UP BJP President Race: उत्तर प्रदेश भाजपा को जल्द ही नया अध्यक्ष मिलने वाला है। ऐसे में यह सवाल उठ रहा है कि क्या पार्टी आगामी 2027 के विधानसभा चुनाव में किसी परखे और पुराने ओबीसी नेता को ही जिम्मेदारी देगी? पिछले दो चुनावों में- 2017 में केशव मौर्य और 2022 में स्वतंत्र देव सिंह, दोनों ओबीसी नेता पार्टी को बड़ी जीत दिला चुके हैं।

केशव मौर्य को यूपी भाजपा अध्यक्ष नियुक्त किए जाने के नौ साल बाद राज्य में पार्टी के एक नए पर मोड़ है। और आज पार्टी की स्थिति पहले जैसी नहीं रही। 2017 के विधानसभा चुनाव से पहले भाजपा का मुख्य फोकस ओबीसी वोटों को जोड़ने पर था। अब, 2024 के लोकसभा चुनावों में ओबीसी वोटों में आई कमी से पार्टी को बड़ा झटका लगा है, इसलिए वह एक बार फिर इन्हीं वोटों को वापस पाने की कोशिश में है।

कुछ दिलचस्प संयोग भी नजर आते हैं। 8 अप्रैल 2016 को, चैत्र महीने के पहले दिन, केशव प्रसाद मौर्य को यूपी भाजपा अध्यक्ष बनाया गया था। अब, जब हम नए साल की शुरुआत के करीब हैं, यूपी भाजपा को फिर से नया अध्यक्ष मिलने वाला है।

फूलपुर के उस समय के सांसद केशव प्रसाद मौर्य को जब यूपी बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष बनाया गया, तो इसे एक नए ओबीसी नेता के उभरने के रूप में देखा गया। इसका महत्व इसलिए भी बढ़ गया था क्योंकि कल्याण सिंह, ओम प्रकाश सिंह और बजरंग दल के तेज़तर्रार नेता विनय कटियार जैसे पुराने बड़े चेहरे भाजपा के 14 साल से सत्ता से बाहर रहने के कारण अपनी चमक खो चुके थे। मौर्य की नियुक्ति को राज्य में “नई भाजपा” के उदय के तौर पर भी माना गया।

2017 के चुनाव में भाजपा ने 312 सीटें जीतकर रिकॉर्ड बनाया। इससे केशव प्रसाद मौर्य पार्टी के नए और मज़बूत ओबीसी नेता के रूप में सामने आए। गैर-यादव ओबीसी वोटर, खासकर कुर्मी समाज, 2024 तक भाजपा के साथ मज़बूती से जुड़े रहे। इसी दौरान जलशक्ति मंत्री स्वतंत्र देव सिंह, पशुपालन मंत्री धर्मपाल सिंह और कुछ अन्य नेता भी भाजपा में ओबीसी चेहरे के रूप में अपनी पहचान बना चुके थे।

हालांकि, 2024 के लोकसभा चुनाव में कई ओबीसी उपजातियां, जिनमें बड़ी संख्या में कुर्मी भी थे समाजवादी पार्टी के नेतृत्व वाले इंडिया गठबंधन के साथ चली गईं। इसका असर यह हुआ कि भाजपा की सीटें 2019 की 62 से घटकर सिर्फ 33 रह गईं। तब से ओबीसी वोटों में आया यह बदलाव भाजपा के लिए बड़ी चिंता का कारण बना हुआ है। एक वरिष्ठ भाजपा नेता ने टाइम्स ऑफ इंडिया को बताया कि 2024 में ओबीसी वोटों में आई कमी की वजह ओबीसी नेताओं की कमजोरी नहीं थी, बल्कि पार्टी की कई स्तरों पर हुई रणनीतिक गलतियां और कुछ आत्मघाती फैसले थे।

पार्टी के एक सूत्र ने टाइम्स ऑफ इंडिया को बताया, “इसी वजह से भाजपा किसी नए ओबीसी नेता को आगे लाने के बजाय किसी पहले से स्थापित ओबीसी चेहरे पर भरोसा कर सकती है।” उन्होंने यह भी कहा, “हालाँकि भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व का फैसला क्या होगा, यह कहना मुश्किल है।” उन्होंने कहा, “सबसे अच्छा विकल्प यही होगा कि पार्टी किसी ऐसे ओबीसी नेता को अध्यक्ष बनाए, जो यूपी की राजनीति को अच्छी तरह समझता हो और पहले ही दिन से पार्टी के लिए सक्रिय होकर काम शुरू कर सके।”

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इसी बीच, केशव प्रसाद मौर्य पिछले कुछ महीनों से लगातार चर्चा में हैं। उन्हें पहले बिहार विधानसभा चुनाव का सह-प्रभारी बनाया गया, और फिर भाजपा विधायक दल के नेता के चुनाव के लिए पर्यवेक्षक भी नियुक्त किया गया। ओबीसी नेताओं की सूची में उत्तर प्रदेश के मंत्री स्वतंत्र देव सिंह, धर्मपाल सिंह और केंद्रीय मंत्री बी.एल. वर्मा भी शामिल हैं।

हालांकि, कुछ लोग यह भी मानते हैं कि पार्टी की वर्तमान परिस्थितियां किसी उच्च जाति के नेता को यूपी भाजपा अध्यक्ष बनाए जाने की संभावना को पूरी तरह खत्म नहीं करती। इस दौड़ में बस्ती से पूर्व भाजपा सांसद हरीश द्विवेदी और पूर्व उप-मुख्यमंत्री दिनेश शर्मा भी शामिल हैं। लेकिन इस विचार के समर्थक मानते हैं कि संतुलन फिलहाल “एक स्थापित ओबीसी नेता” के पक्ष में ज्यादा झुका हुआ है। एक अन्य वरिष्ठ नेता ने कहा कि भाजपा में केंद्रीय नेतृत्व का अचानक फैसले लेने का तरीका भी एक सामान्य और आदर्श बात मानी जाती है।

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