पश्चिमी उत्तर प्रदेश के किसान पिछले कई महीनों से आवारा पशुओं के आतंक से त्रस्त हैं। अभी तक कुछेक इलाकों में ही जंगली सूअर व बंदर फसल को नुकसान पहुंचाते थे। सब्जियां और गन्ना ही उनका निशाना होता था। पर अब नील गाय फसलों को ज्यादा नुकसान पहुंचा रही हैं। बची-खुची कसर आवारा सांड़ पूरी कर रहे हैं। इनका प्रकोप योगी सरकार के सत्ता में आने के बाद बढ़ा है। पहले पशु पालक अपने अनुत्पादक सांड़ों को कसाई के हाथ बेचते थे। योगी सरकार ने गोवध पर कड़ाई की तो किसान ऐसे बछड़ों को आवारा छोड़ रहे हैं। पिछले महीने राज्य के कृषि मंत्री सूर्यप्रताप शाही ने दिल्ली में पत्रकारों से बातचीत में माना था कि सूबे के किसान आवारा पशुओं से परेशान हैं।

उन्होंने सफाई भी दी थी कि नील गाय के नाम में बेशक गाय जुड़ा हो पर हकीकत में यह बकरी प्रजाति का जानवर है। वन्य जीव संरक्षण कानून के तहत सरकार की इजाजत के बिना नील गाय को मारा नहीं जा सकता। नील गाय के झुंड जिस खेत में घुस जाते हैं, वहां खड़ी फसल को बर्बाद कर देते हैं। मंत्री ने कहा था कि सरकार आवारा जानवरों को बधिया करने की योजना बना रही है ताकि उनकी बढ़ती संख्या को रोका जा सके।

लेकिन जमीनी हकीकत यही है कि सरकार के स्तर से किसानों के संरक्षण के लिए कोई कदम नहीं उठाया गया है। शनिवार को मेरठ व सहारनपुर मंडलों के नौ जिलों के प्रगतिशील किसानों को रबी गोष्ठी के लिए जब सूबे के कृषि उत्पादन आयुक्त प्रभात कुमार ने मेरठ में बुलाया तो वह किसानों की समस्या सुनकर दंग रह गए। वह किसानों को राज्य सरकार की उपलब्धियों के बारे में बता रहे थे पर जैसे ही उन्होंने कहा कि मुख्यमंत्री किसानों के प्रति संवेदनशील हैं और उन्हें लागत का दोगुना दाम दिलाने के लिए जरूरी कदम उठा रहे हैं तो कई किसान खड़े हो गए और कहा कि उन्हें दोगुने दाम की नहीं बल्कि गन्ने के अपने बकाया भुगतान की चाह है। ज्यादातर किसानों ने आवारा जानवरों के प्रकोप से बचाने और गन्ने का बकाया भुगतान दिलाने की मांग की।

पांचली गांव के एक छोटे किसान झरिया सिंह ने बताया कि उसकी 18 बीघे में खड़ी उड़द की फसल को नील गाय ने चौपट कर दिया है। ऐसे नुकसान का सरकार कोई मुआवजा भी नहीं देती है। प्रभात कुमार चाहते थे कि लखनऊ में इसी महीने 26 तारीख को शुरू होने वाले तीन दिन के कृषि कुंभ में भाग लेकर किसान अपनी आमदनी बढ़ाने के तौरतरीके समझें। किसानों का रुख देख उन्होंने खुद कहा कि किसानों का जीवन स्तर उनकी मेहनत के अनुपात में ऊंचा नहीं हो पाया है। उन्होंने माना कि किसानों से नाता रखने वाले कई सरकारी विभागों बिजली, कृषि, राजस्व और गन्ना समितियों में भ्रष्टाचार है।

कृषि उत्पादन आयुक्त ने सरकारी अफसरों से कहा कि वे किसानों के प्रति संवेदनशील रहें। साथ ही इस बात पर नाराजगी जताई कि जिलों में कलक्टर किसानों की समस्याएं सुनने के लिए अलग से वक्त नहीं देते। उन्होंने हिदायत दी कि हर कलक्टर हफ्ते में कम से कम एक दिन किसानों की समस्याओं को सुनकर उनका समाधान करें। गन्ना किसानों ने पिछले साल के गन्ने का बकाया भुगतान नहीं मिलने की शिकायत की और उन्हें बताया कि भाजपा ने चुनाव के वक्त गन्ना किसानों से वादा किया था कि दो हफ्ते के भीतर भुगतान की व्यवस्था की जाएगी। चीनी मिलों द्वारा अभी तक नया पेराई सत्र शुरू नहीं करने से किसानों को हो रही कठिनाई की तरफ भी कृषि उत्पादन आयुक्त का ध्यान दिलाया गया।