गरूर संसदीय उपचुनाव में नामांकन की तारीख निकल चुकी है। इसके बाद अब पंजाब में भीषण गर्मी के बीच कड़ा पंच कोणीय मुकाबला देखने को मिलने वाला है। इसकी वजह यह भी कि इस चुनावी दौड़ में शामिल राजनीतिक दलों ने अपनी उदार छवि से नाता तोड़ते हुए अब अन्य दलों के नेताओं में सेंध लगानी शुरू कर दी है और परंपरागत राजनीति का पैंतरा अपना लिया है।

दरअसल ऐसे चुनावी दंगल में जो 117 सदस्यीय पंजाब विधानसभा में 92 सीटें जीतकर जबर्दस्त बहुमत पाने वाली आम आदमी पार्टी- ‘आप’ के लिए महज तीन महीनों के अंतराल में ही एक और बड़ा इम्तिहान साबित होने वाला है, वहां पंजाब में सक्रिय अधिकांश राजनीतिक दल आखरी मौके पर चुनावी दौड़ में शामिल हो गए हैं। कम से कम कांग्रेस और शिअद के लिए तो यह चुनाव ऐसे नवविचार का द्योतक बन गया है जिसमें उम्मीदवार का चयन सर्वसम्मति से करने की नौबत आन पड़ी है।

कांग्रेस चाहती थी कि सिद्धू मूसेवाला के पिता संगरूर से निर्विरोध सांसद हो जाएं तो शिअद-अमृतसर सभी पंथक धड़ों की ओर से कमलदीप कौर राजोआणा को सर्वसम्मत उम्मीदवार बनाना चाहती थी लेकिन नामांकन दाखिल करने के आखिरी दिन सोमवार को कांग्रेस के दलवीर गोल्डी, शिअद की कमलदीप कौर राजोआणा और भाजपा की ओर से केवल सिंह ढिल्लो ने अपने नामांकन भर दिए। यहां तक कि ‘आप’ के गुरमेल सिंह ने तो शनिवार को ही अपना नामांकन दाखिल कर दिया था।

बीते कुछ दिनों तक तो ‘आप’ के सिद्धू मूसेवाला हत्याकांड पर बचाव की मुद्रा में आने से पहले तमाम विपक्षी दल सत्तारूढ़ दल को पछाड़ने की रणनीति बनाने में जुटे थे। मूसेवाला की हत्या के साथ, विशेषकर पंजाब सरकार द्वारा उनकी सुरक्षा घटाए जाने के बाद विपक्ष को आप के खिलाफ हमलावर होने का मौका मिल गया।

इधर, तीन दशकों से अपनी छवि एक उदार राजनीतिक दल बनाने में जुटा शिअद ने लगातार दूसरा विधानसभा चुनाव बेहद शर्मनाक ढंग से हारने के बाद अचानक कट्टरपंथी एजंडा अपना लिया। वर्ष 1996 तक यह पंथक धड़ा ही था जो केवल ‘पंजाब, पंजाबी और पंजाबियत’ की ही बात करता था लेकिन बाद में उसने भाजपा से गठजोड़ करके अपनी छवि उदार राजनीतिक दल की बना ली। इस बार संगरूर संसदीय उपचुनाव जेलों में कैद सिख बंदियों के नाम पर लड़ा जा रहा है और यही वजह है कि पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री बेअंत सिंह के हत्यारे बलवंत सिंह रजोआणा की बहन कमलदीप कौर रजोआणा को इस उपचुनाव में उम्मीदवार बनाया गया है।

दूसरी ओर, कांग्रेस ने अपना दांव दलवीर गोल्डी यानी धूरी से पूर्व विधायक पर लगाया है जिन्हें हालिया पंजाब विधानसभा चुनाव में मुख्यमंत्री भगवंत मान ने शिकस्त दी थी। उन्हें मुख्यमंत्री के ही गढ़ संगरूर से चुनाव मैदान में उतारा गया है। दरअसल, कांग्रेस इससे संदेश यह देना चाहती है कि गोल्डी ने धूरी में मान का मुकाबला किया और वे एक बार फिर आप को मुख्यमंत्री के ही घर में टक्कर देने के मूड में है।

उधर, भाजपा ने अभी दो दिन पहले ही कांग्रेस के पूर्व मंत्रियों में सेंध लगाई है, जिनमें से छह ने तो केंद्रीय गृृह मंत्री अमित शाह की उपस्थिति में ही भाजपा का दामन थामा और केवल सिंह ढिल्लो एक हैं जिन्हें भाजपा ने अब संगरूर उपसंसदीय चुनाव का टिकट थमा दिया, जबकि इससे पहले कांग्रेस ने संगरूर से ही उन्हें गत विधानसभा चुनाव में टिकट से इनकार कर दिया था। इससे पहले भाजपा संगरूर विस हलके से चुनाव हारने वाले अरविंद खन्ना को टिकट देना चाहती थी लेकिन आखिरी मौके पर उसने ढिल्लों को टिकट थमा दिया।