जीएसटी संशोधन होने के बाद बाजारों में थोक व खुदरा वस्तुओं के दामों में काफी उठा-पटक देखने को मिल रही है। जहां दस दिनों के भीतर ही चीनी के दामों में उछाल आया है।

वहीं थोक में चावल व आटा तो सस्ता हुआ, लेकिन उसका लाभ उपभोक्ताओं को नहीं मिल रहा है। क्योंकि 25 किलो तक की पैकेट पर उपभोक्ताओं को अभी भी पांच फीसद जीएसटी देनी पड़ रही है जबकि उससे अधिक के पैकेटों को जीएसटी मुक्त रखा गया है। बात अगर खाद्य तेलों की करें तो उनके दाम स्थिर हैं और थोक बता दें कि दस दिन पहले तक चीनी का थोक दाम 4,320 रुपए कुंतल था यानी 44-45 रुपए प्रतिकिलो, लेकिन अब ये दाम बढ़कर 4,620 प्रति कुंतल यानी 46-48 रुपए प्रतिकिलो जा पहुंचे हैं। वहीं खुदरा बाजार में चीनी का दाम 50-55 रुपए किलो तक है। वहीं थोक में 25 किलो से ऊपर के पैकेट बंद आटा और चावलों के दाम तो स्थिर हैं।

भारत में खाद्यान्नों के सबसे बड़े थोक मार्केट नया बाजार में दिल्ली ग्रेन मर्चेंट एसोसिएशन के अध्यक्ष नरेश गुप्ता ने बताया कि थोक में आटा-चावल के दाम 25 किलो से ऊपर के पैकेटों पर स्थिर हैं। जहां परमल चावल 28-30 रुपए प्रतिकिलो है। वहीं बासमती चावल के थोक दाम 60-90 रुपए तक है जोकि खुदरा में 150-180 रुपए में बेचे जा रहे हैं। वहीं आटे का थोक दाम 25-30 रुपए किलो तक है जबकि खुदरा में 35-45 रुपए किलो तक बेचा जा रहा है। बात अगर दालों की करें तो उनके दामों में गिरावट देखने को मिली है। जो अरहर की दाल खुदरा में दस दिन पहले तक 142 रुपए थी। वह अब 130 रुपए प्रतिकिलो है जबकि थोक में दाम 85-95 रुपए प्रतिकिलो है।

स्थिर रहेंगे खाद्य तेलों के दाम

व्यापार मंडल के महासचिव व खाद्य तेलों के थोक व्यवसायी हेमंत गुप्ता ने बताया कि खाद्य तेलों के दाम बीते कई महीनों से स्थिर हैं और आगे भी तेजी आने की कोई संभावना नहीं है क्योंकि पहले भी खाद्य तेलों पर जीएसटी पांच फीसद थी और अभी भी उतनी ही है। ऐसे ही चने की दाल के दाम 80 रुपए से घटकर 70 रुपए हैं व थोक में 67 रुपए, मूंग की दाल के दाम घटकर 122 रुपए से 110 रुपए और थोक में 85-90 रुपए, लाल मसूर की दाल के दाम 95 रुपए से घटकर 85 रुपए हो गए हैं और थोक में 60-70 रुपए प्रतिकिलो हैं। यानी अमूमन सभी दालों में 10-15 रुपए प्रतिकिलो खुदरा व थोक दाम घटे हैं।

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त्योहारी मौसम में हर वर्ष खाद्य तेलों के दामों में बढ़त देखने को मिलती थी, लेकिन इस वर्ष ऐसा नहीं होने वाला है यानी दाम बिल्कुल स्थिर रहने वाले हैं। भारतीय व्यापार मंडल के महासचिव व खाद्य तेलों के थोक व्यवसायी हेमंत गुप्ता ने बताया कि खाद्य तेलों के दाम बीते कई महीनों से स्थिर हैं और आगे भी तेजी आने की कोई संभावना नहीं है क्योंकि पहले भी खाद्य तेलों पर जीएसटी पांच फीसद थी और अभी भी उतनी ही है। थोक में इस समय सोयाबीन तेल का दाम 155-160 रुपए लीटर है। जबकि सरसों का तेल 175 रुपए, पामोलिव तेल 145 रुपए, सूरजमुखी का तेल 165-170 रुपए, मूंगफली का तेल 165 रुपए प्रति लीटर है। वहीं खुदरा में चावल का तेल (राइज ब्रांड आयल) का दाम 120-122 रुपए है। जबकि देशी घी सस्ता हुआ है क्योंकि उस पर जीएसटी 12 से घटकर पांच फीसद हो गया है। इस समय मांग भी सामान्य बनी हुई है।

लोगों की जेब पर बोझ कम नहीं हुआ

नोएडा में भी जीएसटी संशोधन के बाद भी लोगों की जेबों पर बोझ कम नहीं हुआ है। लोगों को कई तरह के खाद्य सामान खरीदने पर अब भी उतनी ही रकम चुकानी पड़ रही है।

खुदरा व्यापारियों का कहना है कि सरकार के जीएसटी संशोधन के अनुसार, कुछ खाद्य सामग्री जिनकी पैकेजिंग 25 किलोग्राम से कम है ऐसे सामान पर पुरानी जीएसटी ही लागू की गई है। वहीं इससे अधिक वजन के सामान पर जीएसटी में राहत दी गई है। लेकिन छोटा परिवार होने के कारण लोग प्रतिमाह कम खपत के अनुसार ही सामान खरीद रहे हैं, ऐसे में अब भी उनकी जेब पर भोज पड़ रहा है।

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नोएडा सेक्टर-53 निवासी पीयूष शर्मा बताते हैं कि घर में केवल तीन ही लोग हैं। हर माह खपत काफी कम है। जितने का सामान पहले आता था। अब भी उतने ही पैसे खर्च करने पड़ रहे हैं। हमारे लिए कुछ राहत नहीं है। वहीं सेक्टर-22 निवासी दीपशिखा बताती हैंं कि वह अपनी साथी के साथ रहती हैं, हर माह के हिसाब से राशन लेकर आते हैं। दो लोग होने के कारण खपत भी अधिक नहीं है।

ऐसे में कई सामग्रियों पर तो उन्हें लाभ नहीं मिल पा रहा है। वहीं सेक्टर-44 निवासी शशि शर्मा बताती हैं कि वह अपने पति और बच्चे के साथ रहती हैं। जीएसटी में राहत केवल कुछ ही सामानों में मिली हैं, लेकिन सभी सामग्रियों में नहीं मिली है। अब भी उतना ही पैसा देना पड़ रहा है।

दवाओं पर असर दिखने में समय लगेगा

जीएसटी में कटौती के बाद दवाओं की कीमतों में करीब 7 फीसद की गिरावट का दावा किया जा रहा है, लेकिन बाजार में इसका पूरा असर अभी नहीं दिख रहा। इंडियन फार्मासिस्ट एसोसिएशन का कहना है कि बदलाव का असर पूरी तरह दिखने में 2-3 महीने लगेंगे। जागरूकता की कमी के चलते दूरदराज के क्षेत्रों में लोग अभी भी पुरानी दरों पर दवाएं खरीद रहे हैं। दवा विक्रेताओं का कहना है कि पुराना स्टाक अभी बाजार में चल रहा है, जिससे मरीजों को सस्ती दवाओं का फायदा तुरंत नहीं मिल रहा।