यूपी और एमपी की सीमा पर बसा बुंदेलखंड देश का वह हिस्सा है, जो अधिकतर पहाड़ी है और वर्षों तक सूखाग्रस्त रहा है। पानी की काफी कमी होने से यह क्षेत्र खेती-किसानी के लिहाज से भी बहुत उपजाऊ नहीं रहा। पिछड़ापन, बेरोजगारी, गरीबी और अपराध यहां की पहचान बन गए थे। रानी लक्ष्मी बाई, आल्हा ऊदल का क्षेत्र बुंदेलखंड में हालत यह थी कि दिल्ली से मालगाड़ियों में पानी भरकर यहां लाया जाता था। बुंदेलखंड का बांदा क्षेत्र में मालगाड़ी से आए पानी को टैंकर के जरिए चित्रकूट, मानिकपुर, पाठा भेजा जाता था। यह व्यवस्था बहुत कारगर नहीं थी। यह खर्चीला और परेशानी वाला था।

पुरखों की विधि से जल बचाने की जिद ने बदली बुंदेलखंड की तकदीर

आज यह स्थिति बदली हुई है। जिस क्षेत्र में एक बिस्वा धान या गेहूं की पैदावार नहीं होती थी, आज उस क्षेत्र के सात जिलों में बासमती चावल और गेहूं न केवल पैदा हो रहे हैं, बल्कि ये बाहर भी भेजे जा रहे हैं। सरकारी खरीद केंद्र में हजारों टन गेहूं, चावल बिक्री हो रही है। बांदा के कुछ जलयोद्धाओं ने पुरखों की खेती और जल बचाने की जिद से न केवल बुंदेलखंड की तकदीर बदली, बल्कि गांव-गांव घर-घर पानी पहुंचाने की व्यवस्था कर सूखाग्रस्त और अनउपजाऊ क्षेत्र होने के अपमान से भी खुद को मुक्त किया। खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने मन की बात में इस बात का जिक्र किया।

यूपी में गेहूं की सरकारी खरीद में पहले स्थान पर रहा चित्रकूट मंडल

पिछले साल उत्तर प्रदेश में न्यूनतम समर्थन मूल्य में कुल 2,04,000 मीट्रिक टन गेहूं खरीद हुई, जिसमें 75,270 मीट्रिक टन गेहूं केवल बुंदेलखंड के सात जिलों के किसानों से सरकार ने खरीदा। चित्रकूट मंडल के किसानों ने 41,076 मीट्रिक टन उत्तर प्रदेश सरकार को बेचा। चित्रकूट मंडल उत्तर प्रदेश में प्रथम स्थान पर रहा, दूसरे नंबर पर बुंदेलखंड मंडल का ही झांसी रहा, जहां से 34,194 मीट्रिक टन गेहूं सरकार ने खरीदा।

यूपी सरकार ने पिछले वर्षों में 182 करोड़ का धान किसानों से खरीदा

उत्तर प्रदेश का एक तिहाई गेहूं बुंदेलखंड के किसानों ने सरकार को बेचा। चित्रकूट मंडल प्रदेश में प्रथम, झांसी मंडल दूसरे स्थान पर रहा। सूखा, प्यासा पलायन बेरोजगारी जैसे नामों से विख्यात बुंदेलखंड के 7 जिलों के किसानों ने उत्तर प्रदेश में पिछली वर्ष हुई कुल सरकारी खरीद 2,04,000 मीट्रिक टन में से 75,270 मीट्रिक टन गेहूं बेचा। जल विहीन कहे जाने वाले बांदा मंडल में चित्रकूट प्रथम स्थान पर रहा। चित्रकूट 30 लाख कुंतल से अधिक बासमती 1121 तथा 17-18 का उत्पादन कर रहा है। उत्तर प्रदेश सरकार ने पिछले वर्षों में 182 करोड़ का धान किसानों से खरीदा था। यह सामान्य बात नहीं है। ऐसा करिश्मा ‘खेत में मेड़, मेड़ में पेड़’ तकनीकी के जरिए जल बचाकर संभव हो सका है। मेड़बंदी की इस तकनीकी को अपनाकर जिस तरीके से वर्षा की बूंदों को रोका गया, उसके नतीजे सामने हैं। इस तकनीकी के चलते सात जिलों के किसानों ने 67 जिलों के किसानों को मात दी।

बुंदेलखंड के किसानों ने मेहनत से राष्ट्र और समाज को मजबूत किया है

बांदा के किसान पिछले 10 वर्षों से अपने खेतों में पानी रोक रहे हैं, खेत पर मेड़, मेड़ पर पेड़ जैसे परंपरागत तरीकों को अपनाकर खेत और गांव को पानीदार बना रहे हैं। बुंदेलखंड के किसानों ने राष्ट्र और समाज को मजबूत किया है। पिछले दिनों जिला प्रशासन बांदा की ओर से 10,000 से अधिक किसानों के खेत पर मेड़बंदी की गई। 25,000 से अधिक किसानों ने खुद अपने हाथों मेड़बंदी की और बारिश की बूंदों को रोका। प्रतिवर्ष 25,000 किसान बुंदेलखंड के अपने खेतों में मेड़बंदी करते हैं। इसका नतीजा यह है कि जहां गेहू-धान की कोई पैदावार नहीं थी, वहां चौतरफा उत्पादन शुरू हो गया है। सरकारी रिकॉर्ड इसका गवाह है। न्यूनतम समर्थन मूल्य में पिछले 10 वर्ष में उत्तर प्रदेश सरकार ने कितना धान गेहूं खरीद जलस्तर कितना ऊपर आया कितना पलायन रुका पशुपालन दुग्ध उत्पादन सब्जियों की पैदावार रिद्धी, सिद्धी और समृद्धि आई। जहां पानी के लिए हाहाकार की जनप्रतिनिधि, मीडिया स्वैच्छिक संस्थाएं, सरकार और समाज चर्चा करती थी, उस बुंदेलखंड ने इतिहास रचा।

सबसे बड़ा सवाल यह कैसे हुआ?

यह कैसे हुआ? बांदा का एक व्यक्ति गांव, मजरे, खेत-खेत पैदल साइकिल से निकला। कुछ लोगों ने उन्हें पागल, सनकी, झक्की कहकर आलोचना की। दिव्यंका के ताने देते थे। सूखा कभी दूर नहीं होगी, ऐसे शब्दों से उनका उत्साह गिराते थे। लेकिन पानी बचाने की जिद पालकर उस जलयोद्धा ने पुरखों के जल जोड़ने के बेजोड़ मंत्र को लेकर एक आह्वान किया। पूरे देश के किसानों से अपील की कि अपने खेत पर मेड़, मेड़ पर पेड़ लगाकर बारिश की बूंदें जहां गिरें, वही रोकें।

मोदी सरकार ने भी पहचाना, दिया पद्मश्री सम्मान

इस प्राचीन जल संरक्षण विधि को मोदी सरकार ने पहचाना। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने न केवल उनके कार्यों को पहचाना, बल्कि देश का चौथा सबसे बड़ा सम्मान पद्मश्री से सम्मानित किया। जल शक्ति मंत्रालय भारत सरकार ने राष्ट्रीय जल योद्धा सम्मान दिया। देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने मन की बात में पुरखों की जल संरक्षण विधि की चर्चा की। इस विधि को बल मिला पूरे देश के प्रधानों को पत्र लिखा। पत्र ने समुदाय को जगा दिया।

बिना सुविधा के अनजान नायक ने कर दिया करिश्मा

इस अनजान नायक के पास आज भी अपने घर में न बिजली है, न पंखा है, न ही कोई अन्य आधुनिक भौतिक सुविधाएं ही हैं। दिव्यांग होते हुए भी कभी दिव्यंका का सहारा नहीं लिया। एक कमरे के मकान में पेड़ के नीचे चबूतरे से जल जोड़ने का मंत्र पूरे देश को दिया। बिना किसी प्रचार-प्रसार के मेड़बंदी यज्ञ की शुरुआत की। यह अभियान समुदाय के आधार पर पूरे देश में चलाया गया। बुंदेलखंड के सूखे को खत्म करने की जिद ठानने वाले और सामुदायिक आधार पर बिना सरकारी सहायता के जल संरक्षण विधि देने वाले उमाशंकर पांडेय के पास ना कोई एनजीओ है, ना ही संस्था है। न कोई कार्यालय है, न ही दो पहिया या चार पहिया वाहन ही है।

पिछले 25 वर्षों से एक ही नारा है पेड़ लगाओ पानी बचाओ। इसका नतीजा यह है कि प्रयागराज रोड पर चित्रकूट के अंतिम गांव के खेत में भी बासमती की फसल कोई भी आकर आज देख सकता है। सूखाग्रस्त हमीरपुर में धान खरीद केंद्र, बांदा में धान खरीद केंद्र और चित्रकूट में सरकारी धान खरीद केंद्र इस बात के सबूत हैं कि यदि समाज चाह ले तो हर गांव को पानीदार बनाया जा सकता है। इरादे हो निंदा आलोचना प्रशंसा मान अपमान से दूर रहकर उमाशंकर पांडे की भांति काम करना होगा। सरकार उन्हीं का साथ देती है, जिनकी साधना पक्की होती है। साधना पक्की है तो साधन आ ही जाएंगे।

पद्मश्री उमाशंकर पांडेय के जल संरक्षण मॉडल को सर्वप्रथम तत्कालीन जिलाधिकारी ने 470 ग्राम पंचायत में लागू किया। उत्तर प्रदेश सरकार ने संपूर्ण प्रदेश में नीति आयोग और जल शक्ति मंत्रालय ने संपूर्ण भारत के लिए उपयुक्त माना। अटल भूजल योजना सहित अनेक योजनाएं जल संरक्षण के इस मॉडल पर सरकार ने बनाई राज्य सरकार भारत सरकार समाज ने स्वीकार किया।

बुंदेलखंड में कभी 1 किलो बासमती चावल पैदा नहीं होता था। इसकी शुरुआत जखनी गांव से उमाशंकर पांडेय ने 2007 में की थी। उदाहरण सामने है। करोड़ों कुंतल धान गेहूं, दालें, तिलहन, सब्जियों की खेती को पानीदार बनाने वाला बगैर बिजली और पंखे के रहते हैं। ऐसे अनजान नायकों को पीएम नरेंद्र मोदी ने पद्मश्री पुरस्कार दिया है। यह वह जल संरक्षण की विधि है, जिसमें किसी औजार, प्रशिक्षण, नवीन तकनीक की आवश्यकता नहीं है। खेत पर मेड़ और मेड़ पर पेड़ कोई भी फावड़े से अपने खेत की मेड़बंदी कर सकता है। उसे पर सहजन, करौंदा, नींबू, अमरूद, अरहर जैसी फसलें, औषधि फसलें पैदा करके अतिरिक्त आमदनी ले सकता है। आज भी पुरखों के जल जोड़ने के बेजोड़ तरीके कामयाब हैं। उन्हें आत्मसात करने की जरूरत है।