सड़क से संघर्ष के रास्ते देश की राजधानी की सत्ता पर काबिज हुए अरविंद केजरीवाल ने जिस भ्रष्टाचार के खिलाफ मुहिम चलाई, उनके अपने ही साथी एक-एक करके उसी भ्रष्टाचार के शिकार होते दिखाई दे रहे हैं। आलम यह है कि उनके चुनिंदा साथियों पर धोखाधड़ी और जालसाजी के आरोपों के साथ-साथ उनके चरित्र पर गहरे दाग दिखाई दे रहे हैं। क्या मंत्री, क्या विधायक, क्या पार्टी के वरिष्ठ नेता-सब एक के बाद एक किसी न किसी विवाद की बलि चढ़ रहे हैं। सूचना यह भी है कि उनकी पार्टी के दो दर्जन के करीब नेता किसी न किसी आपराधिक मुकदमे में उलझे हैं।
खबर तो यह भी है कि खुद केजरीवाल 15 विभिन्न मुकदमों के जाल में उलझे हैं। हालांकि उनमें से ज्यादातर मुकदमे उनके संघर्ष के दौरान के हैं जिनमें दंगा फसाद, सरकारी कर्मचारी के काम में बाधा पहुंचाना या मानहानि के मामले शामिल हैं। यह सच है कि खुद उनके दामन पर ऐसा कोई दाग नहीं। जो मामले हैं उन्हें तो संघर्षशील नेता अपने परिचय में मोतियों की तरह पिरोते हैं। ऐसे मामलों से नेता लोग विचलित नहीं होते, विरोधी बेशक इन्हें गिना कर उन्हें कोसते रहें।
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दिल्ली के उपमुख्यमंत्री व केजरीवाल के सेनापति मनीष सिसोदिया भी अपने नेता से बस एक ही कदम पीछे हैं और विरोधियों की सूची में गिनाने के लिए उन पर 14 मुकदमे हैं। उनके एक अन्य करीबी गोपाल राय के अलावा विधानसभा अध्यक्ष के पद पर तैनात रामनिवास गोयल भी मुकदमेबाजी में फंसे हैं।
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ऐसी खबरें हैं कि आप के विवादास्पद नेताओं की फेहरिस्त दो दर्जन न होकर कहीं ज्यादा है। करीब 50 मामले इन नेताओं के खिलाफ दर्ज हैं। इनमें से करीब आधे मामले अदालतों में लंबित हैं या फिर पुलिस की फाइलों में दबे हैं। आम आदमी पार्टी की सरकार बनने के बाद से यह प्रयास लगातार हो रहे हैं कि इन मामलों को सुलह-सफाई से हल कर लिया जाए वे चाहे घरेलू, निजी नैतिकता से जुड़े या दूसरे लोगों के लगाए इल्जाम हों।
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बहरहाल मुद्दा यह है कि केजरीवाल चाहे अपने मुकदमों को अपनी उपलब्धि मानें, संघर्ष के दिनों में सरकारी दमन चक्र का शिकार मानें। झूठे व फर्जी आरोपों से घिरा बताएं। उनके आत्मरक्षण की नजर से दिए बयान दरकिनार कर दिए जाएं तो सच यह है कि उनके साथियों पर जो मुकदमे हैं, वे तो किसी भी राजनेता की शान नहीं हो सकते। ताजा मामला मनोज कुमार का है जो दो दिन के पुलिस रिमांड पर हैं। आरोप हैं कि फर्जी कागजात के दम पर मनोज कुमार ने किसी और की ही जमीन को अपनी बता कर बेच दी।
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मनोज कुमार ने तो जो किया जब किया लेकिन उनके रक्षादूत बनकर निकले आप नेता संजय सिंह ने तो उस पर तरस लायक टिप्पणी करके स्थिति को हास्यास्पद बना दिया। संजय सिंह का कहना है कि यह मामला 2014 में दर्ज हुआ और हजारों ऐसी एफआइआर पुलिस में लंबित पड़ी हैं। लेकिन इस पर हुई कार्रवाई से जाहिर है कि पुलिस को कितनी जल्दी थी। उनकी पार्टी के सभी प्रवक्ता तो न जाने कब से ‘रुदाली’ की धुन में समवेत स्वर में शोकगीत गा रहे हैं। लेकिन क्या महज छाती पीट-पीट कर रोने से दिन रात और रात दिन हो सकती है। शायद नहीं। पार्टी ‘पीड़ित’ होने का लबादा ओढ़ कर सहानुभूति बटोरने के बजाए ठोस तथ्यों पर इल्जामों का जवाब दे तो बेहतर हो।
राजनीति में शुचिता, ईमानदारी और पारदर्शिता का दम भरना आसान है। सत्ता में चोट करने का सबसे तीखा हथियार है। लेकिन उसे व्यावहारिक रूप में लाना अति मुश्किल। जिस तरह से पार्टी और यहां तक कि खुद केजरीवाल ने भी फर्जी डिग्री के मामले में पहले क्षेत्ररक्षण और बाद में मायूस बन कर दिखाया उससे मुख्यमंत्री और उनकी टोली पर तरस आता है न कि कोई सहानुभूति पैदा होती है। हंसी आती है न कि कोई प्रभाव पड़ता है। लिहाजा 70 में से 67 का आंकड़ा हासिल करके सिंहासन पर काबिज केजरीवाल महज यह कह कर पल्ला नहीं झाड़ सकते कि उन्हें गलत बताया गया और अब जब असलियत सामने आई है तो वे दुखी हैं।
महज दुखी होने से दिल्ली की सरकार की अगुआई कैसे होगी? राजधानी के सबसे महत्त्वपूर्ण पद पर विराजमान केजरीवाल से यह तवज्जो है कि वे दुखी होने के साथ-साथ अपनी जिम्मेदारी का निर्वाह भी करें। देश से भ्रष्टाचार हटाने का बीड़ा उठाने वाले संघर्षशील आम आदमी को अपनी खुद की पार्टी में ऐसा कोई अभियान नहीं छेड़ना चाहिए? कितनी बड़ी त्रासदी है कि 67 में से दो दर्जन के दामन पर दाग हैं।
राजनीति से प्रेरित मुकदमों को अगर छोड़ भी दिया जाए तो बाकी का क्या? जो धोखाधड़ी और जालसाजी में संलिप्त बताए जा रहे हैं?
आम आदमी पार्टी में सबसे दुखद पहलू यही है कि इसके जो नेता पार्टी ने क्षेत्ररक्षण के लिए उतारे हैं वे दिन को दिन, रात को रात कहने को तैयार नहीं। हर चीज का इल्जाम केंद्र पर थोपा जा रहा है। यहां तक कि मनोज कुमार की गिरफ्तारी को भी हुकूमती जबर करार दिया जा रहा है। संजय सिंह ने यही तो कहा, ‘हजारों एफआइआर लंबित पड़ी हैं तो इसमें इतनी जल्दी क्यों? साजिश है’।
आम आदमी पार्टी प्रमुख केजरीवाल के लिए अभी भी कुछ खास नहीं बिगड़ा है। उनके शासनकाल का यह पहला और शुरुआती दौर है। लिहाजा इन सब बातों की अपेक्षा उनसे धीरे-धीरे ही की जाएगी कि वे सख्त प्रशासनिक या कोई राजनीतिक पहल करें। लेकिन एक के बाद एक पार्टी नेताओं और विधायकों के विवादों में घिरने के बाद वे पार्टी के अंदर एक आंतरिक स्वच्छता अभियान तो छेड़ ही सकते हैं।
कांग्रेस नेता अजय माकन का दावा है कि उनके पास पार्टी के दो दर्जन नेताओं की सूची है जिन पर इल्जाम हैं। और वे उनकी शिकायत भी कर चुके हैं ‘लेकिन क्या करें? दिल्ली में लोकपाल ही नहीं! केंद्रीय लोकपाल को लेकर नायक बनी पार्टी का जब अपना समय आया तो पहले खुद ही इस संस्था को खत्म कर दिया’।
वैसे मुख्यमंत्री चाहें तो पार्टी में आंतरिक स्वच्छता अभियान की शुरुआत यहीं से कर सकते हैं कि दिल्ली को एक मजबूत लोकपाल मुहैया कराया जाए और फिर अपने ही विवादास्पद नेताओं के खिलाफ जिस कार्रवाई से वे खुद कतरा रहे हैं वह लोकपाल ही कर देगा!
लेकिन यह भी सच है कि यह तभी हो पाएगा अगर केजरीवाल अपनी दृढ़ राजनीतिक इच्छाशक्ति का प्रदर्शन करें। वरना हर बार उनके दुखी भर होने से शायद ही काम चले। मुख्यमंत्री के तौर पर उनसे ठोस कार्रवाई की जो उम्मीद जनमानस को है वह शायद ही पूरी हो। वैसे भी भ्रष्टाचार का खात्मा लोगों की फोन रिकार्डिंग के दम पर छोटे-मोटे कर्मचारियों के निलंबन या बर्खास्तगी से न हो पाएगा। इसके लिए संदेश उच्च पदों पर बैठे लोगों को घेर कर ही देना सटीक होगा। इसलिए न से देरी भली।
पूर्व कानून मंत्री सोमनाथ भारती पर छह मामले दर्ज हैं। उनकी पत्नी लिपिका ने उन पर घरेलू हिंसा का मामला दर्ज कराया है। इसके अलावा पिछले साल अफ्रीकी महिलाओं को कथित तौर पर निशाना बनाते हुए उनके आवास पर छापेमारी के मामला भी है।
पूर्व कानून मंत्री जितेंद्र सिंह तोमर डिग्री फर्जीवाड़े के मामले में फिलहाल तिहाड़ जेल में हैं। बार कौंसिल आफ दिल्ली ने तोमर के खिलाफ बतौर वकील अपने पंजीकरण के लिए शैक्षणिक डिग्रियों समेत दस्तावेजों में फर्जीवाड़े की शिकायत दर्ज करवाई थी।
राखी बिड़लान की भाभी ने उनके भाई पर घरेलू हिंसा कानून के तहत प्रताड़ना का मामला दर्ज कराया है। राखी के खुद पर भी तीन मामले दर्ज हैं।
फर्जी कागजात के दम पर किसी और की जमीन को अपनी बताकर बेचने के आरोप में पुलिस रिमांड पर हैं मनोज कुमार।
विधानसभा उपाध्यक्ष वंदना कुमारी पर संपत्ति की तोड़फोड़ का मामला दर्ज है।
सुप्रीम वकील भी नहीं अब साथ:
लगातार विवादों में फंसी आम आदमी पार्टी के पास प्रशांत भूषण जैसे कद्दावर वकील का भी साथ नहीं रहा। इस साल फरवरी में भूषण को आम आदमी पार्टी से निष्कासित करने के बाद आप ने एक ऐसा सुप्रीम दलीलें देने वाला नेता खो दिया जो सार्वजनिक मंच पर आप की मजबूती से पैरोकारी करते थे।
आप की शुरुआती चमचमाती छवि तैयार करने में भूषण का अहम योगदान था। प्रशांत भूषण के पिता शांति भूषण भी प्रसिद्ध वकील रहे हैं जो अब गाहे-बगाहे आप की आलोचना करते हैं। कुछ लोगों का दावा है कि अगर भूषण आप में रहते तो तोमर जैसे मामलों से शुरुआती तौर पर ही निपट लेते।
(मुकेश भारद्वाज)