केंद्र और दिल्ली सरकार के बीच छिड़ी जंग से ऐसे आसार बन रहे हैं, जिससे लगता नहीं कि अरविंद केजरीवाल की अगुआई वाली आम आदमी पार्टी (आप) की सरकार इस बार भी अपना कार्यकाल पूरा कर पाएगी। पिछली बार कांग्रेस के समर्थन से बनी आप सरकार ने लोकपाल बिल न ला पाने की वजह से महज 49 दिनों में इस्तीफा दे दिया था। इस बार दिल्ली में संवैधानिक संकट पैदा होने से सरकार के बर्खास्त होने की आशंका बन रही है।

संविधान की धारा 239 के तहत सात केंद्र शासित प्रदेशों की तरह दिल्ली का शासन भी प्रशासक के माध्यम से राष्ट्रपति करते हैं। उपराज्यपाल राष्ट्रपति के नाम पर ही दिल्ली के वैधानिक शासक हैं, जिनकी इजाजत से विधानसभा बुलाई जाती है और विधान बदले जाते हैं। उन्हीं के खिलाफ विधानसभा ने 9 जून को जांच करवाने की घोषणा की थी। उनके खिलाफ हत्या की प्राथमिकी दर्ज करने की मांग के बाद विधानसभा की याचिका समिति ने उन्हें दो साल पुराने भ्रष्टाचार के मामले में बिजली कंपनी के मालिक अनिल अंबानी और पूर्व मुख्यमंत्री शीला दीक्षित के खिलाफ कारवाई न करने के लिए जवाब देने पर समन भेजा है।

पिछले महीने हुए नगर निगम उपचुनाव में आप को विधानसभा चुनाव जैसी सफलता नहीं मिली। इससे आप के नेता परेशान हैं। वे दिल्ली की ही बुनियाद पर पंजाब विधानसभा चुनाव लड़ने की तैयारी में हैं। अब इनके पास यही सबसे बड़ा मुद्दा है कि उपराज्यपाल और केंद्र सरकार उन्हें काम करने नहीं दे रहे हैं। इसलिए वे अपने चुनावी वादे पूरे नहीं कर पा रहे हैं। सरकार छोड़ने पर फिर उन्हें अक्षम या भगोड़ा करार दिए जाने का खतरा है। इसलिए वे ऐसा असंवैधानिक आचरण कर रहे हैं जिससे तंग आकर केंद्र सरकार उन्हें बर्खास्त करे और उसे मुद्दा बनाकर वे देश भर में चुनाव लड़ें। संविधान के जानकार मानते हैं कि केजरीवाल सरकार संविधान के खिलाफ जो कुछ कर चुकी है उससे वह कब का बर्खास्त हो चुकी होती, लेकिन केंद्र सरकार भी उससे राजनीतिक लाभ मिलने के डर से ऐसा नहीं कर पा रही है। यह भी संभव है कि उपराज्यपाल के बहाने केंद्र पर हमला तेज करने के लिए आप यह फैसला ले ले कि साल के शुरुआती विधानसभा सत्र में उपराज्यपाल से अभिभाषण न पढ़वाए या उन्हें विधानसभा सत्र बुलाने के लिए न कहे।

दिल्ली की विधानसभा बनने के बाद से लंबे समय तक उसके सचिव और लोकसभा के वरिष्ठ अधिकारी रहे एसके शर्मा कहते हैं कि दिल्ली आज भी केंद्र शासित प्रदेश है और इस नाते उसका शासक राष्ट्रपति होता है। वह अपना शासन उपराज्यपाल के माध्यम से उसी तरह चलाता है जैसे देश के अन्य छह केंद्र शासित प्रदेशों में।
शर्मा बताते हैं कि राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल और उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया को पहली मुलाकात में ही संविधान की प्रति दी थी, लेकिन वे इसका मतलब नहीं समझ पाए। आप की पहली सरकार के समय विधानसभा के सचिव रहे पीएन मिश्र का कहना है कि उपराज्यपाल तो केवल राष्ट्रपति के प्रति यानी केंद्र सरकार के प्रति जिम्मेदार है। उसकी स्वीकृति से ही विधेयक कानून बनते हैं। उसे विधानसभा की कोई समिति कैसे समन कर सकती है। उपराज्यपाल ही नहीं एसीबी प्रमुख भी केंद्र सरकार के प्रति जिम्मेदार होने के चलते याचिका समिति में पेश नहीं होगे। आशंका है कि एक बार फिर इस विवाद के कारण दिल्ली विधानसभा भंग हो जाए।