ओंकार गोखले
Bombay HC On Marital Disputes: बॉम्बे हाई कोर्ट ने मंगलवार (11 मार्च, 2023) को एक मामले की सुनावई के दौरान टिप्पणी करते हुए कहा कि वैवाहिक विवाद भारत में तेजी से बढ़ रहे हैं और ऐसे मामले मुकदमे तक पहुंच रहे हैं। जिसमें अलग-थलग रहने वाले जोड़े अपने बच्चों को चल संपत्ति या संपत्ति के रूप में मानते हैं। कोर्ट ने एक महिला को अपने 15 साल के बेटे के साथ थाईलैंड से भारत आने का निर्देश देते हुए यह टिप्पणी की, ताकि वह अपने पिता और बड़े भाई-बहनों के साथ 10 दिन तक साथ रह सके।
जस्टिस आर डी धानुका और जस्टिस गौरी गोडसे की खंडपीठ ने मंगलवार को थाईलैंड में अपनी मां के साथ रहने वाले 15 वर्षीय बेटे से मिलने के अधिकार की मांग करने वाले एक पिता की याचिका पर फैसला सुनाया। पीठ ने कहा, “यह एक दुर्भाग्यपूर्ण मामला है जहां माता-पिता के बीच एक कड़वाहट भरे वैवाहिक विवाद के कारण बच्चों को नुकसान उठाना पड़ा है। हमारे देश में वैवाहिक विवाद मुकदमेबाजी तक पहुंचते हैं। पीठ ने कहा कि एक समय ऐसा आता है जब कपल कारणों को देखना बंद कर देते हैं। बच्चों को चल संपत्ति के रूप में माना जाता है। ऐसे मामलों में न्यायालय की भूमिका महत्वपूर्ण हो जाती है।”
अधिवक्ता रोहन कामा के माध्यम से उस व्यक्ति ने पीठ को बताया कि फैमिल कोर्ट, हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट द्वारा पारित विभिन्न आदेशों के बाद अलग रह रहे दंपति के बड़े बच्चे जिसमें एक बेटा और एक बेटी, दोनों वयस्क हो चुके हैं। उसके पास हैं, जबकि नाबालिग बेटा अपनी मां के पास है। उन्होंने कहा कि फैमिली कोर्ट ने पिछले साल एक आदेश पारित किया था जिसमें उनकी अलग रह रही पत्नी के पास बेटे को पिता और नाबालिग के दो बड़े भाई-बहनों और दादा-दादी तक फ्री में पहुंचाने का निर्देश दिया था।
पिता ने हाईकोर्ट से गुहार लगाई कि वह महिला को अपने बेटे को गर्मी की छुट्टियों में भारत लाने का निर्देश दे। हालांकि, वरिष्ठ अधिवक्ता संतोष पॉल के माध्यम से महिला ने तर्क दिया कि वह अपने बेटे के साथ भारत आने को तैयार थी, लेकिन यह सुनिश्चित करने के लिए एक निर्देश जारी किया जाना चाहिए कि वह छुट्टी के अंत में अपने बेटे के साथ थाईलैंड सुरक्षित रूप से वापस आ सके।
बच्चों को चल संपत्ति या संपत्ति के रूप में नहीं माना जा सकता: कोर्ट
पीठ ने कहा, “यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि बच्चों को चल संपत्ति के रूप में नहीं माना जा सकता है जहां माता-पिता के पास अपने बच्चों के भाग्य और जीवन पर पूर्ण अधिकार होगा। सर्वोपरि विचार बच्चे का कल्याण है न कि माता-पिता के कानूनी अधिकार।” कोर्ट ने आगे कहा कि वर्तमान में 15 वर्षीय लड़का अपने विचारों और भविष्य की संभावनाओं को लेकर बहुत स्पष्ट है। इस प्रकार उसे एक व्यक्ति के रूप में व्यवहार करने की आवश्यकता है, और उसके विचारों का सम्मान करना भी आवश्यक है। कोर्ट ने कहा कि ऐसे में माता-पिता की आवश्यकताओं और नाबालिग बेटे के कल्याण के बीच एक उचित संतुलन बनाने की आवश्यकता है।
कोर्ट ने कहा- बच्चे को ध्यान में रखते हुए माता-पिता को जरूरी उपाय करने चाहिए
जस्टिस गोडसे ने कहा, “माता-पिता के बीच कड़वे मुकदमेबाजी के कारण, नाबालिग बच्चा अपने पिता और बड़े भाई-बहनों के साथ रहने से वंचित था। बच्चे के स्वस्थ विकास के लिए जरूरी है कि बच्चे को माता-पिता और भाई-बहन दोनों का साथ मिले। वह एक प्रारंभिक उम्र के साथ-साथ अपनी शिक्षा के एक महत्वपूर्ण स्टेप में है।” हाई कोर्ट ने अपने आदेश में कहा, “आवेदकों (पति-पत्नी) के लिए कहा कि वक्त को फिर से पा पाना कभी संभव नहीं होगा। हालांकि, ऐसे में माता-पिता दोनों को कुछ खेद व्यक्त करना चाहिए और इसे एक अवसर के रूप में लेना चाहिए। साथ सुधारात्मक उपायों को अपनाना चाहिए और बेटे को उसके माइंड पर जो असर पड़ा है, उसको भूलने में मदद करनी चाहिए।”
कोर्ट ने राज्य और केंद्र के अधिकारियों का दिया निर्देश
पीठ ने बच्चे के हित को देखते हुए मां को अपने नाबालिग बेटे के साथ 10 दिनों के लिए भारत आने का निर्देश दिया, ताकि वह वो अपने पिता और बड़े भाई-बहनों से मिल सके। कोर्ट ने पिता से कहा कि वह महिला और उसके बेटे को लेने को लेकर कोई शिकायत या कार्रवाई न करें। कोर्ट ने संबंधित राज्य और केंद्रीय अधिकारियों को यह सुनिश्चित करने का भी निर्देश दिया कि महिला और नाबालिग बेटे को उनकी भारत यात्रा के दौरान किसी भी तरह से बाधित न किया जाए और वे सुरक्षित रूप से उसके बाद थाईलैंड वापस जा सकें।