तेलंगाना में आने वाले विधानसभा चुनाव के लिए बीजेपी जमकर तैयारी कर रही है। तेलंगाना राष्ट्र समिति (TRS) और भाजपा अब 17 सितंबर, 1948 जब हैदराबाद की तत्कालीन रियासत का भारत में विलय हुआ था, उसके स्मरणोत्सव को लेकर भिड़ गए हैं। टीआरएस के नेतृत्व वाले राज्य सरकार ने इस दिन को तेलंगाना राष्ट्रीय एकता दिवस के रूप में मनाने का फैसला किया है, जबकि भाजपा के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार ने घोषणा की है कि वह इसे हैदराबाद राज्य मुक्ति दिवस के रूप में मनाएगी।

राज्य में अगले साल होने वाले विधानसभा चुनावों के साथ भाजपा ने ऐतिहासिक अवसर की वर्षगांठ पर टीआरएस और हैदराबाद के सांसद असदुद्दीन ओवैसी के नेतृत्व वाली उनकी सहयोगी एआईएमआईएम (ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन) के खिलाफ राजनीतिक बढ़त हासिल करने की कोशिश की है।

ओवैसी के नेतृत्व वाली पार्टी का कहना है कि मूल मजलिस या एमआईएम जोकि रियासत के भारत में विलय के महीनों में हुई हिंसा से जुड़ी है, वह 17 सितंबर के बाद अस्तित्व में नहीं रही। इतिहासकार मोहम्मद नूरुद्दीन खान के अनुसार एमआईएम के अध्यक्ष कासिम रजवी और अन्य वरिष्ठ नेताओं के पाकिस्तान जाने से पहले, उन्होंने पार्टी की बागडोर असदुद्दीन के दादा अब्दुल वहीद ओवैसी को सौंप दी, जो इससे पहले संगठन से जुड़े नहीं थे।

भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव तरुण चुग ने दावा किया है कि टीआरएस को पिछले हफ्ते ‘तेलंगाना राष्ट्रीय एकता दिवस’ मनाने की अपनी योजनाओं की घोषणा करने के लिए मजबूर होना पड़ा क्योंकि केंद्र की इसे ‘मुक्ति दिवस’ के रूप में मनाने की योजना थी। केंद्र सरकार की परेड ग्राउंड में एक विशाल जनसभा आयोजित करने की योजना है। केंद्रीय पर्यटन और संस्कृति मंत्री जी किशन रेड्डी, जो सिकंदराबाद से लोकसभा सांसद हैं, ने 3 सितंबर को मुख्यमंत्री केसीआर पत्र लिखा और इस जनसभा में मुख्य अतिथि बनने का आग्रह किया।

सत्ताधारी दल के लिए यह मसला कड़ा रुख अख्तियार करने जैसा है। केसीआर ने तेलंगाना में मुसलमानों के समर्थन को हासिल किया है और उन निर्वाचन क्षेत्रों में अल्पसंख्यक वोटों से लाभान्वित हुई है जहां एआईएमआईएम चुनाव नहीं लड़ती है।

टीआरएस के एक वरिष्ठ नेता ने इंडियन एक्सप्रेस से बात करते हुए कहा, “तेलंगाना के गठन से पहले भी केसीआर निज़ामों द्वारा किए गए अच्छे कामों की ओर इशारा करते थे। जैसे कि शैक्षणिक संस्थानों के निर्माण पर जोर देना, कॉलेजों और विश्वविद्यालयों को दान देना, सिंचाई सुविधाओं का निर्माण करना आदि। इससे ​​काफी सद्भावना पैदा हुई और राज्य बनने के बाद से टीआरएस को इसका फायदा मिला है। एकीकरण या मुक्ति को स्वीकार करने और जश्न मनाने के लिए पार्टी को कुछ समर्थन खोना पड़ सकता है।”