उपराज्यपाल द्वारा दिल्ली नगर निगम (एमसीडी) में एल्डरमैन की नियुक्ति पर सुप्रीम कोर्ट की मुहर लगने से दिल्ली में स्थायी समिति के गठन का रास्ता साफ गया है। स्थायी समिति के गठन के बाद निगम के कई विभागों में लंबित परियोजनाओं को हरी झंडी मिल सकेगी। वहीं, वार्ड कमेटियों के गठन न होने की वजह से स्थानीय स्तर पर निगम के कार्यों की निगरानी नहीं हो पा रही है। साथ ही लोगों की समस्या पर सीधा काम नहीं हो पा रहा है।
दिल्ली नगर निगम के सचिव शिवा ने बताया कि नियमानुसार 10 नामित सदस्य निगम सदन में मताधिकार का प्रयोग नहीं कर पाएंगे। वे केवल जोन की बैठक में इस अधिकार का इस्तेमाल कर सकेंगे। उन्होंने बताया कि जल्द ही वार्ड समितियों का भी गठन होगा।
प्रभावित होने वाले बड़ी परियोजनाओं में एमसीडी के मध्य जोन और दक्षिण जोन के अंतर्गत आने वाले वार्डों के लिए अपशिष्ट प्रसंस्करण के निर्माण और कचरा निपटान के लिए निविदा जारी करने तथा जंगपुरा, कालकाजी और न्यू फ्रेंड्स कालोनी में बहु-स्तरीय पार्किंग परियोजनाओं से लेकर अप्रभावी शहरी नियोजन जैसे कई मामले लंबित पड़े है।
दस एल्डरमैन से ऐसे बनेगा स्थायी समिति की सत्ता का गणित
न्यायालय के आदेश के बाद नगर निगम में भाजपा की ताकत बढ़ेगी। आशंका है कि मनोनीत पार्षद आप शासित दिल्ली सरकार के पक्ष में वोट नहीं देंगे। ऐसे में आने वाले समय में स्थायी समिति का चुनाव भी दिलचस्प होगा। स्थायी समिति के सदस्यों की कुल संख्या 18 है जिसमें से छह सदस्य सदन से और बाकी 12 सदस्य हर जोन से चुनकर आते है। वर्तमान में द्वारका से पार्षद और स्थायी समिति की सदस्य रही कमलजीत सेहरावत के सांसद निर्वाचित होने पर एक सीट रिक्त पड़ी है।
स्थायी समिति का अध्यक्ष बनने के लिए उम्मीदवार को 10 सदस्यों की जरूरत पड़ेगी। फिलहाल की बात करें तो 12 में चार जोन (नजफगढ़, शाहदरा साउथ, शाहदरा उत्तरी और केशवपुरम) में भाजपा के पास सीधा बहुमत है। जबकि आप के पास वैसे तो आठ जोन में बहुमत हैं, लेकिन नरेला, सिविल लाइंस और मध्य जोन में एल्डरमैन की नियुक्ति से यहां से चुनकर आने वाले सदस्य को लेकर संशय है। इससे भाजपा को फायदा हो सकता है।
