‘देखिए इसे आप मेरा अहंकार मत समझिए। लेकिन मैं फिर यही कहता हूं कि उपचुनावों के नतीजों को समग्रता में देखा जाना चाहिए। यह एक छोटा हिस्सा है। हम जमीनी स्तर पर जाकर हार के कारणों की पड़ताल कर रहे हैं। आप यह देखिए कि हमने हार के अंतर को कम किया है’। मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान फरवरी के अंत में मुंगावली और कोलारस सीटों पर उपचुनावों में हुई हार के सवाल पर बड़े संयत ढंग से यह जवाब देते हैं। माफिया के खिलाफ लिख रहे पत्रकार की ट्रक से कुचल कर हत्या कर दी गई। लोगों में इसे लेकर काफी गुस्सा है। खबरनवीस भय के माहौल में जी रहे और आप पर भी सवाल उठ रहे। इस सवाल पर शिवराज कहते हैं, ‘देखिए यह बहुत गंभीर मसला है। हम अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के मजबूत पक्षधर हैं। अगर राज्यस्तरीय जांच होती तो बहुत से सवाल उठते। इसलिए हमने सीबीआइ जांच की सिफारिश की। यह मेरा वादा है कि सीबीआइ के हवाले करने के बाद हम इस मसले को भूल नहीं जाएंगे। हम इसकी समीक्षा करते रहेंगे। जहां तक आप भय के माहौल की बात कर रहे हैं तो मैं बिना किसी से तुलना किए कहता हूं कि हमारे यहां हालात बेहतर हैं। मध्य प्रदेश एक शांत राज्य है। इस दुर्भाग्यपूर्ण घटना से भी हमने सबक लिया है और इस दिशा में भी माहौल बेहतर करने की पूरी कोशिश है’।
उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, गुजरात, राजस्थान, हरियाणा, छत्तीसगढ़ और बिहार – ये वे राज्य हैं जिनकी लोकसभा की सीटों ने 2014 में भाजपा के लिए इतिहास रचा था। भाजपा की अगुआई वाली राजग सरकार केंद्र में बन गई और कांग्रेसमुक्त भारत बनाने का दावा किया गया। अब 2019 के पहले जब भाजपा के शासन वाले राज्यों में विधानसभा चुनाव होने हैं तो चिंता केंद्रीय है। इन राज्यों से लोकसभा में अधिकतम सीटें मिली थीं और विधानसभा चुनावों में इसमें कमतरी हुई तो इसका असर 2019 पर पड़ेगा। तो क्या यह दबाव आप भी झेल रहे हैं और खासकर ताजा उपचुनावों के नतीजों के बाद। इस पर चौहान कहते हैं, ‘हमने तो लगातार जनता के लिए काम किया है और हमेशा जनता की दिशा में ही काम करेंगे तो चुनावों से क्या डरना। मुझे अपने काम पर भरोसा है और मैं ऐसा कोई दबाव नहीं झेल रहा’।
उत्तर प्रदेश में गोरखपुर के गढ़ में भाजपा की हार हुई तो राजस्थान और मध्य प्रदेश के उपचुनावों को कांग्रेस के लिए संजीवनी माना जा रहा है। लेकिन 19 राज्यों में राज कर रही भाजपा के नेता इसे तूल नहीं देना चाहते हैं। इसी क्रम में शिवराज सिंह चौहान भी यही कहते हैं, ‘मुझे नहीं पता कि किस अवधारणा के तहत कांग्रेस को भाजपा के लिए चुनौती माना जा रहा है। एक चुनाव में कुछ सीटें कम हो जाने को कांग्रेस की जीत और भाजपा की हार के रूप में नहीं देखा जा सकता। इस बार भी भाजपा को गुजरात में 49 फीसद वोट मिले हैं। 22 साल सत्ता में रहने के बाद भी 49 फीसद वोट पा लेना चमत्कार है’।
मध्य प्रदेश में निकाय चुनावों में अच्छे नतीजे नहीं मिलने के बाद शिवराज सिंह चौहान ने अपने मंत्रिमंडल का विस्तार किया। इसके पहले जब संजय लीला भंसाली की फिल्म ‘पद्मावत’ के विरोध में उतरे और ‘राष्टÑमाता पद्मावती’ की बात की तो इसे भी आगामी चुनावों के मद्देनजर वोट बैंक की राजनीति ही माना गया। केंद्र सरकार के आम बजट में कृषि को लेकर जो खास प्रावधान किए गए विश्लेषक उन किसानों को मध्य प्रदेश के खेतों में खड़ा देख रहे हैं। लेकिन चौहान इस तरह की किसी भी चुनावी तैयारी से इनकार करते हुए कहते हैं, ‘जो लगातार काम करते हैं, वे चुनावों के लिए विशेष तैयारी नहीं करते’।
उत्तर प्रदेश, राजस्थान और मध्य प्रदेश जैसे राज्यों ने भाजपा को देश की राजनीति की केंद्रीय भूमिका में खड़ा किया है। उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव भाजपा जीत चुकी है और वहां मोदी लहर काम कर रही थी। मध्य प्रदेश जैसे अहम राज्य को भाजपा किसी भी हालत में वापस पाना चाहेगी। तो क्या यहां भी उनकी केंद्रीय भूमिका होगी? शिवराज सिंह चौहान कहते हैं, ‘आज कमजोर तबकों के बीच प्रधानमंत्री आवास योजना, उज्ज्वला योजना लोकप्रिय है। साफ है कि मोदी जी गरीबों से जुड़े हैं, उन्हें घर दे रहे हैं, रसोई के लिए र्इंधन दे रहे हैं। अब यह छवि भी टूटी है कि भाजपा गरीबों की पार्टी नहीं है। लेकिन विधानसभा चुनाव में स्टेट लीडरशिप का ही आकलन होता है’। उपचुनावों के नतीजों पर बातचीत का अंत करते हुए कहते हैं, ‘हमें समय रहते अपने में सुधार करने का मौका मिल गया। अभी चुनावों में वक्त है और हम अपनी कमजोरी को दुुरुस्त कर लेंगे। उपचुनावों की इस हार को स्वीकार कर और मजबूत बनेंगे।’