History of Akbar Fort: संगम नगरी प्रयागराज, जहां यमुना और गंगा का मिलन होता है, वहां स्थित अकबर का किला भारतीय इतिहास, संस्कृति और वास्तुकला का अद्वितीय प्रतीक है। यह किला न सिर्फ अपनी भव्यता और शानदार निर्माण शैली के लिए प्रसिद्ध है, बल्कि यहां छिपी ऐतिहासिक कहानियां, धार्मिक महत्व और सम्राट अकबर के साम्राज्य के गौरवपूर्ण दिनों को दर्शाता है। 1575 ईस्वी में मुगल सम्राट अकबर द्वारा इस किले का निर्माण कार्य आरंभ किया गया था, और इसे शाही संरचना और ताकत के प्रतीक के रूप में डिजाइन किया गया था। यह किला न केवल प्रयागराज के ऐतिहासिक परिदृश्य का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है, बल्कि यह सम्राट अकबर के विजयी अभियान और उनके साम्राज्य के स्थापत्य के दृष्टिकोण को भी प्रकट करता है। आज भी यह किला अपनी भव्यता, स्थापत्य और ऐतिहासिक महत्ता के कारण पर्यटकों और इतिहास प्रेमियों के बीच आकर्षण का केंद्र बना हुआ है।

किले की नींव और निर्माण की पृष्ठभूमि

अकबर ने प्रयागराज के इस किले का निर्माण अपनी सैन्य ताकत को मजबूत करने और सामरिक दृष्टि से महत्वपूर्ण स्थान को सुरक्षित करने के लिए किया। संगम का क्षेत्र धार्मिक और सामरिक दोनों दृष्टियों से बेहद अहम था। किले के निर्माण में 20,000 मजदूरों ने लगभग 45 वर्षों तक काम किया, और इस पर 6 करोड़, 17 लाख, 20 हजार 214 रुपए की लागत आई। आज के मूल्य के हिसाब से यह 20,000 अरब रुपये होंगे। निर्माण की देखरेख अकबर के वरिष्ठ अधिकारी, राजा टोडरमल, सईद खान और मुखलिस खान ने की थी। अकबर ने अपने शासनकाल में पूर्वी भारत में अफगान विद्रोह को नियंत्रित करने के लिए इस किले का निर्माण कराया था। संगम के पास स्थित इस स्थान को रणनीतिक दृष्टि से महत्वपूर्ण मानते हुए अकबर ने एक नए शहर की नींव भी रखी, जिसे ‘इलाहाबाद’ कहा गया।

किला 983 बीघा (26.541 लाख वर्ग फुट) भूमि पर फैला है। इसकी दीवारें नक्काशीदार पत्थरों से बनाई गई हैं और इसमें 15 मीटर ऊंचे पॉलिश किए गए पत्थरों का उपयोग हुआ है। किले के भीतर 23 महल, 12 आनंद वाटिकाएं, 77 तहखाने, 116 कोठरियां और कई अन्य भव्य संरचनाएं हैं।

किले की अद्भुत वास्तुकला

अकबर का किला उस समय की उत्कृष्ट निर्माण कला और तकनीकी कौशल को दर्शाता है। इसका नक्शा नदी की कटान को ध्यान में रखते हुए अनियमित रूप से तैयार किया गया था। इसकी ऊंची मीनारें और मजबूत दीवारें इसे अभेद्य किले के रूप में प्रस्तुत करती हैं। किले में स्थित जनानी महल, जिसे जहांगीर महल कहा जाता है, अकबर की पत्नी जोधाबाई के लिए विशेष रूप से बनाया गया था।

धार्मिक महत्व: अक्षय वट और पातालपुरी मंदिर

किले के भीतर स्थित अक्षय वट और पातालपुरी मंदिर धार्मिक आस्था का केंद्र हैं। अक्षय वट, जिसे अमर बरगद का पेड़ कहा जाता है, हिंदू धर्म में मोक्ष का प्रतीक माना जाता है। पातालपुरी मंदिर, जिसमें 44 देवी-देवताओं की मूर्तियां हैं, श्रद्धालुओं के लिए पूजनीय स्थल है।

अशोक स्तंभ और मुगल योगदान

किले में मौर्यकालीन अशोक स्तंभ भी स्थित है, जो 273 ईसा पूर्व का है। इस स्तंभ पर समुद्रगुप्त और जहांगीर की प्रशस्तियां अंकित हैं। जहांगीर ने इसे पुनः स्थापित कराया और अपनी वंशावली भी खुदवाई। 1600-1603 तक जहांगीर ने इस किले में रहकर प्रशासन का संचालन किया।

मुगलों से अंग्रेजों तक: किले का इतिहास

अकबर के बाद यह किला मुगलों और अंग्रेजों के बीच सत्ता संघर्ष का केंद्र बना। 1773 में अंग्रेजों ने इसे अपने कब्जे में लिया और 1775 में बंगाल के नवाब शुजाउद्दौला को 50 लाख रुपये में बेच दिया। बाद में यह पुनः अंग्रेजों के अधिकार में आ गया। स्वतंत्रता के बाद यह किला भारतीय सेना के अधीन हो गया और आज भी इसका अधिकांश हिस्सा सेना के उपयोग में है।

वर्तमान स्थिति और किले की देखरेख

किले का केवल एक छोटा हिस्सा ही पर्यटकों के लिए खुला है। अशोक स्तंभ, अक्षय वट, पातालपुरी मंदिर और जहांगीर महल जैसे स्थल ही आम जनता देख सकती है। बाकी किला सेना के नियंत्रण में है। समय के साथ किले की दीवारों और संरचनाओं की स्थिति जर्जर हो चुकी है, लेकिन पुरातत्व विभाग सेना की अनुमति के बिना मरम्मत नहीं कर सकता।

किले की अनूठी विशेषताएं

  1. भव्य निर्माण: 23 महल, 12 वाटिकाएं, 77 तहखाने, और 116 कोठरियां इसकी भव्यता को दर्शाती हैं।
  2. सामरिक महत्व: संगम के निकट होने के कारण यह स्थान रणनीतिक दृष्टि से अहम था।
  3. वास्तुकला: पॉलिश किए पत्थरों और नक्काशीदार दीवारों का उपयोग किले को विशिष्ट बनाता है।
  4. धार्मिक स्थल: अक्षय वट और पातालपुरी मंदिर किले के अंदर स्थित हैं।
  5. इतिहास: अशोक स्तंभ पर मौर्य, गुप्त और मुगलकाल की प्रशस्तियां अंकित हैं।
  6. सुरंग और टकसाल: किले में इलाहाबाद से दिल्ली तक जाने वाली एक सुरंग और एक टकसाल भी थी।
  7. कब्जा: किले को अंग्रेजों के जाने के बाद भारतीय सेना ने अपने नियंत्रण में ले लिया था।

किले का सांस्कृतिक और ऐतिहासिक महत्व

अकबर का यह किला केवल वास्तुकला का नमूना नहीं है, बल्कि यह भारतीय इतिहास की महत्वपूर्ण घटनाओं का साक्षी रहा है। संगम तट पर स्थित होने के कारण यह किला धार्मिक आयोजनों का भी केंद्र बना रहता है।

प्रयागराज का अकबर का किला भारतीय इतिहास की समृद्ध धरोहरों में से एक है। इसकी वास्तुकला, धार्मिक महत्व और ऐतिहासिक घटनाएं इसे अद्वितीय बनाती हैं। यह किला अपने गौरवशाली इतिहास को संजोए हुए है। पर्यटकों के लिए यह किला आज भी आकर्षण का केंद्र है और भारतीय संस्कृति का प्रतीक है।