महाराष्ट्र राज्यसभा चुनाव में भाजपा के धनंजय महादिक ने शिवसेना के संजय पवार को हराकर सत्तारूढ़ महा विकास अघाड़ी (एमवीए) को चौका दिया है। इस जीत का श्रेय देवेंद्र फडणवीस की कोर टीम के सदस्य आशीष कुलकर्णी को दिया जा रहा है। बताया जा रहा है कि कुलकर्णी की रणनीति से ही भाजपा छठी सीट पर जीत का स्वाद चख सकी। वर्तमान में आशीष कुलकर्णी भाजपा महाराष्ट्र इकाई के उपाध्यक्ष हैं। इन्होंने अपने राजनीतिक करियर की शुरुआत शिवसेना से की थी। साल 2003 में शिवसेना छोड़ कांग्रेस में चले गए थे। 2017 में कांग्रेस भी छोड़ दिया और कुछ दिन राजनीति से दूर रहे। जब लौटे तो भाजपा में शामिल होकर नई पारी की शरूआत की।
क्या थी रणनीति?
”राज्यसभा चुनाव के लिए हमारी रणनीति बहुत सरल थी। हमने केंद्रीय मंत्री पीयूष गोयल और महाराष्ट्र के पूर्व मंत्री अनिल बोंडे को सबसे ज्यादा 48 वोट दिया। हमारे सभी विधायकों ने दूसरी वरीयता धनंजय महादिक को दी, जो तीसरे उम्मीदवार थे। यह योजना कुलकर्णी ने बनायी थी, जिसे भाजपा के पर्यवेक्षक अश्विनी वैष्णव के साथ मिलकर नेता प्रतिपक्ष देवेंद्र फडणवीस ने अंतिम रूप दिया।” भाजपा के एक नेता ने द इंडियन एक्सप्रेस को बताया।
गोयल और बोंडे को 48 वोट मिले, जो 4800 अंकों में तब्दील हो गए। दूसरी वरीयता के वोट महादिक को हस्तांतरित कर दिए गए। भाजपा नेता बताते हैं, ”कुल मिलाकर भाजपा को 106 सदस्यों (विधायकों) के वोट मिले। इसके अलावा 8 निर्दलीय और 9 अन्य विधायकों के वोट मिले। इस तरह धनंजय महादिक को मिलने वाले कुल अंक 4156 हो गए।”
आशीष कुलकर्णी की रणनीति को तराशकर जमीन पर उतारने का श्रेय देवेंद्र फडणवीस को जाता है। भाजपा के एक शीर्ष पदाधिकारी ने कहा कि केवल फडणवीस और वैष्णव को ही इस प्लान की जानकारी थी। फडणवीस के कौशल का लोहा मानते हुए भाजपा पदाधिकारी ने कहा, ”फडणवीस ने ही निर्दलीय विधायकों और दूसरे छोटे दलों को अपने साथ मिलाने का काम किया”
कुलकर्णी की कुंडली
आशीष कुलकर्णी ने शिवसेना के अपने शुरूआती दिनों में सुभाष देसाई के अधीन काम किया था। आजकल वही सुभाष देसाई महाराष्ट्र सरकार में उद्योग मंत्री हैं। बाद के दिनों कुलकर्णी शिवसेना संस्थापक बाल ठाकरे के विश्वसनीय सहयोगी के रूप में जाने गए। सवाल उठता है कि कुलकर्णी जब शिवसेना में आगे बढ़ ही रहे थे, तो पार्टी छोड़ी क्यों? दरअसल करीब दो दशक पहले शिवसेना एक बड़े बदलाव की गवाह बनी। पार्टी की कामन बाल ठाकरे के हाथ से निकलकर उद्धव ठाकरे के हाथ में गयी। इसके साथ ही कुलकर्णी किनारे लगाए जाने लगे। यही वो वक्त था जब उन्होंने पार्टी छोड़ने का फैसला किया। उस वक्त कुछ और नेता भी शिवसेना छोड़ कांग्रेस गए थे। ऐसा ही एक नाम है नारायण राणे। कुलकर्णी से इनके घनिष्ठ संबंध थे। उद्धव के साथ काम करने में इन्हें भी मुश्किल आ रही थी।
कांग्रेस में आने पर कुलकर्णी को 2009 के लोकसभा चुनाव में 6 संसदीय सीटों की जिम्मेदारी सौंपी गई। कुलकर्णी की रणनीति से कांग्रेस की सभी 6 सीटों पर जीत हुई। फिर इसी साल कांग्रेस ने विधानसभा चुनावों की जिम्मेदारी भी सौंप दी। कुलकर्णी ने फिर खुद को साबित किया। कांग्रेस राज्य का चुनाव भी जीत गई। गांधी परिवार आशीष कुलकर्णी के कौशल को भाप गया। कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने उन्हें अपने तत्कालीन राजनीतिक सलाहकार अहमद पटेल के साथ काम करने के लिए दिल्ली बुला लिया।