कुछ हफ्तों बाद पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव होने जा रहे हैं। सभी दलों में इसको लेकर रणनीति बनाने और प्रचार-प्रसार करने में तेजी दिखने लगी है। इस बीच केंद्र की सत्तारूढ़ भाजपा सरकार के भीतर भी असंतोष की आग धधकने लगी है। इससे पार्टी नेतृत्व के सामने नया संकट खड़ा हो गया है।
पहले पार्टी के राज्यसभा सांसद सुब्रमण्यम स्वामी सार्वजनिक रूप से सभी मंचों पर सरकार की खुलेआम आलोचना करके पार्टी के लिए असहज स्थित पैदा करते रहे हैं, फिर वरुण गांधी सरकार के खिलाफ एक के बाद एक तीर छोड़ने से पीछे नहीं हट रहे हैं, अब केंद्रीय मंत्री और मतुआ समुदाय के प्रमुख सदस्य शांतनु ठाकुर ने पार्टी के सभी व्हाट्सएप ग्रुप छोड़कर सरकार के खिलाफ बोलने के लिए विपक्ष को एक अवसर दे दिए।
केंद्रीय जहाजरानी राज्य मंत्री ठाकुर ने मंगलवार को इसकी पुष्टि करते हुए संवाददाताओं से कहा, “ऐसा प्रतीत होता है कि पश्चिम बंगाल राज्य के भाजपा नेतृत्व को नहीं लगता कि संगठन के भीतर हमारी (मतुआ) कोई महत्वपूर्ण भूमिका है।” उन्होंने यह भी कहा कि क्या भाजपा की राज्य इकाई में अब उनका कोई महत्व है। ठाकुर ने कुछ और कहने से इनकार कर दिया। उन्होंने पीटीआई के फोन कॉल का जवाब नहीं दिया। वह अखिल भारतीय मतुआ महासंघ के संघ अधिपति हैं।
बनगांव के सांसद ने कुछ दिन पहले मतुआ समुदाय के कुछ विधायकों को भाजपा की पुनर्गठित राज्य और जिला समितियों में शामिल नहीं किए जाने पर आपत्ति जताई थी। हालांकि उन्होंने कहा था कि वह पार्टी के प्रति वफादार रहेंगे। इस घटनाक्रम पर प्रतिक्रिया देते हुए भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष सुकांत मजूमदार ने कहा, “हम शांतनु ठाकुर के साथ किसी भी गलतफहमी को दूर कर लेंगे। वह भाजपा परिवार का पूरी तरह हिस्सा हैं।”
इस संबंध में तृणमूल कांग्रेस के राज्यसभा सदस्य सुखेंदु शेखर रॉय ने संवाददाताओं से कहा कि भाजपा ने अपने चुनावी लाभ के लिए मतुआ समुदाय का इस्तेमाल किया है। उन्होंने कहा, “लेकिन उसे (भाजपा) उनके वास्तविक विकास की चिंता नहीं है। अब यह स्पष्ट हो गया है।”
इससे पहले कांग्रेस पार्टी के अंदर आपसी अंतर्कलह और टकराव को लेकर भाजपा खुलकर बोलती थी, लेकिन भाजपा के अपने नेता भी अब अपनी ही पार्टी के लिए खुलकर मैदान में उतरना शुरू कर दिए हैं। इससे चुनाव के पहले विपक्ष को सरकार की आलोचना करने का अवसर मिल गया है।