राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने गुरुवार को कहा कि प्रशांत द्वीप समूह के देशों के खनिज, सामुद्रिक व हाइड्रोकार्बन संसाधनों को उपयोग में लाने के लिए भारत उनके साथ मिलकर काम करने का इच्छुक है।

प्रशांत द्वीपीय देशों के राष्ट्राध्यक्षों को राष्ट्रपति भवन में संबोधित करते हुए प्रणब मुखर्जी ने कहा कि प्रशांत द्वीप समूह देश प्राकृतिक संसाधनों से संपन्न हैं। हमें आपके खनिज, सामुद्रिक व हाइड्रोकार्बन संसाधनों का उपयोग करने के लिए आपके साथ काम करके प्रसन्नता होगी। भारत सरकार और निजी क्षेत्र आपसी व्यापार को सशक्त और वैविध्यपूर्ण बनाने व मत्स्य पालन, कृषि, तेल व प्राकृतिक गैस, खनन और जल के विलवणीकरण (खारेपन को समाप्त करना) के क्षेत्र में निवेश को प्रोत्साहित करने का इच्छुक है।

फिपिक के सदस्य भारत और 14 प्रशांत द्वीप समूह के देश हैं। फिपिक शिखर सम्मेलन में जो द्वीप देश हिस्सा ले रहे हैं, उनमें फीजी, कुक द्वीप समूह, मार्शल द्वीप समूह, नौरू , नियू, पलाए, पापुआ न्यू गिनी, समोआ, तुआलु, वानुअतु, किरिबाती, मिक्रोनेशिया, सोलोमन द्वीप समूह और टोंगा शामिल हैं। राष्ट्रपति ने कहा- यह सभी फिपिक देशों के हित में होगा कि वे अपने पूरकों की पहचान करें ताकि हम अपने प्रयास उन पर केंद्रित कर सकें। मुखर्जी ने कहा-भारत महासागरों और महाद्वीपों के जरिए प्रशांत द्वीप समूह देशों से अलग है, लेकिन इसके बावजूद उसे इन देशों के साथ करीबी मैत्री की दीर्घकालिक परंपरा पर गर्व है। हमारे लोग सदियों पुराने कारोबारी और सांस्कृतिक संबंधों से बंधे हैं, जिन्होंने हमारे संबंधों में विश्वास और सौहार्द में योगदान दिया है।

उन्होंने कहा-जिस तरह आप देशों ने भारतवंशियों को दूरदराज की भूमि में सहज और सुरक्षित महसूस कराया है, हम उसकी विशेष रूप से सराहना करते हैं। हमारी सरकार प्रशांत द्वीप समूह के देशों के हमारे मित्रों के साथ संबंधों को बहुत महत्त्व देती है। मुखर्जी ने कहा कि कुछ महीने पहले फिजी में प्रथम फिपिक शिखर सम्मेलन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के घोषित कार्यक्रमों के परिणाम सामने आने लगे हैं। हम अपने हित वाले क्षेत्रों, मसलन मानव संसाधन विकास, क्षमता निर्माण, स्वास्थ्य देखरेख, किफायती, स्वच्छ व नवीकरणीय ढांचागत विकास में संपर्क बढ़ाने का प्रस्ताव करते हैं।

उन्होंने कहा कि प्रशांत द्वीप समूह राष्ट्रों के विकास संबंधी लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए उनके प्रयासों में भारत भागीदार बनने को प्रतिबद्ध है। इस दिशा में भारत ने पिछले साल प्रशांत द्वीप समूह के प्रत्येक देश को सालाना अनुदान सहायता 1,25,000 डालर से बढ़ाकर 2,00,000 डॉलर कर दी। राष्ट्रपति ने कहा- हमें उम्मीद है कि इससे उन परियोजनाओं को सहायता मिलेगी, जिन्हें आप प्राथमिकता देते हैं। राष्ट्रपति ने कह- हमें यकीन है कि हमारी जनता के बीच आदान-प्रदान से उनके संबंधों और आपसी विश्वास में वृद्धि होगी। मेरा मानना है कि हमारे आपसी सहयोग में अभी काफी संभावनाएं मौजूद हैं, जिनका अनुमान नहीं लगाया गया है।

उन्होंने कहा कि भारत ने सूचना प्रौद्योगिकी, स्वास्थ्य, सौर ऊर्जा, आपदा शमन और प्रबंधन, कृषि-विशेषकर नारियल और नारियल के रेशे व तेल और प्राकृतिक गैस अन्वेषण में पर्याप्त प्रगति की है। हम स्थानीय तौर पर प्रासंगिक प्रौद्योगिकी पर विशेष जोर देते हुए कौशल विकास व नवाचार पर ध्यान केंद्रित कर रहे हैं। हमारी उत्कट इच्छा है कि हम अपनी विशेषज्ञता प्रशांत द्वीप समूह के मित्र देशों के साथ साझा करें, विशेषकर उनके साथ, जहां स्थायी विकास को बढ़ावा देने के लिए इन्हें अपनाया जा सकता है।

प्रणब मुखर्जी ने कहा कि भारत और प्रशांत द्वीप समूह के देश, द्वीप समूहों की कड़ी हैं और वे जलवायु परिवर्तन के नकारात्मक प्रभावों का सामना कर रहे हैं। आपकी तरह हमें भी अपनी प्रगति को प्रोत्साहन देते समय अपनी नाजुक पारिस्थितिकी को बचाए रखने में गंभीर चुनौतियां झेलनी पड़ रही हैं। उन्होंने कहा- हमारा मानना है कि उत्कृष्ट पद्धतियों और पर्यावरण के अनुकूल प्रौद्योगिकियों को देशों के बीच साझा करने से जलवायु परिवर्तन के प्रभाव से निपटने के लिए जरूरी वित्त पोषण और प्रौद्योगिकी हस्तांतरण की दिशा में सहयोग से हम सभी को अपार सहायता मिलेगी।