पुलिस की नसीहत
दिल्ली पुलिस अपनी छवि का बखान विज्ञापनों और स्लोगनों के जरिए हर जगह करती दिख जाती है, लेकिन असलियत तब सामने आती है जब जनता का सामना पुलिसनुमा अपने रक्षक से सीधे-सीधे होता है। ऐसा ही एक वाकया तब हुआ जब पूर्वी दिल्ली में किसी ने स्थानीय थाने के थानेदार के पास फोन छीने जाने की शिकायत की। थानेदार ने जब पूरी कहानी सुनी तो उसकी प्रतिक्रिया कुछ इस तरह थी कि सड़क चलते हुए फोन पर बात क्यों कर रहे थे और अगर बात कर भी रहे थे तो फोन दाएं कान की जगह बाएं कान पर क्यों नहीं लगाया था। ऐसे में अब वह दिन दूर नहीं जब पुलिस फोन पर कैसे बात करें इस बाबत इश्तिहार छपवाना शुरू कर दे और उसके साथ एक नोट भी चस्पा हो कि बातचीत का सही तरीका अपनाकर पुलिस की मदद करें क्योंकि फोन छीने जाने की दशा में दिल्ली पुलिस आपकी कोई मदद नहीं कर सकती।
आयुक्त का दांव
एक तीर से दो शिकार, यह कहावत इन दिनों निगमों पर फिट बैठ रही है। दरअसल दिल्ली के तीनों नगर निगमों का बजट सत्र चल रहा है। सत्र के पहले चरण में आयुक्त को अपना प्रस्ताव रखना है बाद में उस पर निगम की बैठक में चर्चा होनी है, लेकिन अभी प्रस्ताव रखा गया और विरोध शुरू हो गया। सत्तारूढ़ भाजपा के साथ विपक्षी दल आप और कांग्रेस ने सीधे इसे जनता पर अतिरिक्त बोझ डालने वाला प्रस्ताव बताया है। बेदिल को निगम के एक वरिष्ठ पदाधिकारी रहे भाजपा नेता ने बताया कि आयुक्त का यह प्रस्ताव निगम पार्षदों को उनकी औकात बताने के लिए है। निगम में सत्तारूढ़ भाजपा के आलाकमान को इस मामले में आखिरी फैसला लेना है। आयुक्त ने प्रस्ताव रखकर सिर्फ अपनी मंशा जाहिर की है। इस प्रस्ताव से निगम को करोड़ों रुपए की अतिरिक्त आमदनी होगी और जनता परेशान होती रहेगी। पर सबसे अहम बात यह है कि जिस तरह निगम में आयुक्तों को तरजीह नहीं दी जा रही है और नेता अपनी चला रहे हैं उसपर एक हद तक रोक लगाने और पार्षदों को हैसियत बताने के लिए आयुक्त ने इस तरह का प्रस्ताव पेश कर एक तीर से दो शिकार करने की कोशिश की है।
फैसले पर गफलत
कुछ दिनों पहले कुछ अखबारों और सोशल मीडिया पर खबर आई कि दिल्ली विश्वविद्यालय में अगले साल से बीकॉम में दाखिला प्रवेश परीक्षा के आधार पर होगा और यह निर्णय दाखिला समिति में लिया गया है। इस खबर के छपने के कुछ दिनों बाद दाखिला समिति की बैठक हुई। बैठक के बाद समिति के सदस्यों से जब पत्रकारों ने बात करनी चाहिए तो एक सदस्य फोन उठाते ही हर बार कहते ‘ऐसा कुछ नहीं हुआ है’। दरअसल, यह बैठक दाखिले से संबंधित निर्णयों के लिए हुई ही नहीं थी। अगले साल के लिए दाखिला समिति का गठन ही नहीं हुआ है। इस समिति के गठन के बाद अगले साल के दाखिलों से संबंधित सभी फैसले किए जाएंगे।
खबरों की प्रासंगिकता
खबरें वही जो पुलिस मन भावे, यह जुमला सुनने में थोड़ा अजीब भले ही लगे, लेकिन है सच। खबरें कभी पुरानी नहीं होतीं, सिर्फ उसे देखने का नजरिया चाहिए। बेदिल को जिले के एक उपायुक्त ने यह बात तब कही जब उन्हें यह बताया गया कि आपने जो प्रेस विज्ञप्ति भेजी है उसकी जानकारी तो बीती रात ही मिल गई थी। इतना कहते ही पुलिस उपायुक्त यह बताने लगे कि खबर वह है जो आप छापते हैं। इसे आज छापें, कल छापें या परसों। अगर उससे समाज में एक संदेश जाता है तो वह खबर कभी पुरानी नहीं होती। उनके कहने का मकसद यह था कि यह खबर जब छपेगी उस समय भी प्रासंगिक बनी रहेगी। बेदिल कुछ और पूछता, इससे पहले ही उपायुक्त ने कहा कि खबरें वही जो पुलिस मन भावे। उनका मतलब यह था कि जब वे खबर देंगे तभी तो वह छपेगी और फिर जनता में असर दिखेगा। दरअसल इस खबर में पुलिस ने आम लोगों को कुछ सावधानियां बरतने की सलाह दी थी जिस बाबत इतनी लंबी बातें हो गर्इं।
-बेदिल
दिल्ली मेरी दिल्ली- दिल्ली पुलिस आपकी कोई मदद नहीं कर सकती
दिल्ली पुलिस अपनी छवि का बखान विज्ञापनों और स्लोगनों के जरिए हर जगह करती दिख जाती है, लेकिन असलियत तब सामने आती है जब जनता का सामना पुलिसनुमा अपने रक्षक से सीधे-सीधे होता है।
Written by जनसत्ता

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First published on: 11-12-2017 at 04:00 IST