संजीव

जाब में ढाई दशक तक अकाली दल के सहारे सत्ता का सुख भोगने वाली भारतीय जनता पार्टी इस समय हाशिए पर है। भाजपा को पंजाब में उपस्थिति दर्ज करवाने के लिए न केवल संजीवनी की जरूरत है। ज्यादातर नेता मानते हैं कि भाजपा की इस हालत के लिए कहीं न कहीं कृषि कानून जिम्मेदार हैं।
अकाली दल ने कभी भी भाजपा को 24 से अधिक सीटें नहीं दी हैं। भाजपा की जीत का आंकड़ा कभी दो अंकों में नहीं आया है। गठबंधन ने वर्ष 2017 में विधानसभा चुनाव इकट्ठे लड़ा था। तब भाजपा ने 23 सीटों पर उम्मीदवार उतारे और तीन सीटों पर जीत पाई। वर्ष 2019 में हुए लोकसभा चुनाव के दौरान भाजपा ने सोम प्रकाश को बतौर प्रत्याशी होशियारपुर से चुनाव मैदान में उतारा। वे चुनाव जीते और उपचुनाव में भाजपा हार गई।

केंद्र द्वारा लागू किए गए कृषि कानूनों का सबसे ज्यादा असर पंजाब पर हुआ है। शिरोमणि अकाली दल कृषि कानूनों के मुद्दे पर भाजपा के साथ गठबंधन तोड़ चुका है। राज्य में अगले साल फरवरी माह में विधानसभा चुनाव होने हैं। ऐसे में भाजपा के सामने ढेरों चुनौतियां हैं।हाल ही में भाजपा के अबोहर से विधायक अरुण नारंग जब एक कार्यक्रम में गए तो किसानों न उनके कपड़े फाड़ दिए और दौड़ा-दौड़ा कर पीटा। किसान कई बार भाजपा अध्यक्ष अश्वनी शर्मा का विरोध कर चुके हैं। भाजपा को विपक्ष के साथ-साथ पिछले साल तक अपने सहयोगी रहे अकाली दल को भी टक्कर देनी है। भाजपा के पास पंजाब में ऐसा कोई चेहरा नहीं है जिसके बल पर पूरे प्रदेश में विधानसभा चुनाव लड़ा जा सके। शहरी पार्टी होने के बावजूद भाजपा की निगाह दलित वोट बैंक पर है।

अकाली दल ने बसपा के साथ गठबंधन से पहले जहां दलित उपमुख्यमंत्री देने का ऐलान किया वहीं भाजपा नेता विजय सांपला ने राज्य में दलित मुख्यमंत्री देने का एलान कर दिया। दलित मतदाताओं को रिझाने के लिए अकाली दल बसपा के साथ गठबंधन कर चुका है। उधर, भाजपा के पास केवल दो ही दलित नेता है। जिनमें सोम प्रकाश केंद्र में राज्य मंत्री हैं और विजय सांपला अनुसूचित जाति आयोग के अध्यक्ष हैं। कांग्रेस, अकाली दल, आम आदमी पार्टी तो मैदान में उतर चुके हैं लेकिन किसान आंदोलन और नेतृत्व के अभाव के कारण भाजपा के नेता अभी भी आम जनता से दूर हैं।

पंजाब भाजपा में भी कृषि कानूनों के मुद्दे पर बगावत शुरू हो गई है। भाजपा नेता अनिल जोशी ने पार्टी आलाकमान को अपनी स्थिति स्पष्ट करने कहा है। पंजाब भाजपा के दिग्गज नेता मास्टर मोहन लाल ने भी कहा कि अगर जल्द इस मुद्दे का हल नहीं किया गया तो चुनाव में कोई भी नेता बाहर नहीं निकल पाएगा। न केवल जनता के विरोध का सामना करना पड़ेगा बल्कि पार्टी जनसमर्थन भी खो सकती है।

उन्होंने कहा कि भाजपा पंजाब को एक मंच पर इकट्ठा होकर केंद्र में बैठे आलाकमान के पास यह मुद्दा लेकर जाना चाहिए और उन्हें इसका हल करवाना चाहिए। उन्होंने पार्टी नेताओं को कहा कि अभी भी इस मुद्दे पर बात कर लेनी चाहिए। पंजाब के राजनैतिक विश्लेषक केवल सिंह राणा मानते हैं कि वर्तमान हालात में पंजाब में भाजपा राजनीतिक रूप से निचले पायदान पर है। भाजपा आलाकमान ने इस मुद्दे को गंभीरता से नहीं लिया है। कृषि कानूनों का सबसे अधिक असर पंजाब में देखने को मिला है। इसके बावजूद केंद्र सरकार ने आजतक पंजाब भाजपा के सभी नेताओं के साथ मिलकर कोई बैठक नहीं की है। केंद्र के इस फैसले का खामियाजा पंजाब के नेताओं को भुगतना पड़ेगा।