निर्माण नहीं होंगे तो विकास नहीं होगा, लेकिन विकास का यह मतलब नहीं है कि पर्यावरण के साथ समझौता किया जाए। प्रदूषण एनसीआर में बड़ी समस्या है। इस मामले में सभी प्रभावित और जिम्मेदार संस्थाएं पहले ही काम कर रही हैं। हम सभी को मिलकर बिगड़ती आबो हवा का समाधान निकालना होगा। यह कहना है कि पंजाब-हरियाणा हाई कोर्ट के जज सूर्यकांत बाली का। शनिवार को फरीदाबाद अदालत परिसर में आयोजित तीसरी राष्ट्रीय लोक अदालत का निरीक्षण करने के बाद उन्होंने यह बात कही।

न्यायाधीश बाली के साथ जिला सत्र न्यायधीश इंद्रजीत मेहता भी थे। उन्होंने कहा कि विकास और पर्यावरण में संतुलन बनाए रखना जरूरी है। विकास का यह मतलब कतई नहीं है कि इससे पर्यावरण प्रभावित और खराब हो। पर्यावरण के बिगड़ते हालात से प्रभावित लोग और संस्थाएं पहले ही हालात सुधारने में लगे हुई हैं। सुप्रीम कोर्ट ने पर्यावरण की बेहतरी के लिए पहले ही कई फैसलों में दिशा-निर्देश दिए हुए हैं। ताकि इन फैसलों का पालन करते हुए पर्यावरण को बचाया जा सके और विकास भी होता रहे। देश का कानून और बहुत सारी संस्थाएं भी पर्यावरण को संरक्षण देने के लिए अपना काम कर रही हैं। उन्होंने कहा कि विकास के लिए निर्माण भी जरूरी है। लेकिन इसके लिए पर्यावरण और विकास में संतुलन बनाए रखना अनिवार्य है। विकास और पर्यावरण में संतुलन के चलते ही बेहतर वातावरण बनेगा।

उन्होंने बताया कि लोक अदालतें लगाने का मकसद आम आदमी को सुविधएं देना है। इन अदालतों के जरिए लोग छुट्टी वाले दिन भी अपने छोटे-मोटे मामलों का निपटारा लोकअदालत के माध्यम से करवा सकते हैं। इसके अलावा जमीन जायदाद के आपसी लेनदेन के किराएदार मालिक के और पति पत्नी के आपसी विवादों का निपटारा लोक अदालतों के जरिए सुगमता से हो जाता है।

इन अदालतों का मकसद आम आदमी को सहज-सुलभ और सस्ता न्याय उपलब्ध करवाना है। एक सवाल के जवाब में न्यायाधीश ने कहा कि अदालत में आने से हम किसी को रोक नहीं सकते। अलबता याची के मुकदमे के आधार पर ही हम इसे स्वीकार करते हैं। उन्होंने कहा कि बढ़ते मुकदमों के बोझ में लोक अदालतों का महत्व ओर बढ़ गया है। लोगों को वाहन, बिजली, भूमि संबंधी चालान का निपटारा लोकअदालत में सुगमता से किया जाता है।