जिस तरह से ओखली में सिर डालने के बाद मूसलों से डरना छोड़ देना चाहिए…ठीक उसी तरह सरकारी नौकरी में आने के बाद तबादलों का खौफ भी दिल से निकल जाना चाहिए। मगर एक ही शख्स को एक हफ्ते से भी कम वक्त में अगर आधा दर्जन से ज्यादा ट्रांसफर ऑर्डर थमा दिया जाएगा तो भला कौन है जो टेंशन में नहीं आएगा। ये कोई हाईपोथिटिकल बात नहीं है बल्कि आज से करीब 20 साल पहले यूपी की घटना है। सियासी किस्से में आज बात उसी तबादला एक्सप्रेस और उसकी कंट्रोलर मायावती की, जिन्हें उस दौर में तबादला क्वीन भी कहा जाता था।

हफ्ते भर में पांच ट्रांसफरः 2002 में यूपी की सत्ता में बीएसपी सुप्रीमो मायावती काबिज हो चुकी थीं। प्रशासनिक अमले में बहन जी का खौफ था और शपथ लेने के कुछ ही घंटों बाद ये डर सच में भी तब्दील हो गया। पांच कालिदास मार्ग से तबादलों की जो ट्रेन चली उसके सारे रेड सिग्नल तोड़ दिए। बहन जी के तबादला एक्सप्रेस की सबसे ज्यादा सवारी करने वाले अफसरों में पहला नंबर था आईपीएस एन.आर.श्रीवास्तव का। जब मायावती ने सत्ता संभाली तो श्रीवास्तव एंटी करप्शन डिपार्टमेंट में डिप्टी इंस्पेक्टर जनरल ऑफ पुलिस के पद पर थे।

उन्हें ट्रांसफर करके सीआईडी का डीआजी बना दिया गया मगर 24 घंटे से भी कम समय में उन्हें आदेश मिला कि वो जीआरपी में डीआईजी का पद संभाल लें। वो रेलवे पुलिस की अपनी सीट पर बैठे ही थे कि उन्हें चित्रकूट के डीआईजी बनाए जाने का आदेश जारी हो गया। हड़बड़ी में सामान पैक करके वो घर से निकलते कि रास्ते में ही दोबारा डीआईजी जीआरपी बनाए जाने का आदेश मिल गया। यानी छह दिन में पांच ट्रांसफर…इसी तरह आईपीएस रामलाल राम को छह दिन में चार बार ट्रांसफर किया गया।

30 दिन, 305 तबादलेः बसपा सुप्रीमो मायावती चार बार यूपी की मुख्यमंत्री रहीं। पहली बार जून 1995 से अक्टूबर 1995 तक। दूसरी बार मार्च 1997 से सितंबर 1997 तक। तीसरी बार मई 2002 से अगस्त 2003 तक और चौथी बार मई 2007 से मार्च 2012 तक। 10 जून 2002 को आउटलुक मैगजीन में छपी रिपोर्ट के मुताबिक 1995 में जब वह मुख्यमंत्री बनी तो चार महीने के कार्यकाल में 386 अफसरों का तबादला कर दिया। 1997 में छह महीने के लिए सीएम बनीं तब 470 बड़े अफसरों का ट्रांसफर कर दिया। 2002 में जब वह तीसरी बार मुख्यमंत्री बनी तो महज 30 दिन के अंदर 305 अफसरों का ट्रांसफर कर दिया। इसमें 85 आईएएस अधिकारी और 50 आईपीएस अधिकारी थे।

भाई-भतीजावाद के आरोपः ताबड़तोड़ विवादों की वजह से मायावती विवादों में भी आईं। उन पर भाई-भतीजावाद, जातिवाद और भ्रष्टाचार के आरोप भी लगे। मायावती की जीवनगाथा ‘बहनजी’ में अजय बोस लिखते हैं, “मायावती सरकारी नौकरियों के नियमों में एक नया परिवर्तन करने के बारे में विचार कर रही थीं। बदलाव के अनुसार जिला मजिस्ट्रेटों और पुलिस सुप्रिटेंडेंट के गोपनीय रिकॉर्ड, जैसी कि सामान्य पद्धति थी उन अफसरों के बजाय जिनके मातहत वे लोग काम कर रहे थे स्थानीय बसपा नेता लिख सकें।”