संजीव

एक नवंबर 1966 को अस्तित्व में आया हरियाणा आज भी अपने अधिकारों की लड़ाई लड़ रहा है। विकास के मामले में हरियाणा भले ही पंजाब से काफी आगे निकल चुका हो, लेकिन अधिकारों के मामले में वह आज भी अपने ‘बड़े भाई’ की तरफ मुंह बाए खड़ा है। एक सप्ताह से हरियाणा व पंजाब के बीच राजधानी चंडीगढ़ को लेकर विवाद छिड़ा हुआ है।

दोनों राज्यों के बंटवारे के समय यह तय किया गया था कि चंडीगढ़ में 40 फीसद कर्मचारी हरियाणा काडर तथा 60 फीसद कर्मचारी पंजाब काडर के तैनात किए जाएंगे। गृहमंत्री अमित शाह ने 27 मार्च को चंडीगढ़ दौरे के दौरान यहां केंद्रीय सेवा नियम (सेंटर सर्विस रूल) लागू करने का ऐलान किया था। चंडीगढ़ में अभी तक पंजाब के सेवा नियम लागू होते थे। एक अप्रैल को केंद्र सरकार ने चंडीगढ़ में अपने सेवा नियम लागू किए और पंजाब ने इसका विरोध करते हुए राजधानी चंडीगढ़ पूरी तरह से पंजाब को सौंपने की मांग करते हुए आम आदमी पार्टी सरकार ने विधानसभा में प्रस्ताव पारित कर दिया।

पंजाब के इस फैसले के विरोध में हरियाणा की राजनीति गरमाई हुई है। हरियाणा की सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी तथा जननायक जनता पार्टी के अलावा विपक्षी दल कांग्रेस भी पंजाब में आम आदमी पार्टी की सरकार के विरोध में उतर आए हैं। हरियाणा में अपने पांव जमाने का प्रयास कर रही आम आदमी पार्टी को हरियाणा में इसी मुद्दे पर घेरा जा रहा है।

राजधानी चंडीगढ़ के अलावा हरियाणा के पंजाब के साथ कई मुद्दे पर विवाद 50 वर्षों से चले आ रहे हैं। सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बावजूद हरियाणा को आजतक एसवाइएल का पानी नहीं मिला है। इस बीच कई मौके ऐसे भी आए जब केंद्र व राज्यों में एक ही पार्टी की सरकार भी बनी लेकिन सुप्रीम कोर्ट में ठोस पैरवी के बाद मुख्यमंत्री मनोहर लाल के नेतृत्व वाली भारतीय जनता पार्टी की सरकार के पहले कार्यकाल के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने हरियाणा के हक में फैसला सुनाया।

पंजाब ने इस फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट के अपर बेंच पर समीक्षा याचिका दायर कर दी। जिस पर आज भी सुनवाई जारी है। हरियाणा को चंडीगढ़ में स्थित विधानसभा में भी अपनी पूरी हिस्सेदारी आजतक नहीं मिल सकी है। 1966 में बंटवारे के समय 60:40 का अनुपात तय किया गया था लेकिन आजतक हरियाणा को इस भवन में 40 फीसद हिस्सेदारी नहीं मिल सकी है। विधान भवन में शुरू में हरियाणा को 37 फीसद स्थान आबंटित हुआ। जब कब्जा देने की बारी आई तो पंजाब के तत्कालीन अधिकारियों ने 27 फीसद क्षेत्र ही हरियाणा को दिया। अपने हिस्से का 10 फीसद क्षेत्र लेने के लिए हरियाणा आज भी जद्दोजहद कर रहा है।

हरियाणा विधानसभा के स्पीकर ज्ञान चंद गुप्ता इस हिस्से को हासिल करने के लिए न केवल पंजाब बल्कि गृह मंत्रालय के साथ लगातार बातचीत कर रहे हैं। कई वर्षों के पत्राचार के बावजूद पंजाब ने जब कोई समाधान नहीं किया तो हरियाणा ने नया विधान भवन बनाने की प्रक्रिया शुरू कर दी।
हरियाणा का पंजाब के साथ अलग हाईकोर्ट को लेकर भी विवाद चल रहा है। । पंजाब के साथ दोबारा शुरू हुए विवाद को लेकर हरियाणा के विपक्षी दल कांग्रेस ने नेता प्रतिपक्ष भूपेंद्र सिंह हुड्डा की अगुआई में सोमवार को एक बैठक करके यह मांग उठाई कि हरियाणा सरकार विधानसभा में प्रस्ताव पारित करते हुए केंद्र पर दबाव बनाए कि राजधानी चंडीगढ़ से पहले हरियाणा को पंजाब से एसवाइएल का पानी दिलवाया जाए, और राजधानी चंडीगढ़ के मुद्दे पर प्रस्ताव पारित किया जाए।

मनोहर लाल की दलील

हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल ने साफ किया है कि पंजाब, हरियाणा का बड़ा भाई है। बड़े भाई का सम्मान तभी तक होता है जब वह छोटे भाई के हितों की रक्षा करे। मुख्यमंत्री मनोहर लाल के अनुसार जिस एक विषय को लेकर दो राज्यों में विवाद हो तो उसे लेकर एकतरफा प्रस्ताव पारित करने का कोई औचित्य नहीं है। मनोहर लाल ने साफ किया पंजाब में आम आदमी पार्टी की सरकार हरियाणा का पानी रोक रही है और दिल्ली में यही सरकार हरियाणा से अपने हिस्से का पानी मांग रही है। हमारा पानी रोकेंगे तो हम दिल्ली को पानी कैसे दे सकते हैं।

मुख्यमंत्री मनोहर लाल ने कहा कि चंडीगढ़ से पहले उन हिंदी भाषी गांवों को हरियाणा के अधीन किया जाए, जिनका बंटवारे के समझौते में जिक्र किया गया था। मनोहर लाल ने साफ कर दिया है कि हरियाणा सरकार प्रदेश वासियों के हितों की लड़ाई पूरी मजबूती के साथ लड़ेगी। महज एक माह के कार्यकाल में तथ्यों को जाने बगैर प्रस्ताव पारित करने वाली पंजाब की आम आदमी पार्टी सरकार के फैसले को हरियाणा सिरे से खारिज करता है। राजधानी चंडीगढ़ को लेकर छिड़े विवाद पर हरियाणा सरकार ने भी मंगलवार को विधानसभा का एक दिवसीय विशेष सत्र बुला लिया है।