बंबई हाई कोर्ट की ओर से महाराष्ट्र में पूजा स्थलों में महिलाओं के प्रवेश को मौलिक अधिकार बताए जाने के बाद शिवसेना ने सोमवार (4 अप्रैल) को कहा कि शनि शिंगणापुर मंदिर से जुड़े विवाद को संबद्ध पक्षों को आपसी सहमति से सुलझाना चाहिए था। ऐसे मामलों को अदालत में नहीं ले जाया जाना चाहिए। शिवसेना ने जानना चाहा है कि क्या मुसलिम महिलाओं के धार्मिक अधिकारों के लिए भी इसी तरह का फैसला दिया जाएगा?

पार्टी ने अपने मुखपत्र सामना के संपादकीय में लिखा है कि अदालत के आदेश के बाद कानून व्यवस्था की जो स्थिति बनी है, वह काफी चिंताजनक है। पार्टी ने पूछा है कि मंदिर में महिलाओं को प्रवेश मिलना ही चाहिए, ऐसा न्यायालय ने निर्देश दिया है। लेकिन क्या यह फैसला मुसलिम महिलाओं पर भी लागू होगा? क्या महिलाएं दरगाहों और मस्जिदों में भी जा सकेंगी? शिवसेना ने कहा कि हाजी अली दरगाह ट्रस्ट ने शरीयत कानून का हवाला देते हुए दरगाह में महिलाओं को प्रवेश की अनुमति देने से इनकार कर दिया था। सदियों पुरानी धार्मिक परंपरा के कारण आज भी महिलाएं वहां अंदर नहीं जा सकती हैं। सत्तारूढ़ गठबंधन में शामिल दल ने जानना चाहा कि क्या अदालत यह कहेगी कि मुसलिम महिलाओं को अपनी पुरानी धार्मिक परंपराओं को छोड़ना चाहिए और समान अधिकार हासिल करना चाहिए?

संपादकीय में कहा गया है- इस पर चर्चा जरूरी है कि महिलाओं का प्रवेश केवल अंध श्रद्धा के कारण वर्जित है या इसके पीछे वैज्ञानिक कारण भी हैं। इसमें यह भी कहा गया है कि संबद्ध पक्षों को आपसी सहमति से मुद्दे को सुलझाना चाहिए था। उन्हें अदालत में नहीं जाना चाहिए। आस्था के मामलों में अदालत की कोई भूमिका नहीं है। शिवसेना ने कहा है कि महिलाओं को पुरुषों के समान अवसर देने में महाराष्ट्र अग्रणी रहा है। इसके लिए महात्मा फुले व महर्षि कर्वे तक ने कष्ट उठाया। विदर्भ में किसानों की खुदकुशी और मराठवाड़ा में सूखे जैसे मुद्दों के बजाय मंदिरों में महिलाओं के प्रवेश से जुड़े विवाद पर ध्यान केंद्रित करने को लेकर भी पार्टी ने हमला बोला है।