अब काम न करने के लिए अरविंद केजरीवाल और उनकी पार्टी को बहाना खोजना पड़ेगा। दिल्ली में अधिकारों की लड़ाई पर सुप्रीम कोर्ट का संविधान पीठ सुनवाई कर रहा है, उसका जो फैसला होगा वह सर्वमान्य होगा। अब तक केजरीवाल और आप के नेता यह आरोप लगाते थे कि अफसर उन्हें काम नहीं करने दे रहे हैं। जिन अफसरों को वे सबसे ज्यादा अपने खिलाफ मानते थे, एक-एक करके उनमें से कई या तो खुद अपना तबादला करा कर दिल्ली सरकार से चले गए या उनका तबादला कहीं और हो गया। इन अधिकारियों को अपनी सुनाने के लिए सरकार ने हर तरकीब अपनाई लेकिन वे काबू में नहीं आए। अब तक इसी बहाने केजरीवाल सरकार यह कहती रही कि अधिकारी उसे काम नहीं करने दे रहे हैं। यह अलग बात है कि जो अधिकारी अभी तैनात हैं उनमें भी ज्यादातर ऐसे हैं जिनसे केजरीवाल सरकार के अच्छे संबंध नहीं हैं। वैसे अब काम न करने के लिए सरकार आसानी से अधिकारियों पर आरोप मढ़ कर बच नहीं सकती है।

तिवारी का जलवा
दिल्ली के भाजपा नेताओं का एक तबका भले ही दिल्ली भाजपा अध्यक्ष मनोज तिवारी के खिलाफ हो, लेकिन उनकी पूछ पार्टी में कम नहीं हुई है। वे उत्तर प्रदेश के नगर निगम चुनावों से लेकर हिमाचल प्रदेश और गुजरात विधानसभा चुनाव में स्टार प्रचारक बने रहे। देश क्या दुनिया के कई देशों में भी बड़ी संख्या में भोजपुरी भाषी रहते हैं। उनमें अपनी भाषा के प्रति गजब आकर्षण है। यह संदेश भी दिल्ली में उनका विरोध करने वालों के लिए है कि वे प्रयास करके भी उनका कोई नुकसान नहीं कर सकते हैं।

ये कहां आ गए हम
सबसे तेजी से कामयाबी की सीढ़ी चढ़ने वाली आम आदमी पार्टी ने रविवार को किसी अन्य राजनीतिक दलों की तरह अपना स्थापना दिवस मनाया। आयोजन खास रहा क्योंकि मौका पांचवी सालगिरह का था। लेकिन, सबसे खास बात यह रही कि यह न केवल पार्टी के सदस्यों के लिए खास था, बल्कि पार्टी से अलग हो चुके या हाशिए पर धकेले जा चुके लोगों ने भी इसे अपने अंदाज में याद किया। पार्टी की प्राथमिक सदस्यता से निलंबित और दिल्ली सरकार में मंत्री रहे कपिल मिश्र के मुंह से निकला, ये कहां आ गए हम। एक ट्वीट कर उन्होंने कहा, ‘शीला को हराने से लेकर लालू को गले लगाने तक, हमें देश और केजरीवाल में से एक को चुनना था, हमने अपना देश चुना है’। वहीं आप के संस्थापकों में शामिल रहे स्वराज इंडिया के अध्यक्ष योगेंद्र यादव ने कहा कि एक नैतिक अभियान के तौर पर आप की मृत्यु 2015 में ही हो चुकी है। इतना ही नहीं अविश्वास के साथ ही सही पार्टी के अंदर बने रहे कुमार विश्वास ने सालगिरह के जलसे में ही अपनी लंबी खामोशी तोड़ते हुए कहा कि अगर चंद्रगुप्त अहंकारी हो जाए तो चाणक्य की जिम्मेदारी है कि उसे वापस भेज दे। यानी अपने पांच साल के सफर में आप ने अपना ऐसा वजूद बना लिया है कि उससे कोई नफरत कर सकता है, प्यार कर सकता है, लेकिन नजरअंदाज नहीं कर सकता।

मनमानी पर सुस्ती
नोएडा में पिछले एक हफ्ते से हजारों मुसाफिरों को आॅटो-टेंपो चालकों की मनमानी का शिकार होना पड़ रहा है। मीडिया में इस मुद्दे को लगातार उठाने के बावजूद प्रशासनिक मशीनरी सख्ती करने से कतरा रही है। नतीजतन आम जनता मनमाना किराया देने को मजबूर है। मीडिया में लगातार मामले के आने के बाद सहायक संभागीय परिवहन अधिकारी (एआरटीओ) ने कई जगहों पर किराया सूची चस्पा करने और ज्यादा किराया वसूले जाने की शिकायत करने को कहा है। इस सूची के मुताबिक, आॅटो में 6.17 रुपए प्रति किलोमीटर किराया तय है। हकीकत यह है कि आधा किलोमीटर के भी आॅटो वाले 20 रुपए ले रहे हैं। कुछ आॅटो चालकों ने तो नजर में आने से बचने के लिए नंबर प्लेट से भी छेड़खानी कर उसे बदल दिया है, ताकि नंबर के आधार पर पकड़े जाने से वे बच जाएं।

कम हुआ भाव
नगर निगम के तीन हिस्सों में बंटवारे के बाद नेता तो नेता अधिकारी भी पशोपेश में फंसे हैं। कई चीजें तो अभी भी एक ही जगह से संचालित हो रही हैं। मसलन डेंगू, मलेरिया और चिकनगुनिया की रिपोर्ट। लेकिन एक पद ऐसा है जो है तो पूर्वी निगम के अंदर, लेकिन वो काम करता है तीनों निगमों के लिए। बेदिल का इस पर तैनात अधिकारी से बंटवारे से पहले कई बार खबर लेने-देने के नाम पर पंगा हो चुका है। ताजा मामले में जब बेदिल ने उन्हें खंगाला तो जवाब ऐसा मिला कि दंग रहने के सिवाय और कुछ नहीं किया जा सकता। उनका जवाब था- पिछले पांच सालों में यही एक पद है जो तीनों निगमों के लिए काम करता है। दरअसल निगम का दुर्भाग्य है कि उसका तीन हिस्सों में बंटवारा हो गया। इससे निगम के अधिकार ही नहीं बंटे, बल्कि नेताओं और अधिकारियों का भाव भी कम हो गया।

प्रचार की रजामंदी
ऐप आधारित गाड़ियों को दिल्ली ट्रैफिक पुलिस के प्रधान ने राजघाट से ऐसे हरी झंडी दिखाकर रवाना किया जैसे ये गाड़ियां दिल्ली पुलिस के बेड़े की हों। बाद में पता चला कि गाड़ी निजी कंपनियों की है और उन पर आतंकवाद से बचने और महिलाओं की सुरक्षा से संबंधित स्लोगन लगाए जाने के लिए पुलिस ने अपनी रजामंदी दी है। बेदिल ने जब इसकी तहकीकात की तो पता चला कि ये गाड़ी वाले स्वैच्छिक रूप से पुलिस का प्रचार-प्रसार करने को राजी हो गए। लगे हाथ गाड़ी वाले को लगा कि इसका प्रचार पुलिस अधिकारी से क्यों न कराया जाए? फिर हाथ कंगन को आरसी क्या, पुलिस ने भी इस तरह से इनका प्रचार किया जैसे ये गाड़ियां उन्हीं के बेड़े को मिली हों।

रुतबे का रौब
दिल्ली ट्रैफिक पुलिस भी कई बार रुतबा देख कर चालान करती है। इसकी बानगी चांदनी चौक में देखी जा सकती है। यहां की मुख्य सड़क पर टाउन हॉल से लाजपत राय मार्केट तक कुछ गाड़ियां रोजाना कई-कई घंटे तक पार्क की जाती हैं। इनमें ज्यादातर गाड़ियां चर्चित व्यावसायियों की हैं। अवैध तरीके से कमोबेश दिन भर सड़क किनारे खड़े किए जा रहे इन वाहनों में ज्यादातर बड़ी व महंगे ब्रांड की गाड़ियां हैं, लेकिन पुलिस इनका चालान नहीं करती। ऐसा नहीं है कि पुलिस इन इलाकों में हाथ पर हाथ धरे बैठी है। चालान भी जमकर काटा जाता है, लेकिन मोटरसाइकिलों और आम लोगों की गाड़ियों की। किसी ने ठीक ही कहा है, चालान की जहमत कौन उठाए भला, चांदनी चौक जिले से जाना किसी को अच्छा लगेगा क्या? इस पर दूसरे ने मामला साफ किया, इनके हाथ ऊपर तक जो हैं!
-बेदिल