देश की मौजूदा सियासत में सबसे बड़ी दलित नेता मानी जाने वालीं बीएसपी सुप्रीमो मायावती मंगलवार को अपना 63वां जन्मदिन मना रही हैं। लखनऊ से लेकर दिल्ली तक जमकर जश्न मनाया जा रहा है। उनके जन्मदिन पर 63 किलो का केक काटा जाएगा। मायावती ने कार्यकर्ताओं से जन्मदिन के तोहफे के तौर पर 2019 के चुनाव में जीत मांगी है। जन्मदिन पर समारोह के जरिये विपक्ष के उनके साथ होने की मिसाल पेश करने का भी मायावती के पास अच्छा मौका है।
टीचर से मुख्यमंत्री तक ऐसा रहा करियरः बतौर टीचर करियर की शुरुआत करने वाली मायावती कभी आईएएस बनना चाहती थीं। लेकिन कांशीराम से मुलाकात ने किस्मत पलटी और वे सियासत के सूरमाओं में शुमार हो गईं। 1989 में वे पहली बार सांसद बनीं। 1995 में पहली बार वे मुख्यमंत्री की कुर्सी संभाल चुकी थी। इस समय वे देश की सबसे युवा महिला मुख्यमंत्री थीं। हालांकि चंद महीनों में ही कुर्सी उनसे दूर चली गई। मार्च 1997 में वे फिर से मुख्यमंत्री बनीं लेकिन उसी साल सितंबर में फिर से कुर्सी चली गई। 2002 में वे फिर से मुख्यमंत्री बनीं लेकिन एक ही साल में भाजपा ने समर्थन वापस लिया और कुर्सी फिर चली गई। 2007 में वे फिर से मुख्यमंत्री बनीं। 2012 में उन्होंने 1960 के बाद बतौर यूपी सीएम पांच साल पूरे करने वाली पहली नेता का ताज अपने नाम कर लिया। अनुसूचित जाति से मुख्यमंत्री बनने वाली वो देख की पहली महिला हैं।
2003 में मिली थी पार्टी की कमानः बसपा संस्थापक कांशीराम ने 2001 में उन्हें अपना उत्तराधिकारी बताया था। 2003 में वे पहली बार पार्टी की अध्यक्ष बनीं। उसके बाद से उनकी पारी लगातार जारी है और वे टीम की कैप्टन बनी हुई हैं। इस दौरान उन पर कई आरोप भी लगे। नोएडा में बने पार्क में लगी अपनी प्रतिमा को लेकर भी वे खासी विवादों में रहीं। ताज कॉरिडोर घोटाले के बाद 2004 में उनके खिलाफ आय से अधिक संपत्ति का मुकदमा भी चला। शपथ पत्रों के मुताबिक 1995 में उनकी संपत्ति 1.12 करोड़ रुपए थी जो 2012 में बढ़कर 111.64 करोड़ हो गई।
दुश्मन अब यूं बन गए दोस्तः कभी समाजवादी पार्टी को कट्टर दुश्मन मानने वाली मायावती आज उसी के साथ गठबंधन कर लोकसभा में अपनी पार्टी को फिर से जिंदा करना चाहती हैं। पिछले लोकसभा चुनाव में शून्य पर सिमटने के बाद मायावती ने गठबंधन की तरफ कदम बढ़ाए हैं। राज्य में लोकसभा के लिए हुए उपचुनाव में मायावती ने सपा का समर्थन किया था, हालांकि इसके बाद सपा मायावती के एकमात्र उम्मीदवार को राज्यसभा का टिकट नहीं दिला पाई। लेकिन गठबंधन बरकरार है। अब 2019 का लोकसभा चुनाव दोनों साथ लड़ेंगे।