाते है। इसके अलावा शिव कथा भी रोचक तरीके से सुनाते हैं। इन साधुओं का काम दशनाम संन्यास की परंपराओं का बखान करना है। जंगम साधुओं की ये टोली कुंभ के दौरान 13 अखाड़ो में जा कर वहां के साधु संतो को शिव भक्ति से जुड़े गाने सुनाती है। ये साधु केवल कुंभ के दौरान ही आते है। बताया जाता है सैकड़ों वर्षों से इनकी यह परंपरा चली आ रही है।