दिल्ली में अपनी खोई जगह पाने को बेकरार कांग्रेस निगम चुनाव की तैयारियों में जुट गई है। अभी जहां किसी पार्टी ने अपने यहां उम्मीदवारों के लिए आवेदन लेने शुरू भी नहीं किए हैं वहीं कांग्रेस के दफ्तर में आवेदकों के ढेर लग गए। यहां निगम चुनाव के लिए एक हजार से ज्यादा आवेदन आ चुके हैं। पार्टी के प्रदेश मुखिया तो आवेदनों की संख्या से ही गदगद हैं।

बेदिल ने किसी को कहते सुना कि निगम चुनाव में बेशक कांग्रेस अच्छा करने जा रही है और तो और जब दूसरी पार्टियों को यह पता चलेगा कि उनके यहां आवेदन लिए नहीं जा रहे और हमारे यहां एक हजार से ज्यादा आवेदन आ गए तो उन्हें और झटका लगेगा। अब यह आवेदन करने वाले उम्मीदवार कितने पानी में हैं यह बाद में पता चलेगा। आवेदन के मामले में कांग्रेस झटका देने की बात सोच तो रही है लेकिन वो चुनाव मतगणना के दिन खुद झटका खाती है या देती है। इस पर सबकी निगाह होगी।

गले पड़े रोजे

दिल्ली विश्वविद्यालय में आए दिन होने वाले प्रदर्शन में कुछ छात्र तो संगठन के होते हैं, जबकि कुछ यारी-दोस्ती में भीड़ बढ़ाने साथ चले आते हैं। एक वाकये में ऐसे ही छात्र परेशान नजर आए। दरअसल, प्रदर्शन उत्तरी परिषद के एसओएल कैंपस में था और केवाइएस संगठन के बैनर तल सैकड़ों छात्र जुटे थे। देखते ही देखते कालेज प्रशासन ने भी कठोर रुख धारण कर लिया।

प्रदर्शनकारियों के खेमे से जैसे ही कुछ छात्र कैंपस के नजदीक पहुंचे सुरक्षा में लगे निजी गार्ड उनपर हावी हो गए, उन्हें कब्जे में लिया और पिटाई कर दी। भगदड़ मच गई। कई छात्र जख्मी हुए। इतना ही नहीं, कालेज प्रशासन ने प्रदर्शनकारी छात्रों के खिलाफ पुलिस में भी शिकायत दर्ज करा दी। अब प्रदर्शनकारी छात्रों के खेमे में उन छात्रों की मानों शामत आ पड़ी है जो संगत में प्रदर्शन करने आ गए थे! बहरहाल, एसओएल के गलियारे में अब चर्चा है कि ‘गए नमाज पढ़ने और रोजे गले पड़ गए’!

बेचारा आम आदमी

दिल्ली में बीते कुछ दिनों से कोरोना संक्रमण ढलान पर है, लेकिन बाहर निकलने वालों के लिए अभी चालान का डर कम नहीं हुआ है। लोग हजार रुपए के डर से मास्क पहन रहे हैं। दिल्ली की सत्ता पर काबिज पार्टी की सरकार ने तो चालान काटने के लिए स्वयंसेवकों को भी लगा रहा है, लेकिन आपको बता दें कि यह चालान का डर केवल बाहर के लिए है।

घर वाले यानी नेताजी और उनके कार्यकर्ता सब निडर हैं। यहां न चालान का डर और न ही कोरोना का। क्योंकि कोरोना तो पहले से कम है और जो चालान काटते हैं वो तो घर के आदमी हैं, तो पार्टी के कार्यालय से लेकर सरकारी कार्यालय तक लोग अपना चेहरा दिखाते फिर रहे हैं। कभी यही लोग पहले वर्चुअल कांफ्रेंस में भी अपना चेहरा ढके होते थे। बेदिल ने एक चालान भरने वाले से पीड़ित से सुना, आम आदमी तो बस पार्टी का नाम है, जेब तो आम इंसान की ऐसे काट रहे हैं जैसे सबको रईस बना दिया हो।

शराब से दबाव

शराब पुलिस और आबकारी विभाग के साथ लोगों पर कितना दबाव बढ़ाती है यह पिछले दिनों देखने को मिला। दिल्ली और यूपी में शराब की कीमतों में कम अंतर था तो पिछले कुछ समय से सीमावर्ती इलाकों से पुलिस और आबकारी विभाग तकरीबन हट गए थे लेकिन हालिया दिनों में दिल्ली में शराब बिक्री पर जारी छूट के चलते यूपी पुलिस को नया काम मिल गया है।

अब वे फिर सतर्क हो गए हैं। सड़कों पर यातायात व्यवस्थित करने या अन्य कामों के बजाए पुलिस रोजाना शाम से ही सतर्क होकर दिल्ली- नोएडा की सीमा को जोड़ने वाले इलाकों में सक्रिय हो रही है। जांच इतनी कड़ी है कि जाम लग रहा है। और जो लोग सिर्फ शराब की जांच की वजह से जाम में फंस रहे हैं वे पुलिस को कोसते हुए निकल रहे हैं। अपराध नियंत्रण से ज्यादा शराब लाने वालों की धरपकड़ की चर्चाएं लोगों के बीच इन दिनों आम हैं।

भीड़ से चिढ़

कोरोना की मार तो राजधानी में थमती नजर आ रही है मगर मेट्रो के हालात अब भी ठीक नहीं हो पाए हैं। मेट्रो को दिल्ली की लाइफलाइन कहा जाता है। लेकिन अब लाइफलाइन से लोग खासे खफा हैं। ब्लू लाइन के स्टेशन पर 15 मिनट तक ट्रेन के आने का इंतजार करना पड़ रहा है। बेदिल ने मेट्रो में कुछ लोगों को बातचीत करते सुना कि जब पाबंदियां हट गई हैं तो यहां रुकावट खत्म क्यों नहीं हो रही।

एक सज्जन कह रहे थे कि पहले जब सब कुछ बंद था तो आराम था। कम से कम भीड़ कम थी। अब तो रविवार के दिन भी मेट्रो खचाखच भरी है। सज्जन पूर्णबंदी की वकालत कर बैठे। तभी दूसरे सज्जन बोल पड़े सरकारी नौकरी वाले होंगे इसलिए सुकून में हैं।
बेदिल