पटना हाई कोर्ट ने बिहार हेल्थ सोसाइटी को कड़ी फटकार लगाते हुए पैथोलॉजी सेवाओं के लिए जारी नए वर्क ऑर्डर को तत्काल प्रभाव से रद्द कर दिया है। साथ ही, अदालत ने अंतिम निर्णय आने तक इस मामले में कोई नई पहल करने से भी रोक लगा दी है। बिहार स्टेट हेल्थ सोसाइटी ने 19 नवंबर 2024 को हिंदुस्तान वेलनेस और उसके पार्टनर खन्ना लैब के साथ पैथोलॉजी सेवाओं के लिए अनुबंध किया था।

अदालत ने एक सप्ताह के भीतर जवाब देने का दिया निर्देश

हाई कोर्ट ने पाया कि इस अनुबंध में आवश्यक नियमों की अनदेखी की गई और जल्दबाजी में बिना कंसोर्टियम के विधिवत अस्तित्व में आए ही हिंदुस्तान वेलनेस और खन्ना लैब को वर्क ऑर्डर जारी कर दिया गया। इस संबंध में कोर्ट ने बिहार स्टेट हेल्थ सोसाइटी को एक सप्ताह के भीतर जवाब देने का निर्देश दिया है। यह निर्णय 24 मार्च को हुई सुनवाई के बाद सुनाया गया। फिलहाल, मामले की सुनवाई जारी है।

गौरतलब है कि बिहार में सरकारी स्वास्थ्य केंद्रों पर पैथोलॉजी टेस्ट पब्लिक-प्राइवेट पार्टनरशिप (PPP) के तहत किए जा रहे हैं। अक्टूबर 2024 में बिहार स्वास्थ्य विभाग ने नई निविदा जारी की थी, जो शुरुआत से ही विवादों में रही। पहले साइंस हाउस नामक कंपनी को एल-1 घोषित किया गया, लेकिन बाद में पता चला कि इस कंपनी ने अपनी वित्तीय निविदा में दो अलग-अलग दरें भरी थीं। इसी आधार पर उसके दावे को रद्द कर दिया गया और दूसरे सबसे कम दर देने वाले कंसोर्टियम को विजेता घोषित कर दिया गया।

हालांकि, यह भी सामने आया कि हिंदुस्तान वेलनेस और उसकी पार्टनर कंपनी खन्ना लैब, टेंडर में निर्धारित तकनीकी शर्तों को पूरा नहीं करती थीं। साइंस हाउस की आपत्ति के बावजूद, बिहार स्टेट हेल्थ सोसाइटी ने 5 नवंबर 2024 को हिंदुस्तान वेलनेस और खन्ना लैब के पक्ष में लेटर ऑफ इंटेंट जारी कर दिया और 11 नवंबर को उनके साथ अनुबंध भी कर लिया। जबकि टेंडर की शर्तों के अनुसार, निविदा खुलने के 90 दिनों के भीतर कंसोर्टियम का गठन आवश्यक था, जिसकी समय-सीमा 19 मार्च को समाप्त हो चुकी थी।

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एग्रीमेंट के तुरंत बाद, हिंदुस्तान वेलनेस ने आनन-फानन में कई अस्पतालों में अपने लैब स्थापित कर दिए। इस बीच, साइंस हाउस ने पटना हाई कोर्ट में एक रिट याचिका दायर कर हिंदुस्तान वेलनेस को विजेता घोषित करने और उसके साथ किए गए अनुबंध को चुनौती दी। उसने इस फैसले पर रोक लगाने की मांग की। इसी तरह, पहले से काम कर रही कंपनी पीओसीटी ने भी टेंडर प्रक्रिया में गड़बड़ी का आरोप लगाते हुए अदालत से हस्तक्षेप की अपील की। फिलहाल, दोनों याचिकाएं पटना हाई कोर्ट में लंबित हैं।

24 जनवरी को इस मामले में सुनवाई के दौरान, पटना हाई कोर्ट की जस्टिस पी. बी. बजंतरी की बेंच ने बिहार स्टेट हेल्थ सोसाइटी को यह निर्देश दिया था कि किसी भी नई कंपनी को नई जिम्मेदारी न सौंपी जाए और यथास्थिति बनाए रखी जाए। बावजूद इसके, राज्य सरकार ने इस आदेश को गंभीरता से नहीं लिया और हिंदुस्तान वेलनेस पहले की तरह काम करती रही।

24 मार्च को हुई सुनवाई में, जस्टिस राजीव रंजन प्रसाद और जस्टिस सुरेंद्र पांडे की बेंच ने पाया कि बिना कंसोर्टियम के विधिवत गठन के ही बिहार स्टेट हेल्थ सोसाइटी ने हिंदुस्तान वेलनेस और खन्ना लैब को लेटर ऑफ इंटेंट जारी कर दिया था और बाद में उनके साथ अनुबंध भी कर लिया गया। सुनवाई के दौरान, सरकारी वकील और कथित कंसोर्टियम के दोनों पार्टनरों के वकीलों ने भी स्वीकार किया कि अभी तक कंसोर्टियम का गठन नहीं हुआ है। सिर्फ निविदा भरते समय दोनों कंपनियों ने एक एमओयू (मेमोरेंडम ऑफ अंडरस्टैंडिंग) साइन किया था।

पटना हाई कोर्ट ने अपने ऑब्जर्वेशन में स्पष्ट किया कि इस मामले में जल्दबाजी में निर्णय लिया गया है। हाई कोर्ट ने तत्काल प्रभाव से इस अनुबंध को रद्द करते हुए, सरकारी वकील को एक सप्ताह के भीतर जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया है। इस मामले की अगली सुनवाई अप्रैल के पहले सप्ताह में होने की संभावना है।