सुप्रीम कोर्ट ने हस्तक्षेप नहीं किया होता तो बिहार सरकार पिछले पुलिस महानिदेशक संजीव कुमार सिंघल को ही सेवा विस्तार दे देती। जिनके पुलिस महानिदेशक रहते सूबे में अवैध शराब का गैर कानूनी धंधा तो पनपा ही कई लोगों की मौतें भी हुई। एसएसपी और आइजी स्तर के दो अधिकारियों की जंग चौराहे पर पहुंची और दोनों ही इस समय निलंबित हैं।
सुप्रीम कोर्ट ने पिछले हफ्ते ही संघ लोक सेवा आयोग को हिदायत दे दी थी कि नए पुलिस महानिदेशक के पद पर नियुक्ति के लिए तीन वरिष्ठतम अधिकारियों की सूची राज्य सरकार को उपलब्ध कराई जाए। संजीव कुमार सिंघल की नियुक्ति को सुप्रीम कोर्ट में इस आधार पर चुनौती दी गई थी कि नियुक्ति प्रक्रिया में राज्य सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के निर्धारित दिशा निर्देशों का पालन नहीं किया था। इस साल मार्च में सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में बिहार सरकार को नोटिस भी जारी किया था। सिंघल को दरअसल 2020 में गुप्तेश्वर पांडे के त्यागपत्र के बाद राज्य सरकार ने काम चलाऊ डीजीपी नियुक्त किया था।
सिंघल पर अपने विभाग में सजातीय अधिकारी अमित लोढ़ा को संरक्षण देने का भी आरोप लगा। लोढ़ा जब गया के आइजी थे तो अपने मातहत एसएसपी आदित्य कुमार से उनकी अनबन हो गई। दोनों ने एक-दूसरे पर शराब माफिया को संरक्षण देने के आरोप लगाए। दोनों का ही बाद में गया से तबादला कर दिया गया। आदित्य कुमार दलित हैं।
उन्हें अक्तूबर में इस आधार पर निलंबित किया गया कि उन्होंने डीजीपी सिंघल को पटना हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश के नाम से छद्म टेलीफोन काल कराकर अपनी तैनाती की सिफारिश कराई थी। जिसे डीजीपी ने मान लिया था पर बाद में उन्हें असलियत पता लगी तो उन्होंने एसएसपी आदित्य कुमार के खिलाफ मामला दर्ज करा दिया।
डीजीपी सिंघल के बारे में सुप्रीम कोर्ट को भी बताया गया कि वे कितने अयोग्य हैं कि टेलीफोन की सिफारिशों पर अनुचित फैसले लेते हैं। जो सूबे के पुलिस महकमे के मुखिया होते हुए भी मुख्य न्यायाधीश के नाम से की जाने वाली काल की पहचान नहीं कर पाए। बहरहाल आदित्य कुमार पिछले दो महीने से अपनी गिरफ्तारी के डर से फरार हैं।
इस बीच बिहार पुलिस की विशेष सतर्कता इकाई उनके मेरठ के घर पर भी छापा मार चुकी है। उनके परिवारजनों का आरोप है कि पुलिस महानिदेशक की जांच में जिस आइजी अमित लोढ़ा पर करोड़ों रुपए के काले धन का ओटीटी फिल्म निर्माण में इस्तेमाल किया है उसके खिलाफ निलंबन की कार्रवाई भी नौ दिसंबर को की गई। उन्हें गिरफ्तार भी नहीं किया गया। जबकि दलित होने के कारण आदित्य कुमार को बेकसूर होने के बावजूद साजिश का शिकार बनाया गया है।
जहरीली शराब से बिहार के सारण जिले में पिछले दिनों हुई मौतों के कारण राज्य सरकार दबाव में है। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार इस मुद्दे पर विधानसभा में विपक्षी भाजपा पर तो गुस्सा हुए ही थे उन्होंने यह बयान भी दे दिया था कि जो पीएगा, वह मरेगा। उन्होंने मरने वालों के परिवारजनों को मुआवजा देने से भी इनकार कर दिया था।
विपक्ष उन पर इसी बयान को लेकर संवेदनहीन होने का भी आरोप लगा रहा है। जब्त की गई अवैध शराब पुलिस थानों के मालखानों से गायब होने पर जब अदालत ने पुलिस से जवाब तलब किया था तो बहाना बनाया गया था कि शराब चूहे पी गए। जद (एकी) की सहयोगी राजद के नेता तक इस अवैध कारोबार के पीछे पुलिस की भूमिका बता रहे हैं।