Allahabad High Court: इलाहाबाद हाई कोर्ट ने हाल ही में एक बलात्कार के आरोपी (Rape Accused) को इस शर्त पर जमानत दी कि वह रिहा होने के तीन महीने के भीतर पीड़िता से शादी करेगा। जस्टिस कृष्ण पहल ने 20 फरवरी को यह आदेश पारित किया, जब 26 वर्षीय आरोपी ने कहा कि वो पीड़िता को अपनी विवाहित पत्नी के रूप में देखभाल करने के लिए तैयार है।
बार एंड बेंच की रिपोर्ट के मुताबिक, हाई कोर्ट ने आरोपी को रिहा करने का आदेश देते हुए जमानत की एक शर्त में कहा कि बलात्कार के आरोपी को जेल से रिहा होने के तीन महीने के भीतर पीड़िता से शादी करनी होगी।
बता दें, आरोपी नरेश मीना उर्फ नरसाराम मीना को सितंबर 2024 में आगरा पुलिस द्वारा भारतीय दंड संहिता की धारा 376 (बलात्कार) और धारा 506 (आपराधिक धमकी) के साथ-साथ सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम की धारा 67 के तहत दर्ज मामले के सिलसिले में गिरफ्तार किया गया था। यह मामला आगरा के खंदौली पुलिस स्टेशन में दर्ज किया गया था।
अभियोजन पक्ष के अनुसार, मीना ने पीड़िता को उत्तर प्रदेश पुलिस में भर्ती कराने में मदद करने का वादा करके उसे बहकाया, उससे 9 लाख रुपये लिए, उसका यौन उत्पीड़न किया और बाद में उसका एक अश्लील वीडियो सोशल मीडिया पर प्रसारित कर दिया।
जमानत पर सुनवाई के दौरान मीना के वकील ने दलील दी कि आरोप झूठे हैं। उन्होंने एफआईआर दर्ज करने में चार महीने की देरी का भी हवाला दिया। कोर्ट ने आदेश में कहा कि राज्य सरकार ऐसी कोई असाधारण परिस्थिति सामने नहीं ला सकती, जिसके आधार पर आरोपी को जमानत देने से इनकार किया जा सके।
कोर्ट ने कहा कि यह कानून का स्थापित सिद्धांत है कि जमानत का उद्देश्य मुकदमे में अभियुक्त की उपस्थिति सुनिश्चित करना है। आवेदक द्वारा न्याय से भागने या न्याय की प्रक्रिया को विफल करने या अपराधों को दोहराने या गवाहों को डराने-धमकाने आदि के रूप में अन्य परेशानियां पैदा करने का कोई भी भौतिक विवरण या परिस्थिति एजीए द्वारा नहीं दर्शाई गई है।
मीना के पूर्व आपराधिक रिकॉर्ड नहीं होने और इस सिद्धांत पर विचार करते हुए कि “जमानत एक नियम है, जेल एक अपवाद है”, अदालत ने आरोपी को जमानत दे दी। सिंगल जज ने कहा कि जब तक दोष सिद्ध न हो जाए, निर्दोषता की धारणा” का प्रसिद्ध सिद्धांत, नियम के रूप में जमानत और अपवाद के रूप में कारावास की अवधारणा को जन्म देता है।
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