उत्तर प्रदेश के हाथरस में हुई एक घटना ने पूरे देश को सन्न कर दिया था। इस मामले ने तूल तब और पकड़ा जब पुलिस प्रशासन पर आरोप लगा कि परिवार को बिना विश्वास में लिए पीड़ित लड़की का अंतिम संस्कार कर दिया गया। साल था 2020 और यह बात 14 सितंबर से शुरू होती है फिर कई दिनों तक पुलिस छावनी बना एक गांव, जहां पीड़िता के परिजन सहमे से घर में बैठे रहे और मीडिया व विपक्षी राजनीतिक दलों का भारी जमावड़ा रहा; यह घटना आज तक हाथरस लोगों के जेहन में जिंदा है।
हाथरस की बात इसलिए भी क्योंकि उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव जारी हैं। ऐसे में यहां के तीन निर्वाचन क्षेत्रों, हाथरस-सादाबाद, सिकंदरा राव और हाथरस (एससी) में मतदाता, जाति और सुरक्षा के मसले पर दलित लड़की के साथ बलात्कार-हत्या को ध्यान में रखते हैं। साथ ही लोग मानते हैं कि इस घटना के आरोपियों को सीएम योगी के नेतृत्व में चल रहे प्रशासन का साथ मिलता रहा है।
जाटव बहुल गांव गढ़ा कस्बी के पूर्व प्रधान राजपाल सिंह कहते हैं कि, “उस लड़की के साथ जो भी हुआ वह दुर्भाग्यपूर्ण था। हम कई दिनों तक सो नहीं पाए, क्योंकि यह सब बुरा सपने जैसा था। वैसे भी दलितों के लिए कई बुरे सपने होते हैं। जहां एक तरफ मौजूदा सरकार में काफी काम हुआ है, वहीं इस घटना ने सभी को हिलाकर भी रख दिया था। इसलिए चुनावों में इसका असर तो देखने को मिलेगा।
दलित लड़की, जिस सिकंदरा राव निर्वाचन क्षेत्र में रहती थी उस सीट पर पिछली बार भाजपा के वरिष्ठ नेता बीरेंद्र सिंह राणा चुनाव जीते थे। साथ ही हाथरस (एससी) सीट भी भाजपा के हरिशंकर माहौर ने जीती थी, जबकि जिले की तीसरी सीट सादाबाद पर बसपा के रामवीर उपाध्याय जीते थे। साल 2012 के विधानसभा चुनावों के बाद जिले की दो सीट बसपा के पास थी तो वहीं सादाबाद पर सपा प्रत्याशी ने जीत दर्ज की थी। बता दें कि, इन तीनों सीटों पर 20 फरवरी को वोटिंग होनी है।
इन चुनावों में गठबंधन के रूप में लड़ रही सपा और रालोद दोनों पार्टियां अपने चुनाव प्रचार अभियान में हाथरस की घटना उठाती रही हैं। दोनों ही पार्टियों ने पीड़िता के गांव में कई दिनों धरना दिया था और गांव जाते वक्त रालोद के संयोजक जयंत चौधरी पर हुए लाठीचार्ज के दृश्य भी पार्टी के लिए समर्थन पैदा करते रहे हैं। वहीं, जयंत चौधरी भी अपनी रैलियों में हाथरस की घटना याद दिलाते कहते रहे हैं कि हमने न्याय के लिए लड़ाई लड़ी थी।
बसपा समर्थक राजेंद्र सिंह बताते हैं कि, इस घटना ने दलित समाज को एक संदेश दिया है कि आरोपियों को पूरे समुदाय का समर्थन है। हम पहले से ही डरे हुए और खुद को हाशिए पर महसूस कर रहे थे लेकिन ठाकुरों की एकजुटता ने हमें और किनारे पर धकेल दिया है। ऐसे में हमें उन लोगों के साथ रहना चाहिए जो हमारी मूल पहचान को बनाए रख सकते हैं।
बता दें कि जिले की तीनों सीटों में से सादाबाद सीट पर रालोद की ठीक पकड़ है, क्योंकि साल 2002 और 2007 में पार्टी यहां से जीती थी। हालांकि, इस बार रालोद के प्रत्याशी प्रदीप कुमार सिंह के आगे रामवीर उपाध्याय (भाजपा) जैसा मजबूत प्रतिद्वंदी है।
इन सबके बीच हाथरस शहर में जातियों का बंटवारा बड़ा मुद्दा है। शहर के बीचो-बीच बसी तमन्ना गढ़ी एक जाटव कॉलोनी है, यहां लोग यूपी की मौजूदा सरकार के कानून और रोजगार के दावों पर बड़ा सवाल खड़ा करते हैं। यहां के निवासी अमर का मानना है कि सरकार ने सुरक्षा के लिए काफी काम किया है लेकिन हाथरस जैसी घटनाएं बताती हैं कि ‘हम अलग हैं’। इसके अलावा वह कहते हैं कि मौजूदा सरकार में नौकरी कहां मिली?
इन सब दावों के बीच यह विधानसभा चुनाव एक परीक्षा है कि क्या सरकार वास्तव में समाज के हितों के बारे में सोचती है या सिर्फ एक विशेष वर्ग के बारे में सोचती हैं। वहीं, साल 2012 के चुनावों तक हाथरस (एससी) सीट बसपा का गढ़ रहा क्योंकि पार्टी ने यहां 1996 से लगातार चुनाव जीता था।
हाथरस के स्थानीय अमित वार्ष्णेय बताते हैं कि, भाजपा का इस मामले पर तर्क है कि प्रदेश में विकास के मुद्दों के आगे हाथरस कांड धूमिल हो जाएगा। वह कहते हैं कि भाजपा यहां से पहले भी चुनाव जीत चुकी है और सीएम योगी आदित्यनाथ सभी समुदायों के बारे में सोचते हैं। वहीं गठबंधन (सपा-रालोद) का असर भी एक निर्वाचन क्षेत्र को छोड़कर यहां नहीं है। इसके अलावा जाटव समुदाय भी यह मानता है कि उनके नेताओं ने कोई काम नहीं किया है।