दुनिया के सातवें अजूबे ताजमहल का दीदार चंद महीनों में ही महंगा हुआ है। प्रवेश टिकट तीन गुना महंगा हुआ है, वहीं मुश्किलें ज्यादा बढ़ गई हैं। जैसे-जैसे ताज का टिकट महंगा हुआ, वैसे-वैसे सैलानियों की दिक्कतें बढ़ती गर्इं। ताजमहल पर भारतीयों और विदेशी सैलानियों के लिए अलग-अलग टिकट साल 2000 में शुरू हुआ, जब एडीए ने पथकर के 500 रुपए वसूलने शुरू किए। तब पथकर के टिकट के साथ सैलानियों को सुविधा के रूप में शू कवर और पानी की आधा लीटर की बोतल निशुल्क में दी गई। 17 साल बाद ताज का टिकट विदेशियों के लिए दोगुना बढ़ गया, लेकिन सुविधाएं जस की तस रहीं, न पार्किंग की पास में कोई सुविधा है और न ही पीने के पानी की और टायलेट की सुविधा भी नाममात्र की है। वहीं बात यदि सुरक्षा की करें तो ताज के तीनों गेटों पर सुरक्षा जांच कतार में भारतीयों के साथ विदेशी भी शामिल होते हैं, जबकि टिकट के एक हजार रुपए वसूले जाते हैं।

भारतीयों को ताज के अंदर एक से डेढ़ किमी लंबी कतार में लगना पड़ रहा है, वहीं विदेशी पर्यटकों को भारी भीड़ में गुंबद तक पहुंचने में मुश्किलें आती हैं।
टिकट महंगा करने के बाद एएसआइ ने कोई सुविधा नहीं दी और हर बार टिकट महंगा किए जा रहे हैं।

कभी 20 पैसे में होता था ताज का दीदार
ताजमहल पर सबसे पहले 1966 में प्रवेश टिकट लगाया गया। तब 20 पैसे का टिकट था। उद्देश्य सैलानियों की संख्या जानना था। तीन साल बाद 1969 में टिकट के दाम 50 पैसे कर दिए गए। मौजूदा रॉयल गेट पर एक ही टिकट काउंटर से टिकट मिलती थी और वाहनों की पार्किंग फोरकोर्ट के अंदर ही होती थी। एएसआइ की कमाई होते देख आगरा विकास प्राधिकरण ने स्मारकों पर पथकर लगा दिया। एएसआइ के 50 पैसे के एवज में विकास प्राधिकरण ने 1.50 रुपए वसूलना शुरू कर दिया। इसके बाद 1993 में सूर्योदय और सूर्यास्त के समय दो-दो घंटे के लिए अलग से 100 रुपए का टिकट लगाया गया। इसके बाद से ताज दोनों विभागों के लिए सोने का अंडा देने वाली मुर्गी की तरह से हो गया। तभी से लगातार टिकट दरों में बढ़ोतरी की जा रही है।