समलैंगिकता को अपराध की श्रेणी से निकालने के लिए भारतीय दंड संहिता की धारा 377 को बदलने के संबंध में कांग्रेस के शशि थरूर की ओर से लाए गए निजी विधेयक को शुक्रवार को लोकसभा में पेश होने से ही रोक दिया गया। थरूर ने इसे क्रूर बहुमतवाद का इस्तेमाल कर लोकतांत्रिक व्यवस्था विरोधी मानसिकता का परिचायक बताया। सदन में गैर सरकारी कामकाज के दौरान थरूर ने भारतीय दंड संहिता (संशोधन) विधेयक 2016 (धारा 377 के स्थान पर नई धारा प्रतिस्थापित करने संबंधी बिल) पेश करने के लिए सदन से अनुमति चाही। लेकिन मुख्यत: सत्ता पक्ष की ओर से इसे नकार दिया गया और यही नहीं, उन्होंने इस पर मत विभाजन की मांग भी कर डाली। मत विभाजन में थरूर की ओर से रखा गया निजी विधेयक 14 के मुकाबले 58 मतों से पेश होने से रोक दिया गया। सदन में शुक्रवार को बीजद के बैजयंत पांडा की ओर से पहले से ही पेश ट्रांसजेंडर संबंधी निजी विधेयक पर चर्चा को आगे बढ़ाया गया। उसमें हिस्सा लेते हुए थरूर ने अपने विधेयक को पेश होने से रोकने के लिए सत्ता पक्ष की कड़ी आलोचना करते हुए कहा कि ऐसा करके सरकार की ओर से क्रूर बहुमतवाद का परिचय दिया गया है।

थरूर ने कहा कि यह बेहद दुख की बात है कि भारतीय सभ्यता के विरुद्ध 1860 में ब्रिटिश शासन की ओर से बनाए गए कानून को बदलने के लिए एक विधेयक को पेश तक नहीं होने दिया गया। उन्होंने कहा कि इस विधेयक को चर्चा के बाद नकारा जा सकता था लेकिन इसे पेश होने से ही रोक देना क्रूर बहुमतवाद का इस्तेमाल कर लोकतांत्रिक व्यवस्था विरोधी मानसिकता का परिचायक है। विपरीत लिंगी व्यक्तियों के अधिकार संबंधी निजी विधेयक पर चर्चा में भाग लेते हुए थरूर ने यह बात कही। राज्यसभा में अन्नाद्रमुक के तिरुचि शिवा ने यह विधेयक पेश किया था। उच्च सदन ने इसे पारित करके एक इतिहास रचा। पिछले 50 साल में ऐसा पहली बार हुआ कि किसी सदन में कोई निजी विधेयक पारित किया गया हो।

ट्रांसजेंडर व्यक्तियों के अधिकार संबंधी निजी विधेयक पर चर्चा में भाग लेते हुए भाजपा के जगदंबिका पाल ने कहा कि भारत का संविधान विश्व के सर्वोत्तम संविधानों में गिना जाता है। ऐसे में यह जरूरी हो गया है कि हम ट्रांसजेंडरों को उनके वाजिब अधिकार देने के लिए इसमें संशोधन करें। उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट भी तीसरे लिंग यानी ट्रांसजेंडरों को मान्यता दे चुका है। इसे देखते हुए संविधान में संशोधन जरूरी हो गया है। उन्होंने कहा कि हमारा संविधान किसी भी आधार पर भेदभाव की अनुमति नहीं देता है तो ऐसे में ट्रांसजेंडरों के साथ भेदभाव क्यों रहने दिया जाए।

सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्री थावरचंद गहलोत ने चर्चा में हस्तक्षेप करते हुए कहा कि सदस्यों को अपनी बात रखते हुए ट्रांसजेंडर संबंधी सुप्रीम कोर्ट के आदेश के आलोक में सुझाव देने चाहिए। उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने व्यवस्था दी है कि ट्रांसजेंडर खुद को पुरुष या महिला की श्रेणी में रख सकते हैं। शीर्ष अदालत ने उन्हें ओबीसी का दर्जा देने का भी उल्लेख किया है। मंत्री ने कहा, ‘ऐसे में हमें देखना होगा कि अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति में पैदा होने वाले ट्रांसजेंडरों को ओबीसी का दर्जा किस तरह दिया जा सकता है या इसके विकल्प क्या होंगे।’ उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के खिलाफ पुनरीक्षण याचिका लगी है। सरकार सभी बिंदुओं पर विचार कर वहां अपनी बात रखेगी। थरूर का पिछले 18 दिसंबर को लोकसभा में ऐसा ही निजी विधेयक पेश करने का प्रस्ताव भी मतदान से अस्वीकृत कर दिया गया था। तब थरूर ने कहा था कि वे विधेयक पेश करने का फिर से प्रयास करेंगे।

सुप्रीम कोर्ट ने दिसंबर 2013 में दिल्ली हाई कोर्ट के उस आदेश को दरकिनार कर दिया था। अदालत ने भारतीय दंड संहिता की धारा 377 को रद्द कर सरकार से समलैंगिकता को अपराध की श्रेणी से बाहर करने के विषय पर विचार करने के लिए कहा था। दिल्ली हाई कोर्ट ने 2009 में व्यवस्था दी थी कि धारा 377 असंवैधानिक है। चर्चा में भाग लेते हुए भाजपा के प्रहलाद पटेल ने समलैंगिकता को ट्रांसजेंडर समुदाय से नहीं जोड़ने की वकालत की। उन्होंने कहा कि समलैंगिकता एक विकृति है। इसे जन्म से जोड़कर नहीं देखा जा सकता।